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हमरी प्रेम कहानी भाग 12 ******************** विधिव

हमरी प्रेम कहानी भाग 12
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विधिवत शिव की पूजा कर उसे एक बड़े चट्टान पर स्थापित किया गया।कंदमूल का भोग लगा चंदन लेपन किया गया।फूलों से सजा अभिमंत्रित किया गया। युवकों के झुंड ने आनन-फानन में लकड़ी और बांस को जोर मन्दिर का निर्माण किया। सभी जनों में प्रसाद वितरण कर शुभ की कामना की गई। 
नवरोज सारे समय ऊर्जावान और उत्साहित हो सबों का साथ देती रही।
दोपहर में सहभोज का आयोजन हुआ।नवरोज पहली बार इतने लोगों के साथ पंक्ति में बैठ भोजन कर रही थी। भोजन 
करते हुए सुरक्षा और अन्य बातों पे चर्चा जारी था।
एक नवयुवक ने जोश के साथ कहा। भैया हमलोग जान दे देंगे लेकिन अपनी धरती छोड़ किसी की शरण नही लेंगे। अब यही अपना गांव है और हम सब यंही एक साथ जिएंगे मरेंगे।
कुछ अन्य युवकों ने सहमति जताई। 
एक बुजुर्ग ने भी सहमति जताते हुए कहा हम सब मिलके यंही संसाधन विकसित करेंगे।भोलेनाथ अपने साथ है।हम इस गांव का नाम "शिव नगरी"रखेंगे।अगर आप सब की सहमति हो तो मोहन हमारे प्रधान के रूप में हम सबका नेतृत्व करेंगे। किसी भी बाधा से हम सब मिलके निबटेंगे।
सभी लोगों ने एक साथ मोहन को अपना प्रधान चुन लिया।
भोजन की समाप्ति के बाद लोग आराम करने को विदा हुए।
मोहन और नवरोज भी एक पेड़ की छांव में सुस्ताने लगे।
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दूर से पीताम्बर धारण किये दोनों श्रवण और वो पांच लकड़हारे आते दिखाई दिए। मोहन और नवरोज सजग बैठ गए।
जब वो नजदीक आ गए नवरोज अंदर घड़े से शीतल जल ले आई। दोनों आके मोहन को प्रणाम किये और सामने बैठ गए।थोड़ा सुस्ताने के बाद बोलना शुरू किए। 
प्रधान जी। सैनिक की एक टुकड़ी नदी पार उतरे थे। आज सुबह उनसे झड़प हुई । 12 सैनिकों को नवयुवक दल ने मौत के घाट उतार दिया।बचे 9 सैनिक अपने सुरक्षा तंत्र के शिकार हो गए। उनके शवों को ठिकाना लगा दिया गया है।छदयम युद्ध मे नवयुवक दल पारंगत हो गए है। पर ऐसे बहुत दिनों तक सैनिकों को रोक पाना मुश्किल है। सुरक्षा के इंतेजाम और मजबूत करने होने या फिर हम सभी को साथ ले हिमालय के तरफ बढ़ ले। 
मोहन और नवरोज दोनों चिंता में डूब गए। बूढ़े बुजुर्ग,स्त्री युवा और बच्चे मिला कर कुल 200 जन होंगे। कैसे बचा जा सकेगा इस क्रूर तंत्र से। 
आगंतुकों को फलाहार और जल पड़ोस विश्राम का निर्देश दे मोहन और नवरोज बरछी और धनुष उठा छोटी पहाड़ी की ओर बढ़ गए।
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रास्ते मे मोहन ने कहा पहाड़ी के उस पार भीलों की एक बस्ती है ये उचित होगा कि हम उनसे मदद मांगे। वो सदियों से आजाद रहते आये हैं और शिव के उपासक है।शायद हमारी मदद करने को आगे आए।इस जंगल पे सदियों से उनका अधिकार है। ये अलग बात है वो थोड़े क्रूर और लड़ाकू है।पर मुझे लगता है कभी भी मुगलों की सत्ता कुबूल करना नही चाहेंगे।
बात ही बात में वो पहाड़ी के उस पार पहुंच गए।अभी और दो कदम चले ही थे कि सरसराता हुआ एक तीर गर्दन को छूता हुआ चट्टान से आ टकराया। इससे पहले दोनों होश संभालते कुछ काले सायो ने उन्हें घेर लिया।
