हर ज़र्रा इस मकां का कह रहा तू दूर भले ही कितना हो मुझसे मेरे कमरे की खामोशी तेरा दर्द पहचानती आज भी तू जब-जब रोया होगा अपने उस शामियाने में आंसू तेरे ये फर्श आज भी पहचान लेगा और तेरे होंठों की मुस्कान को अपनी मुस्कान समझ लेता है पुराना आवाश #पुरानीयादें