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गिन गिनकर मेरी गलतियों का हिसाब देने वाली रह रहकर

गिन गिनकर मेरी गलतियों का हिसाब देने वाली
रह रहकर साथ, आदते खराब देने वाली 
जिसके दिए ख़त आज तक रखें हुए है मैंने 
थम थमकर याद आती है वो गुलाब देने वाली 

सूनी सी रातों को मेरी महताब देने वाली 
अनसुलझे से हर प्रशन का जवाब देने वाली
इन आँखों से नाजाने क्यों एक अरसे से ओझल है 
उन मयमयी आँखों में मुझको ठहराव देने वाली 

मेरे साधारण से जीवन को बदलाव देने वाली 
अधरों से अधरों को छूकर बहाव देने वाली 
शायद से जिंदगी का मतलब समझाने आयी थी वो 
अपना कहकर सहसा ही फिर अलगाव देने वाली 

मोहब्बत में मोहब्बत का अभाव देने वाली 
सब छीन किताबें हाथों में शराब देने वाली 
पागल थी पागल सी हाँ वो सचमुच पागल लगती थी 
खामोश समुन्दर को कातिल सैलाब देने वाली

©AK Panchal
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AK Panchal

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