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शीर्षक **सच कहूँ तो मैंने भी कुछ देखा है** सच कहू

शीर्षक
**सच कहूँ तो मैंने भी कुछ देखा है**

सच कहूं  मैंने एक मंजर देखा है
अपनों के हाथ में  ख़ंजर देखा है

मैंने मोहब्बत को बिखरते देखा है
प्यार को नफरत में बदलते देखा है

मैंने लोगों की बीमार सोच को देखा है
बेटे के ख़ातिर बेटी को कोख़ में मारते देखा है

घर में बेटा आए, माँ को ऐसी मन्नत मांगते देखा है
बेटे के ख़ातिर उन्हें मैंने बृद्धाआश्रम जाते देखा है

***((अभी शेष बाकी है))*** पेट के ख़ातिर जान जोखिम में डालते देखा है
मैंने बच्चों को सर्कस में काम करते देखा है

मैंने राजा को रंक ,रंक को राजा बनते देखा है
सुबह का भटका शाम को लौटते मैंने देखा है

यहां ईश्वर भी अजब-गजब करतब दिखाता है
कहीं धूप कहीं छांव तो कहीं बादल फट जाता है
शीर्षक
**सच कहूँ तो मैंने भी कुछ देखा है**

सच कहूं  मैंने एक मंजर देखा है
अपनों के हाथ में  ख़ंजर देखा है

मैंने मोहब्बत को बिखरते देखा है
प्यार को नफरत में बदलते देखा है

मैंने लोगों की बीमार सोच को देखा है
बेटे के ख़ातिर बेटी को कोख़ में मारते देखा है

घर में बेटा आए, माँ को ऐसी मन्नत मांगते देखा है
बेटे के ख़ातिर उन्हें मैंने बृद्धाआश्रम जाते देखा है

***((अभी शेष बाकी है))*** पेट के ख़ातिर जान जोखिम में डालते देखा है
मैंने बच्चों को सर्कस में काम करते देखा है

मैंने राजा को रंक ,रंक को राजा बनते देखा है
सुबह का भटका शाम को लौटते मैंने देखा है

यहां ईश्वर भी अजब-गजब करतब दिखाता है
कहीं धूप कहीं छांव तो कहीं बादल फट जाता है