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हिमालय से वो निकल रही है चारों और वह बिखर रही है,

हिमालय से वो निकल रही है चारों और वह  बिखर रही है, शिव जी ने धारण किया है इनको जटाओं में सुंदर  सी झलक रही है, स्वागत में फूल बरसा रहा है, हरिद्वार मन को लुभा रहा है, 
 चार धाम की यात्रा का प्रवेश द्वारा ये कहलाता है, स्नान करके मां में हर कोई पावन हो जाता है
आगे माँ  बढ़ती जाती है त्रिवेणी संगम  को पाती हैं
 गंगा जमुना सरस्वती त्रिवेणी कहलाती है माँ  के अंदर आकर  ही  सब  एक  नाम    बन   जाती    हैं
 प्रयागराज कि वह हवाए मां के मन को है भाई 
 कुंभ के मेले की वह हरियाली चारो और फैलती है खुशहाली,               दीपो के शहर ने माँ को पुकार लगाई, 
 बिस्मिल्लाह खान जी की शहनाई ने मां के अभिवादन में शीश झुकाई  है, मोक्ष द्वारा  से जाना जाता  है काशी विश्वनाथ यह कहलाता है, माँ की आरती का प्रारभ बिंदु माना जाता है, 
साहेबगंज से होकर माँ, बिहार को जाती है अंत कही ना होता है माँ बढ़ती चली जाती है 
                 (ललित गौतम ) #maaganga#poem#kavita#yatra#mehajshayari
हिमालय से वो निकल रही है चारों और वह  बिखर रही है, शिव जी ने धारण किया है इनको जटाओं में सुंदर  सी झलक रही है, स्वागत में फूल बरसा रहा है, हरिद्वार मन को लुभा रहा है, 
 चार धाम की यात्रा का प्रवेश द्वारा ये कहलाता है, स्नान करके मां में हर कोई पावन हो जाता है
आगे माँ  बढ़ती जाती है त्रिवेणी संगम  को पाती हैं
 गंगा जमुना सरस्वती त्रिवेणी कहलाती है माँ  के अंदर आकर  ही  सब  एक  नाम    बन   जाती    हैं
 प्रयागराज कि वह हवाए मां के मन को है भाई 
 कुंभ के मेले की वह हरियाली चारो और फैलती है खुशहाली,               दीपो के शहर ने माँ को पुकार लगाई, 
 बिस्मिल्लाह खान जी की शहनाई ने मां के अभिवादन में शीश झुकाई  है, मोक्ष द्वारा  से जाना जाता  है काशी विश्वनाथ यह कहलाता है, माँ की आरती का प्रारभ बिंदु माना जाता है, 
साहेबगंज से होकर माँ, बिहार को जाती है अंत कही ना होता है माँ बढ़ती चली जाती है 
                 (ललित गौतम ) #maaganga#poem#kavita#yatra#mehajshayari
lalitgautam8771

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