गले में कौड़ियों की माला,माथे पे पक्षियों का पंख बांधे, कमर से जानवर की छाल लपेटे हाथों में भाला लिए अजीब क्रूरता से वो दोनों को देखने लगे।
एक ने कुछ इशारा किया।एक अन्य आगे बढ़ मोहन और नवरोज के सारे अस्त्र झपट लिया। एक कैदी की तरह उन्हें साथ ले बस्ती की ओर बढ़ने लगे।
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बस्ती में एक बुजुर्ग उसी भेष-भूसा में पेड़ के कटे तने पर बैठा गांजा पीता नजर आया। गांजे की लहर से आंखे लाल और चढ़ी हुई थी। सामने आग पे एक सुअर को पकाया जा रहा था। कुछ अर्धनग्न सी स्त्रियां घास काटने में व्यस्त दिखी। कुछ नवयुवक पेड़ पे चढ़ने उतरने के खेल में मशगूल थे।
दोनों को बुजुर्ग के सामने खड़ा कर सब पीछे हट गए। बुजुर्ग ने खड़खड़ाती आवाज में पूछा कहाँ से आए हो? भील प्रदेश में अजनबियों का प्रवेश निषेध है।क्या उद्देश्य है तुम्हारा?कंही कोई जासूसी तो नही कर रहे थे?
दोनों ने उनका अभिवादन किया।मोहन ने कहना प्रारंभ किया
"महोदय हमारी आपके प्रदेश में आने का कारण आपसे मदद की गुहार है। हम और हमारे भाई बंधु मुगलों से परेशान है। कुछ दिन पूर्व उन्होंने हमारे खेतों -घरों को जला दिया। उन्होंने हमारे गुरुकुल के गुरु की हत्या की। अपने साम्राज्य में  वेद और मंत्रोच्चारण पे पावंदी लगा दी। हमारे शिव मंदिर को तोड़ने की चेष्टा की।लोगों के हत्या का फरमान निकाला।नवरोज की ओर इशारा कर बोला हम दो प्रेमियों को पकड़ लाने का आदेश दिया है।
बुजुर्ग भृकुटि पे बल डाले एक-एक बात सुनता रहा। 
मोहन ने आगे कहा"महोदय हम अपने लोगों के साथ पहाड़ी उसपार जंगल मे शरण लिए है। सूचना मिली है सैनिक हमे ढूंढते फिर रहे। स्त्रियों,बच्चों और बुजुर्गों की रक्षार्थ आपसे मदद मांगने आए है।
बुजुर्ग ने ताव में आकर कहा "तो क्या मुगल नदी पार करने लगे हैं? ये ठीक नही। फिर वो वन्य जीव को मारेंगे।पेड़ काटेंगे।स्त्रियों बच्चों को उठा ले जाएंगे। हमारे लोगों ने आज तक किसी मुगल को नदी पार आने पर जिंदा वापस नही जाने दिया। इस जंगल का उन्हें भान तक नही। अब वो ऐसा करने लगे।आराध्य देव महादेव को मिटाने की चेष्टा कर रहे। "भानुदेव" के रहते उन्होंने फिर से नदी पार किया,उन्हें इसकी सजा मिलेगी। हाँ हम आपकी सुरक्षा में खरे उतरे या न उतरे पर आप शैव है यही काफी है हमारे लिए। शिव अनंत है...इसे मिटाने वाले को मिटना होगा...भद्र आप सकुशल अपने क्षेत्र में निवास करे। इस जंगल मे सदियों से हमारा वंसज हैं पर ये सृष्टिकर्ता की रचना है।हमने इसे कभी अपना नहीं कहा।इसपर हर भू-बासी का समान अधिकार है। आज से आप और आपके लोग हमारे अतिथि भी है और सगे भी। मुगल जंगल मे आए तो वापस नही जाएंगे आपसे वादा है। 
मोहन और नवरोज भावयुक्त हो उसके विशाल हृदय को नमन करने लगे। 
एक भील ने सारे अस्त्र-शस्त्र दोनों को सौंप दिया।मार्ग प्रसस्त करते हुए पहाड़ी के इस पार सकुशल पहुंचा दिया।
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महाराज अपने शयनकक्ष में हुक्के की कश खींचते हुए थोड़े चिंतित दिखते है। सैनिकों की टुकड़ी को जंगल गए 5 दिन हो गए। ना कोई खबर आया ना सैनिक वापस आए। ऐसा क्या है इस जंगल मे?
