मेघों सा मैं सावन से बाट जोहते तुम आओ मिलें करे सृष्टि उद्धार... बादलों सा रंग लिए खड़ा मैं... प्रेम स्पर्श को तरसती जूड़ा खोले धरती सी तुम... केश संवारुं रंग भरूं, ले आज्ञा काजल से तेरे करूं आरंभ प्रणय विहार... Not sure kya likh diya maine, bas quite spontaneous... आगे लगेगा कुछ ठीक करना है तो कर लूंगा...फिलहाल तो ये बादल देख के यही ख़्यालात आये... #modishtro #deepakkanoujia #pradhunik Good evening Writers!