तु होतें हुए भी ,मेरे जीवन में इतना अन्धेरा क्यों! तु सबको राह दिखाती, फिर भी में भटका क्यों! मेरी परछाई मेरी तन्हाई की साथी थीं, उसे मुझसे छिन्नी क्यों! सबको दुनिया की सुन्दरता दिखाती, मुझसे ईतनी फरेब क्यों! हर एक आंखों को अपना मानती तु, फिर मुझीसे ही रूठी क्यों! तु होतें हुए भी मेरे जीवन में इतना अन्धेरा क्यों! तु सबको राह दिखाती, फिर भी में भटका क्यों! मेरी परछाई मेरी तन्हाई की साथी थीं, उसे मुझसे छिन्नी क्यों! सबको दुनिया की सुन्दरता दिखाती, मुझसे ईतनी फरेब क्यों! हर एक आंखों को अपना मानती तु, फिर मुझीसे ही रूठी क्यों!