महाराज एक बार खुद नदी पार जाने की योजना बनाने लगे। राजकुमारी की चिंता अलग खाए जा रही थी। सजा देने को प्राण ब्याकुल हुआ जा रहा था.... राजकुमारी,एक हिन्दू लड़के के साथ चली गई.....नापाक कर गई सल्तनत को....जगहँसाई करवा दी मेरी....नहीं... नहीं... दोनों को जिंदा दफन करूंगा।
मंत्रयों को बुला तत्काल कल सुबह जंगल जाने की तैयारी करने को कहा।
एक बुजुर्ग मंत्री ने कहा...महाराज विहर खतरनाक है...हममें से किसी को उसका भान नहीं... कोई उचित मार्गदशक भी नही....आपका जाना ठीक नही। इस बार हम सैनिकों की संख्या बढ़ा जंगल को भेजते है। शायद कुछ पता चले।
एक पल को महाराज भी सोच में पड़ गए। फिर कहा शायद ये ठीक होगा।पर अब और वक्त बर्बाद नही किया जा सकता।हमे वो दोनों किसी कीमत पे चाहिए। तीन माह बीत गए इसी खोज बीन में। 
सैनिकों से कह दे अगर इस बार वो खाली हाथ आए तो मैं खुद उनका जबह करूंगा। 
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अहले सुबह ही भीलों की एक टुकड़ी के साथ दो श्रवण सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने और अन्य योजनाओं को फलीभूत करने बस्ती छोड़ ढलाव से नीचे जंगल को विदा हुए।
नदी किनारे पहुंच चाक-चौबंद व्यवस्था की। नदी किनारे कीलनुमा लकड़ियों का जाल बिछा दिया। ताकि हाथी-घोड़े के चलने और पैदल सैनिक को रोका जा सके। सूखे खड़ों में समय रहते आग लगाने की व्यवस्था की गई। जगह-जगह नये खड्ढे खोद उसे जल से भर मगरमच्छ छोड़ दिये गए। कंटीले कैक्टस का  दीवार बनया गया। पेड़ों में छिपने की जगह और नुकीले प्रक्षेपास्त्र नियोजित किये गए। झील के पानी मे और जहर डाल उसके किनारे दलदल बनाया गया। तरह-तरह की व्यवस्था को जांचा परखा गया। झील के ऊपर, मार्ग के दोनों और गुलेल धारियों के छुपने की व्यवस्था की गई। अंतिम पड़ाव पे चट्टान से रास्ता रोक अस्त्र-शस्त्र धरियों के लिए मोर्चा बनाया गया।
आस्वस्थ हो जाने के बाद वो ऊपर जाने ही वाले थे कि दूर नदी में हलचल दिखा। तकरीबन 500 डोंगी पानी मे तैरता दिखा।
खतरे को भांप एक भील ने सिंघ से बने एक पाइप को जोर से फूंकना शुरू किया।आवाज पहाड़ों से टकरा गूंज उठा।जंगल मे  भी हलचल शुरू हो गया।
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भीलों की अलग-अलग टुकड़ियां मोर्चे पे आ डटी। बस्ती के नवयुवक गुलेलों के साथ अपने स्थान पे जा छिपे। चारों श्रवण धनुष और बाण ले ऊंचे टीलों पे तैनात हो गए। लकड़हारे योजनानुसार जंगल मे विलीन हो गए। नवरोज और मोहन नंगी तलवारों के साथ बुजुर्ग और बच्चों के बचाव में तैनात हो गए। मशाल दल पेड़ की कोटरों में जा छिपे।
धीरे धीरे डोंगी किनारे लगने लगा। सैनिक उतर ऊंचे ऊंचे घासों के बीच समा गए।
तभी कंही ढोलक  पे थाप पड़ी और कई मशाल हवा में उड़ता हुआ सूखे घासों पे आ गिरा। लहलहा के आग फैलने लगा। मुगल सैनिकों में चिल्ल-पों और हाहाकार मच गया। वो जान बचा के आगे की और दौड़े तो नुकीले कील से उलझ गिरकर जान देने लगे। कुछ सैनिक जो आगे निकले गुलेल की मार से बिलबिलाने लगे। कुछ गड्ढे में गिर मगरमच्छ के द्वारा दबोच लिए गए। फिर भी कई सैनिक इन सबको पर कर पथरीले पथ पे पहुंच गए। तभी दोनों तरफ से पेड़ चरमराहट के साथ उनपे गिरने लगा। सैनिक बुरी तरह घिर गए थे। एकाएक भीलों ने तीर बरसाना शुरू किया।बचे सैनिक भी वंही ढेर हो गए।
