मैं ढूंढती हूं अब तलक अस्तित्व क्या है मेरा बस एक लौ हूं या खुद में हूं सबेरा खंगालती हूं आजतक पहचान क्या है मेरी खुद में खुद की शान हूं या मर्द की जरूरी क्यूं तुम अपने चेहरे के पीछे नकाब रखते हो कभी दुर्गा कभी काली बनाकर क्यूं मंदिरों में पूजते हो फिर मां बहन की गालियां में नाम हमारा रटते हो प्यार के बहाने बस जिस्म में तुम सटते हो क्यूं रात के गुमनाम अंधेरे में तुम तुम प्रहार करते हो किसलिए ये दिखावा ये झूठा प्यार करते हो मैं ढूंढती हूं अब भी पहचान क्या है मेरी खुद में गुमान हूं या मर्द की जरूरी #realtiy