तू क्या जाने किस कद्र तेरे झूठ के तलबगार हैं हम तू गुमराह ही कर दे भटकने को भी तैयार हैं हम। तू कहे दिन को रात तो हमारी क्या विसात कुछ और कहें नाकार्दा गुनाहों की भी दे तू सजा तो गुनाहगार हैं हम। कह कर दो देखो सर काट कर तेरे कदमों में रख दें तू क्या जाने तेरे हुक्म के कैसे फरमाबरदार हैं हम। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ फरमाबरदार