जंगल मे खुशी की लहर दौड़ गई। बम बम भोले.....जय शिव शंभु का नारा गूंज उठा।
पहाड़ी से उतर श्रवणों ने सारे लाशों को ठिकाना लगाने का निर्देश दिया। कुछ को मगरमच्छ तो कुछ को दलदल में दफ़्म दिया गया।
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इस पार खड़े कुछ सैनिक जो इस भयावह लड़ाई को आंखों से देखे थे भागते हुए राजधानी पहुंचे। जब महाराज को इस बात का पता चला तो माथा पिट लिए। तुरंत लाव-लश्कर के साथ नदी के तीर पर डेरा डालने का आदेश दिया। एक भारी फौज के साथ वो स्वयं हाथी पर बैठ नदी तट को रवाना हुए।
उधर भीलों और ग्रामीणों का बैठक हो रहा था। महाराज के नदी तीर डेरा डालने की खबर उन्हें मिल चुकी थी। दुबारा सुरक्षा तंत्र को फिर से दुरुस्त करना थोड़ा कठिन था।
श्रवणों के माथे पर बल था और ऐसा प्रतीत हो रहा था वो थकने लगे हैं।
बुजुर्ग भील ने कहा....इतनी जल्दी फिर सब व्यवस्था कर पाना कठिन है। अगर वो भाड़ी संख्या में नदी पार उतरेंगे तो उन्हें रोक पाना भी कठिन होगा।पर हम घुटने नहीं टेकेंगे।अगर भोलेनाथ ने भाग्य में मृत्यु ही लिखा होगा तो लड़ के मरेंगे। 
इस बार मोहन और नवरोज भी सहमे हुए थे।बूढ़े और बच्चों की चिंता उन्हें खाए जा रही थी।
बुजुर्ग ने फिर कहा देखो हम सब मिलके जितना कर सकते है करेंगे। पहले बुजुर्गों और बच्चों को नेपाल की तराई भेजने का प्रबंध करो।
सबने सहमति जताई
वो आगे बोले मुगल हमे मौका देना नही चाहते, वो जान गए है,हम छदयम युध्द में उन्हें नहीं जितने देंगे।इस बार वो अनेक की संख्या में जंगल मे दाखिल होंगे। हार हो या जीत हमे लड़ना होगा।
सबने हुंकार भड़ी।
बुजुर्ग भील ने एक युवक भील को कुछ समझाया।वो तत्क्षण धनुष उठा विदा हो गया। बांकी की तैयारी का जिम्मा दो श्रवणों ने ली। आनन-फानन में सारे लोग अपने अपने काम मे जुट गए।दो श्रवण बूढ़े-बच्चों को ले उत्तर की और रवाना हो गए।
पर्दा खींच जाता है
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दिलखुश पर्दे के पीछे उदास हो चला था। उसने फिर पर्दे के पीछे से झांक कर महिलाओं के भीड़ पे नजर डाली। दिल धक से धड़क उठा। सरोज मंच से ठीक एक फर्लांग की दूरी पे खड़ी दिखी। छोटकी उसके साथ थी। वो भीड़ के आगे आने की जद्दोजहद में थी।
मन आशंकित से हुआ.....छोटकी सरोज के साथ.....माई?...हे भगवान कुछ गड़बड़ तो नही। दिल धार-धार बजने लगा। 
तभी भोलन चाचा अंदर आके मेरा माथा चुम लिए।बोले तुम अमर हो गया रे दिलखुशबा। DM साब खूब प्रशंसा किये है। पूरे नाटक मंडली को बधाई दिए हैं।  बस दो सीन और बचा है। लोग तुमका कभी नही भूल पाएंगे।
मैं बस उसका मुंह ताकता रहा।
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दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #हमरी प्रेम कहानी भाग 12

#CityEvening
हमरी प्रेम कहानी भाग 12
