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एक उम्र गुजार दी मैंने ख्वाहिशों के ख्यालों मे!

एक उम्र गुजार दी मैंने ख्वाहिशों के ख्यालों मे! 

ख्वाहिश तो कब के अधूरे ही छुट गए, 
पर आज भी कैद हूँ मैं अपने ही ख्यालों मे।

©Shayar Suryavanshi
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