यहाँ हर शख्स कहता है कि जमाना खराब है। खुद से पूछो नसों में दौड़ती कौन सी शराब है। कहते फिरते हैं सब सभी से ये गलत वो गलत , पर खुद से सही रखता कोई कितना हिसाब है। चाहते हैं सभी कि हर कोई सच के रास्ते पे चले, पर खुद न चल के औरों को चलाते बेहिसाब हैं। इंसान इतना ओछा हो चुका है बनावटीपन में, के हर बात का जवाब ही पत्थर का जवाब है। दूसरों पे ऊँगली उठाना तो होता है बहुत आसां, खुद के सर लगे इल्ज़ाम तो माथे पे इज़्तिराब है। READ HERE👇👇👇👇.. यहाँ हर #शख्स कहता है कि #जमाना #खराब है। खुद से पूछो नसों में दौड़ती कौन सी #शराब है। कहते फिरते हैं सब सभी से ये #गलत वो गलत , पर #खुद से सही रखता कोई कितना #हिसाब है। चाहते हैं सभी कि हर कोई #सच के रास्ते पे चले,