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विधिवत शिव की पूजा कर उसे एक बड़े चट्टान पर स्थापित किया गया।कंदमूल का भोग लगा चंदन लेपन किया गया।फूलों से सजा अभिमंत्रित किया गया। युवकों के झुंड ने आनन-फानन में लकड़ी और बांस को जोर मन्दिर का निर्माण किया। सभी जनों में प्रसाद वितरण कर शुभ की कामना की गई। 
नवरोज सारे समय ऊर्जावान और उत्साहित हो सबों का साथ देती रही।
दोपहर में सहभोज का आयोजन हुआ।नवरोज पहली बार इतने लोगों के साथ पंक्ति में बैठ भोजन कर रही थी। भोजन 
करते हुए सुरक्षा और अन्य बातों पे चर्चा जारी था।
एक नवयुवक ने जोश के साथ कहा। भैया हमलोग जान दे देंगे लेकिन अपनी धरती छोड़ किसी की शरण नही लेंगे। अब यही अपना गांव है और हम सब यंही एक साथ जिएंगे मरेंगे।
कुछ अन्य युवकों ने सहमति जताई। 
एक बुजुर्ग ने भी सहमति जताते हुए कहा हम सब मिलके यंही संसाधन विकसित करेंगे।भोलेनाथ अपने साथ है।हम इस गांव का नाम "शिव नगरी"रखेंगे।अगर आप सब की सहमति हो तो मोहन हमारे प्रधान के रूप में हम सबका नेतृत्व करेंगे। किसी भी बाधा से हम सब मिलके निबटेंगे।
सभी लोगों ने एक साथ मोहन को अपना प्रधान चुन लिया।
भोजन की समाप्ति के बाद लोग आराम करने को विदा हुए।
मोहन और नवरोज भी एक पेड़ की छांव में सुस्ताने लगे।
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दूर से पीताम्बर धारण किये दोनों श्रवण और वो पांच लकड़हारे आते दिखाई दिए। मोहन और नवरोज सजग बैठ गए।
जब वो नजदीक आ गए नवरोज अंदर घड़े से शीतल जल ले आई। दोनों आके मोहन को प्रणाम किये और सामने बैठ गए।थोड़ा सुस्ताने के बाद बोलना शुरू किए। 
प्रधान जी। सैनिक की एक टुकड़ी नदी पार उतरे थे। आज सुबह उनसे झड़प हुई । 12 सैनिकों को नवयुवक दल ने मौत के घाट उतार दिया।बचे 9 सैनिक अपने सुरक्षा तंत्र के शिकार हो गए। उनके शवों को ठिकाना लगा दिया गया है।छदयम युद्ध मे नवयुवक दल पारंगत हो गए है। पर ऐसे बहुत दिनों तक सैनिकों को रोक पाना मुश्किल है। सुरक्षा के इंतेजाम और मजबूत करने होने या फिर हम सभी को साथ ले हिमालय के तरफ बढ़ ले। 
मोहन और नवरोज दोनों चिंता में डूब गए। बूढ़े बुजुर्ग,स्त्री युवा और बच्चे मिला कर कुल 200 जन होंगे। कैसे बचा जा सकेगा इस क्रूर तंत्र से। 
आगंतुकों को फलाहार और जल पड़ोस विश्राम का निर्देश दे मोहन और नवरोज बरछी और धनुष उठा छोटी पहाड़ी की ओर बढ़ गए।
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रास्ते मे मोहन ने कहा पहाड़ी के उस पार भीलों की एक बस्ती है ये उचित होगा कि हम उनसे मदद मांगे। वो सदियों से आजाद रहते आये हैं और शिव के उपासक है।शायद हमारी मदद करने को आगे आए।इस जंगल पे सदियों से उनका अधिकार है। ये अलग बात है वो थोड़े क्रूर और लड़ाकू है।पर मुझे लगता है कभी भी मुगलों की सत्ता कुबूल करना नही चाहेंगे।
बात ही बात में वो पहाड़ी के उस पार पहुंच गए।अभी और दो कदम चले ही थे कि सरसराता हुआ एक तीर गर्दन को छूता हुआ चट्टान से आ टकराया। इससे पहले दोनों होश संभालते कुछ काले सायो ने उन्हें घेर लिया।
