तपती धूप, पसीना ,पानी। घर चलाने मे बिक गई जवानी। "बसा-बना सबको" वो सोचा, "बैठू मैं भी मान से"। किया क्या है इसने आजतक सब सुनाने लगे शान से। बिना जिसके चुल्हा तक न जलता था। घर चलाने को पल-पल जो मरता था। सुन यह बात काप गया शरीर, मगर मरा नही उसका जागीर। छोटे-छोटे बच्चे थे उसके, फिर थामी उसने शमशीर। देख बच्चे को अपने, हिम्मत जुटा आवाज उठाई। ऑखे मे आशु आ जाते, देते देते उसे सफाई। अब खुदा तेरी बारी, करनी होगी तुझे सुनवाई।। #big_brother