जनहित की रामायण - 63 देश में अन्न के भरे हैं भंडार, भुखमरी के भी आते हैं समाचार ! अन्न सड़ने की भी ख़बरें हैं, प्रश्न सुलझा न पायी कोई सरकार !! ये बात नहीं कि जनप्रतिनिधियों में अक्ल की कमी है ! बात ये है कि जनप्रश्न सुलझाने की नीयत ही नहीं है !! जनता का ध्यान हटाने के हथकंडों में भी रखना पड़ता ध्यान ! इसीलिये साधारण प्रश्नों को भी सुलझा नहीं सकते हैं श्रीमान !! कलम का सुझाव है कि अन्न से भूखे पेट की दूरी यूँ पाटी जाये ! प्रत्येक पिनकोड क्षेत्र में भोजन अति अल्प शुल्क में बांटा जाये !! पिनकोड क्षेत्र की बड़ी सरकारी शाला में सुबह शाम बने भोजन ! सुबह छात्रों को व शाम जनता जनार्दन को उपलब्ध हो भोजन !! शुल्क 2 रुपये व जो कार्य में हिस्सा लें उन्हें 60 रुपये का कूपन दें ! एक दिन के काम से तीस दिन सर उठा के भोजन ग्रहण कर सके !! सरकार अन्न अतिअल्प दर पर अन्न उपलब्ध करायें ! समाज सह कंपनी सीएसआर से भी सहयोग जुटाएं !! न अन्न की, न धन की, न स्थान की,न व्यवस्थापन की कमी रहे ! देश में कोई भूखा न सोया, इस समाधान के साथ सारा देश सोये !! - आवेश हिंदुस्तानी 21.04.2022 ©Ashok Mangal #AaveshVaani #hunger #foodgrain