ज़माने के ताने वो जब पूछते मुझसे... ये आता जो तेरे इन ख्यालों का सिलसिला है कहाँ इसे पढ़ा है,क्या कहीं ऐसा लिखा मिला है क्या ख़ुद ही इसे गढ़ा है या बस देख कर लिखा है या जो दिखा न कभी ये उस दर्द का सिला है क्या कोई गम बड़ा बहुत मिला है या किसी से कोई गहरा शिकवा- गिला है तो कहती यही उनसे ... जो मन में है मेरे वही तो रचा है ये सब उसका ही तो निकला है यूँही नहीं इन पन्नों पर ये उभरा है ये तो यहाँ दबे शोलों की बस हवा है एक झोंके में तो नहीं निकल सका है खुलकर कहें तो...अभी सब अंदर ही भड़क रहा है ©Deepali Singh ज़माने के ताने