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चाँद सी महबूबा की ख़्वाहिश सब रखते हैं, पर उस चाँद

 चाँद सी महबूबा की ख़्वाहिश सब रखते हैं,
पर उस चाँद को कौन कितना ख़ुश रखते हैं..!

चार दिन तक लगाते हैं मोहब्बत का मरहम,
अरे! बाद इसके कहाँ कब किसको दिखते हैं..!

ख़तों को छुपाकर सिखा कर ज़िन्दगी का सबक,
अपनी बुराइयों को भी अच्छाईयाँ लिखते हैं..!

बेशक़ीमती ख़ज़ाना बता कर ख़राब ज़माना,
दीवाने ख़ुद कौड़ियों के दाम बिकते हैं..!

नहीं ख़राबी मोहब्बत के महल सजाने में पर,
सादगी पसंद सोच यहाँ कोई कोई ही रखते हैं..!

©SHIVA KANT
  #Remember #chandsimehbuba