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White अंधों को अंधेरे से, कोई फर्क नहीं पड़ता उगते

White अंधों को अंधेरे से, कोई फर्क नहीं पड़ता उगते सूरज से भी, कोई फर्क नहीं पड़ता

दिखाई नहीं देता उन्हें, सच-झूठ का आईना आँखों में बँधी पट्टी से भी, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता

जिन्हें आदत हो जाती है, गुलामी में रहने की उन्हें अपनी आज़ादी से भी, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता

जो बार-बार दिखाते है, उसे ही सच मान लेते हैं दिल के समझाने पर भी, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता

कभी-कभी जो दिखता है, जरुरी नहीं वो सच हो इन्हें हकीक़त दिखाने से भी, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता..!!

©पूर्वार्थ
  #कुछ 

कुछ  #Poetry

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