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सोलह शृंगार । (Read in caption) ©Jayesh gulati *

सोलह शृंगार ।

(Read in caption)

©Jayesh gulati *सोलह शृंगार*

मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को ।
वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।।

पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका ।
जैसे बादल ने, सजाया हो माथे पर चांद को ।।
सोलह शृंगार ।

(Read in caption)

©Jayesh gulati *सोलह शृंगार*

मैं नासमझ, कहां समझता था, किसी शृंगार को ।
वो जिसने किए मेरे लिए सोलह शृंगार ।।

पहले पहना माथे उन्होंने, माँग–टिका ।
जैसे बादल ने, सजाया हो माथे पर चांद को ।।