गले में कौड़ियों की माला,माथे पे पक्षियों का पंख बांधे, कमर से जानवर की छाल लपेटे हाथों में भाला लिए अजीब क्रूरता से वो दोनों को देखने लगे।
एक ने कुछ इशारा किया।एक अन्य आगे बढ़ मोहन और नवरोज के सारे अस्त्र झपट लिया। एक कैदी की तरह उन्हें साथ ले बस्ती की ओर बढ़ने लगे।
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बस्ती में एक बुजुर्ग उसी भेष-भूसा में पेड़ के कटे तने पर बैठा गांजा पीता नजर आया। गांजे की लहर से आंखे लाल और चढ़ी हुई थी। सामने आग पे एक सुअर को पकाया जा रहा था। कुछ अर्धनग्न सी स्त्रियां घास काटने में व्यस्त दिखी। कुछ नवयुवक पेड़ पे चढ़ने उतरने के खेल में मशगूल थे।
दोनों को बुजुर्ग के सामने खड़ा कर सब पीछे हट गए। बुजुर्ग ने खड़खड़ाती आवाज में पूछा कहाँ से आए हो? भील प्रदेश में अजनबियों का प्रवेश निषेध है।क्या उद्देश्य है तुम्हारा?कंही कोई जासूसी तो नही कर रहे थे?
दोनों ने उनका अभिवादन किया।मोहन ने कहना प्रारंभ किया
"महोदय हमारी आपके प्रदेश में आने का कारण आपसे मदद की गुहार है। हम और हमारे भाई बंधु मुगलों से परेशान है। कुछ दिन पूर्व उन्होंने हमारे खेतों -घरों को जला दिया। उन्होंने हमारे गुरुकुल के गुरु की हत्या की। अपने साम्राज्य में  वेद और मंत्रोच्चारण पे पावंदी लगा दी। हमारे शिव मंदिर को तोड़ने की चेष्टा की।लोगों के हत्या का फरमान निकाला।नवरोज की ओर इशारा कर बोला हम दो प्रेमियों को पकड़ लाने का आदेश दिया है।
बुजुर्ग भृकुटि पे बल डाले एक-एक बात सुनता रहा। 
मोहन ने आगे कहा"महोदय हम अपने लोगों के साथ पहाड़ी उसपार जंगल मे शरण लिए है। सूचना मिली है सैनिक हमे ढूंढते फिर रहे। स्त्रियों,बच्चों और बुजुर्गों की रक्षार्थ आपसे मदद मांगने आए है।
बुजुर्ग ने ताव में आकर कहा "तो क्या मुगल नदी पार करने लगे हैं? ये ठीक नही। फिर वो वन्य जीव को मारेंगे।पेड़ काटेंगे।स्त्रियों बच्चों को उठा ले जाएंगे। हमारे लोगों ने आज तक किसी मुगल को नदी पार आने पर जिंदा वापस नही जाने दिया। इस जंगल का उन्हें भान तक नही। अब वो ऐसा करने लगे।आराध्य देव महादेव को मिटाने की चेष्टा कर रहे। "भानुदेव" के रहते उन्होंने फिर से नदी पार किया,उन्हें इसकी सजा मिलेगी। हाँ हम आपकी सुरक्षा में खरे उतरे या न उतरे पर आप शैव है यही काफी है हमारे लिए। शिव अनंत है...इसे मिटाने वाले को मिटना होगा...भद्र आप सकुशल अपने क्षेत्र में निवास करे। इस जंगल मे सदियों से हमारा वंसज हैं पर ये सृष्टिकर्ता की रचना है।हमने इसे कभी अपना नहीं कहा।इसपर हर भू-बासी का समान अधिकार है। आज से आप और आपके लोग हमारे अतिथि भी है और सगे भी। मुगल जंगल मे आए तो वापस नही जाएंगे आपसे वादा है। 
मोहन और नवरोज भावयुक्त हो उसके विशाल हृदय को नमन करने लगे। 
एक भील ने सारे अस्त्र-शस्त्र दोनों को सौंप दिया।मार्ग प्रसस्त करते हुए पहाड़ी के इस पार सकुशल पहुंचा दिया।
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महाराज अपने शयनकक्ष में हुक्के की कश खींचते हुए थोड़े चिंतित दिखते है। सैनिकों की टुकड़ी को जंगल गए 5 दिन हो गए। ना कोई खबर आया ना सैनिक वापस आए। ऐसा क्या है इस जंगल मे?
