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हर ज़र्रा इस मकां का कह रहा तू दूर भले ही कितना ह

हर ज़र्रा इस मकां का कह रहा 
तू दूर भले ही कितना हो मुझसे
मेरे कमरे की खामोशी 
तेरा दर्द पहचानती आज भी
तू जब-जब रोया होगा
अपने उस शामियाने में
आंसू तेरे ये फर्श आज भी 
पहचान लेगा और तेरे 
होंठों की मुस्कान को 
अपनी मुस्कान समझ लेता है पुराना आवाश
#पुरानीयादें
हर ज़र्रा इस मकां का कह रहा 
तू दूर भले ही कितना हो मुझसे
मेरे कमरे की खामोशी 
तेरा दर्द पहचानती आज भी
तू जब-जब रोया होगा
अपने उस शामियाने में
आंसू तेरे ये फर्श आज भी 
पहचान लेगा और तेरे 
होंठों की मुस्कान को 
अपनी मुस्कान समझ लेता है पुराना आवाश
#पुरानीयादें
safar1751828513687

Safar

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