गुलशन फिर गुलिस्तां में नज़र आएं हैं, भारत फिर चमन होनेवाला है। दिखी है फिर जलती मशाले ए क्रांति, लगता है फिर रावण कोई रोने वाला है। कर्म - धर्म राजनीति का निवाला बने बैठे थे, लगता है फिर भगत कोई सब्र खोने वाला है। टूटेगा बाँध अब आएगी सुनामी, लगता है फिर मन का डर धुलनेवाला है। झूठ, लालच, भ्रष्टाचार चढेंगें अब फाँसी, लगता है फिर किसान दामन भिगोने वाला है। एक हैं हम, एकता का स्वर है "वन्दे मातरम", लगता है फिर कोई गाँधी सपनें सँजोने वाला है। अन्याय - आतंक धड़ से, धर्मों ज़ात कटेंगें जड़ से, लगता है फिर कोई राजा जनम लेने वाला है। रविकुमार... Old Diaries... गुलशन फिर गुलिस्तां में नज़र आएं हैं, भारत फिर चमन होनेवाला है। दिखी है फिर जलती मशाले ए क्रांति, लगता है फिर रावण कोई रोने वाला है। कर्म - धर्म राजनीति का निवाला बने बैठे थे, लगता है फिर भगत कोई सब्र खोने वाला है।