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अपराधों की श्रृंखला (दोहे) अपराधों की श्रृंखला, क

अपराधों की श्रृंखला (दोहे)

अपराधों की श्रृंखला, का फिर से विस्तार।
जगह-जगह से मिल रही, खबर देख हर बार।।

कई तरह के जुर्म हैं, जिसको दें अंजाम।
बिना डरे ही ये करें, दहशत वाले काम।।

जीना ही दुश्वार है, शैतानों के बीच।
कर्म करें ये कौन सा, जाने कैसे नीच।।

अपराधों से है भरा, देख आज अखबार।
कितनों की गिनती करें, छोड़ें भी हर बार।।

प्रेम जाल में जो फंँसी, हो श्रृद्धा सा हाल।
अपराधों में यह जुड़ा, हुआ देख विकराल।।

सख्त हुआ कानून है, फैंका ऐसा जाल।
मुजरिम को फिर है धरा, खींची उसकी खाल।।

न्याय मिले जब देर से, परिजन हैं लाचार।
अपराधी हैं घूमते, पीड़ित करें गुहार।।

न्याय प्रणाली चुस्त हो, अपराधी भयभीत।
जुर्म मिटे तब हों सुखी, तभी मिले फिर जीत।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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अपराधों की श्रृंखला (दोहे)

अपराधों की श्रृंखला, का फिर से विस्तार।
जगह-जगह से मिल रही, खबर देख हर बार।।

कई तरह के जुर्म हैं, जिसको दें अंजाम।
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Devesh Dixit

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