महाराज एक बार खुद नदी पार जाने की योजना बनाने लगे। राजकुमारी की चिंता अलग खाए जा रही थी। सजा देने को प्राण ब्याकुल हुआ जा रहा था.... राजकुमारी,एक हिन्दू लड़के के साथ चली गई.....नापाक कर गई सल्तनत को....जगहँसाई करवा दी मेरी....नहीं... नहीं... दोनों को जिंदा दफन करूंगा।
मंत्रयों को बुला तत्काल कल सुबह जंगल जाने की तैयारी करने को कहा।
एक बुजुर्ग मंत्री ने कहा...महाराज विहर खतरनाक है...हममें से किसी को उसका भान नहीं... कोई उचित मार्गदशक भी नही....आपका जाना ठीक नही। इस बार हम सैनिकों की संख्या बढ़ा जंगल को भेजते है। शायद कुछ पता चले।
एक पल को महाराज भी सोच में पड़ गए। फिर कहा शायद ये ठीक होगा।पर अब और वक्त बर्बाद नही किया जा सकता।हमे वो दोनों किसी कीमत पे चाहिए। तीन माह बीत गए इसी खोज बीन में। 
सैनिकों से कह दे अगर इस बार वो खाली हाथ आए तो मैं खुद उनका जबह करूंगा। 
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अहले सुबह ही भीलों की एक टुकड़ी के साथ दो श्रवण सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने और अन्य योजनाओं को फलीभूत करने बस्ती छोड़ ढलाव से नीचे जंगल को विदा हुए।
नदी किनारे पहुंच चाक-चौबंद व्यवस्था की। नदी किनारे कीलनुमा लकड़ियों का जाल बिछा दिया। ताकि हाथी-घोड़े के चलने और पैदल सैनिक को रोका जा सके। सूखे खड़ों में समय रहते आग लगाने की व्यवस्था की गई। जगह-जगह नये खड्ढे खोद उसे जल से भर मगरमच्छ छोड़ दिये गए। कंटीले कैक्टस का  दीवार बनया गया। पेड़ों में छिपने की जगह और नुकीले प्रक्षेपास्त्र नियोजित किये गए। झील के पानी मे और जहर डाल उसके किनारे दलदल बनाया गया। तरह-तरह की व्यवस्था को जांचा परखा गया। झील के ऊपर, मार्ग के दोनों और गुलेल धारियों के छुपने की व्यवस्था की गई। अंतिम पड़ाव पे चट्टान से रास्ता रोक अस्त्र-शस्त्र धरियों के लिए मोर्चा बनाया गया।
आस्वस्थ हो जाने के बाद वो ऊपर जाने ही वाले थे कि दूर नदी में हलचल दिखा। तकरीबन 500 डोंगी पानी मे तैरता दिखा।
खतरे को भांप एक भील ने सिंघ से बने एक पाइप को जोर से फूंकना शुरू किया।आवाज पहाड़ों से टकरा गूंज उठा।जंगल मे  भी हलचल शुरू हो गया।
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भीलों की अलग-अलग टुकड़ियां मोर्चे पे आ डटी। बस्ती के नवयुवक गुलेलों के साथ अपने स्थान पे जा छिपे। चारों श्रवण धनुष और बाण ले ऊंचे टीलों पे तैनात हो गए। लकड़हारे योजनानुसार जंगल मे विलीन हो गए। नवरोज और मोहन नंगी तलवारों के साथ बुजुर्ग और बच्चों के बचाव में तैनात हो गए। मशाल दल पेड़ की कोटरों में जा छिपे।
धीरे धीरे डोंगी किनारे लगने लगा। सैनिक उतर ऊंचे ऊंचे घासों के बीच समा गए।
तभी कंही ढोलक  पे थाप पड़ी और कई मशाल हवा में उड़ता हुआ सूखे घासों पे आ गिरा। लहलहा के आग फैलने लगा। मुगल सैनिकों में चिल्ल-पों और हाहाकार मच गया। वो जान बचा के आगे की और दौड़े तो नुकीले कील से उलझ गिरकर जान देने लगे। कुछ सैनिक जो आगे निकले गुलेल की मार से बिलबिलाने लगे। कुछ गड्ढे में गिर मगरमच्छ के द्वारा दबोच लिए गए। फिर भी कई सैनिक इन सबको पर कर पथरीले पथ पे पहुंच गए। तभी दोनों तरफ से पेड़ चरमराहट के साथ उनपे गिरने लगा। सैनिक बुरी तरह घिर गए थे। एकाएक भीलों ने तीर बरसाना शुरू किया।बचे सैनिक भी वंही ढेर हो गए।
