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प्रजातंत्र में प्रजा अलग, तन्त्र अलग। प्रजा तो पाॅ

प्रजातंत्र में प्रजा अलग, तन्त्र अलग।
प्रजा तो पाॅंच साल में एक बार;
उॅंगली में स्याही लगवा कर खुश हो लेती है;
तन्त्र को ले उड़ जाने वाले सभी स्तंभ
क्या ठाठ की राजशाही जीते हैं,
पाॅंच साल लगातार, बार बार।
गरीब भोले जेल झेलें,
तन्त्र को क्या, तकरीरें करें।
इन अक्षमों को ढंग से तन्त्र चलाना भी नहीं आता;
नहीं तो प्रजातंत्र का पलटी मार निर्वाचन होता क्या?
भोले निर्दोष लोगों को बेल लेने से डर लगता क्या?
ब्रितानी पुलिसिया तन्त्र आज तक चलता रहता क्या?
जो दफा चाहे, वो लगा पाता क्या?
कलम की स्याही कभी सूख जाती क्या?
लिखने वाला सच लिखने से डरता क्या?

©R S Jaipuriar #प्रजातन्त्र
प्रजातंत्र में प्रजा अलग, तन्त्र अलग।
प्रजा तो पाॅंच साल में एक बार;
उॅंगली में स्याही लगवा कर खुश हो लेती है;
तन्त्र को ले उड़ जाने वाले सभी स्तंभ
क्या ठाठ की राजशाही जीते हैं,
पाॅंच साल लगातार, बार बार।
गरीब भोले जेल झेलें,
तन्त्र को क्या, तकरीरें करें।
इन अक्षमों को ढंग से तन्त्र चलाना भी नहीं आता;
नहीं तो प्रजातंत्र का पलटी मार निर्वाचन होता क्या?
भोले निर्दोष लोगों को बेल लेने से डर लगता क्या?
ब्रितानी पुलिसिया तन्त्र आज तक चलता रहता क्या?
जो दफा चाहे, वो लगा पाता क्या?
कलम की स्याही कभी सूख जाती क्या?
लिखने वाला सच लिखने से डरता क्या?

©R S Jaipuriar #प्रजातन्त्र