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सभ्यता नाच रही है नंगी। संस्कृति उड़ती जाए पतंग सी

सभ्यता नाच रही है नंगी।
संस्कृति उड़ती जाए पतंग सी।
समय की बलिहारी है।
भद्र की लाचारी है।
मती हुई भ्रष्ट हमारी
मां की ममता ख्वारी।
बिलखती है महतारी।
पुत्र पर छाई खुमारी।

सभ्यता नाच रही है नंगी। संस्कृति उड़ती जाए पतंग सी। समय की बलिहारी है। भद्र की लाचारी है। मती हुई भ्रष्ट हमारी मां की ममता ख्वारी। बिलखती है महतारी। पुत्र पर छाई खुमारी।

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