जंगल मे खुशी की लहर दौड़ गई। बम बम भोले.....जय शिव शंभु का नारा गूंज उठा।
पहाड़ी से उतर श्रवणों ने सारे लाशों को ठिकाना लगाने का निर्देश दिया। कुछ को मगरमच्छ तो कुछ को दलदल में दफ़्म दिया गया।
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इस पार खड़े कुछ सैनिक जो इस भयावह लड़ाई को आंखों से देखे थे भागते हुए राजधानी पहुंचे। जब महाराज को इस बात का पता चला तो माथा पिट लिए। तुरंत लाव-लश्कर के साथ नदी के तीर पर डेरा डालने का आदेश दिया। एक भारी फौज के साथ वो स्वयं हाथी पर बैठ नदी तट को रवाना हुए।
उधर भीलों और ग्रामीणों का बैठक हो रहा था। महाराज के नदी तीर डेरा डालने की खबर उन्हें मिल चुकी थी। दुबारा सुरक्षा तंत्र को फिर से दुरुस्त करना थोड़ा कठिन था।
श्रवणों के माथे पर बल था और ऐसा प्रतीत हो रहा था वो थकने लगे हैं।
बुजुर्ग भील ने कहा....इतनी जल्दी फिर सब व्यवस्था कर पाना कठिन है। अगर वो भाड़ी संख्या में नदी पार उतरेंगे तो उन्हें रोक पाना भी कठिन होगा।पर हम घुटने नहीं टेकेंगे।अगर भोलेनाथ ने भाग्य में मृत्यु ही लिखा होगा तो लड़ के मरेंगे। 
इस बार मोहन और नवरोज भी सहमे हुए थे।बूढ़े और बच्चों की चिंता उन्हें खाए जा रही थी।
बुजुर्ग ने फिर कहा देखो हम सब मिलके जितना कर सकते है करेंगे। पहले बुजुर्गों और बच्चों को नेपाल की तराई भेजने का प्रबंध करो।
सबने सहमति जताई
वो आगे बोले मुगल हमे मौका देना नही चाहते, वो जान गए है,हम छदयम युध्द में उन्हें नहीं जितने देंगे।इस बार वो अनेक की संख्या में जंगल मे दाखिल होंगे। हार हो या जीत हमे लड़ना होगा।
सबने हुंकार भड़ी।
बुजुर्ग भील ने एक युवक भील को कुछ समझाया।वो तत्क्षण धनुष उठा विदा हो गया। बांकी की तैयारी का जिम्मा दो श्रवणों ने ली। आनन-फानन में सारे लोग अपने अपने काम मे जुट गए।दो श्रवण बूढ़े-बच्चों को ले उत्तर की और रवाना हो गए।
पर्दा खींच जाता है
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दिलखुश पर्दे के पीछे उदास हो चला था। उसने फिर पर्दे के पीछे से झांक कर महिलाओं के भीड़ पे नजर डाली। दिल धक से धड़क उठा। सरोज मंच से ठीक एक फर्लांग की दूरी पे खड़ी दिखी। छोटकी उसके साथ थी। वो भीड़ के आगे आने की जद्दोजहद में थी।
मन आशंकित से हुआ.....छोटकी सरोज के साथ.....माई?...हे भगवान कुछ गड़बड़ तो नही। दिल धार-धार बजने लगा। 
तभी भोलन चाचा अंदर आके मेरा माथा चुम लिए।बोले तुम अमर हो गया रे दिलखुशबा। DM साब खूब प्रशंसा किये है। पूरे नाटक मंडली को बधाई दिए हैं।  बस दो सीन और बचा है। लोग तुमका कभी नही भूल पाएंगे।
मैं बस उसका मुंह ताकता रहा।
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दिलीप कुमार खाँ"अनपढ़" #हमरी प्रेम कहानी भाग 12

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