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kaviprahlad3938
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Kumar Prahlad

hindi poet

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Kumar Prahlad

यू न समझो कि ठहर गया हूँ थककर,
रफ़्तार धीमी ही सही पर चल रहा हूँ मैं।
माना कि अंधेरे बहुत है हवाओं के संग,
थोड़ा धीमा ही सही पर जल रहा हूँ मैं।
हाँ वक्त की ठोकरों से सहमा जरूर था,
पर अपने बुलंद इरादों से सम्भल रहा हूँ मैं।
कह दो इन मंजिलो से कि बहुत हुआ अब,
वक्त आ गया है इतिहास बदल रहा हूँ मैं।

©Kumar Prahlad #इतिहासबदलना
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Kumar Prahlad

वो मगरूर थे अपने हुस्न-ए-शबाब में।
हम किताबो से मोहब्बत कर बैठे।

©Kumar Prahlad #Quote  #ishkmuhobbat #Mobbhat
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Kumar Prahlad

मन री बता सुन-सुनकर के कान बहरा हो गया।
5 साल में हुई परीक्षा पप्पू फिर से रह गया।
मोटा भाई को दे गया है शकुनि पासे अपने।
और फिर धरे के धरे रह गए आडवाणी के सपने।
चाली ऐसी या फूल की बहार पाक घबरायो रे।
आयो आयो यो कालोबाजार भ्रष्टाचार छायो रे।
PNB में कर घोटाले लंदन भागा माल्या।
पंजा पंच मार सका ना, न अब के हाथी चाल्या।
दलितों का दलिया खा गया नितीश जनता वाला।
शीत लहरों से सबूत मांगे मफलर दिल्ली वाला।
हो ये राजनीति का खेल है बेकार झूठ मंडरायो रे।
आयो आयो यो कालोबजार भ्रष्टाचार छायो रे।
न आया था ना आएगा विदेशों से काला धन।
अन्ना भोले मन वाले हे जो कर रह अनशन।
स्विस बैंक में जमा हो गया भारत का रुपइया।
और नेता साथ चाबी लेकर भूमिगत हे भइया।
ये तो सब है चौरा का सरदार किसे समझावो रे।
आयो आयो यो कालोबाजार भ्रष्टाचार छायो रे।
नेता का सजे घर बार कालो धन कमाओ रे। agar is poem se kisi ko thes pahuchi ho to mafi chahunga

agar is poem se kisi ko thes pahuchi ho to mafi chahunga #कविता

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Kumar Prahlad

बस इतना सा फर्क है तेरे शहर में और मेरे गाँव मे।
जैसे फर्क होता है तेज धूप के बीच घनी छाँव में।
वहाँ पानी तक की कीमत अदा की जाती है।
यहाँ तो दूध की नदियां भी बहा दी जाती हैं।
कुरीति मानी जाती है मेरे गाँव की घूंघट प्रथा,
और तेरे तंग लिबास को फैशन बता दी जाती है।
कुछ तो अलग है इन ऊची इमारतों के बर्ताव में।
बस इतना सा फर्क ........
तेरे शहर में बदन को परफ्यूम से सजाया जाता है ।
यहाँ मिट्ठी लगे कमीज को पसीने में भिगोया जाता है।
शायद नेह का मूल्यों में निर्धारण होता होगा वहाँ,
इसलिए तेरे शहर में वृद्धाश्रम बनाया जाता है।
यहाँ का मिजाज जुदा है इन पहाड़ो के लगाव में
बस इतना सा फर्क .........
तेरे शहर में मैने नफरत के मेघ को गरजते देखा है
मेरे गाँव मे मेने प्रेम के बादल को बरसते देखा है।
बंन्द कमरे में घुटती है शहरी जिंदगिया, इसीलिए,
भीड़ के मेले में आदमी को अकेले तरसते देखा है।
शायद यही बात अलग अमीरी के स्वभाव में,
बस इतना सा फर्क है.........
यहाँ पर मर्यादा का बीज बोया जाता है।
वहा पर हुस्न का खेल दिखाया जाता है।
ये कैसा पाश्चात्य का असर है तेरे शहर मे,
जहाँ बदन के खेल से पैसा कमाया जाता है।
बेख़बर व्यक्ति बह जाता है इस तेज बहाव में
बस इतना सा फर्क है......
मैने एक होटल में ढेर सारा खाना फेकते देखा है।
उसी के बगल में एक भूखे बच्चे को सोते देखा है।
रो रही थी भूख से 5 बरस की बहिना उसके साथ,
दिसम्बरी सर्दी में उसको सड़क पर तड़पते देखा है।
मेरा गांव होता तो वो यू न मरते रोटी के अभाव में।
बस इतना सा फर्क है तेरे शहर और मेरे गाँव में।
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Kumar Prahlad

तू जो बनाती रोटी वो मिलती कही नहीं है।
इन ऊची होटलों में भूख बुझती मेरी नहीं है।
तेरे हाथ से बनाई वो आचार की थी चटनी,
खुश्बू भी खाने में अब आती कही नहीं है।

मैं खोया शहर की भीड़ में अब घर आना चाहता हूं।
तूने बना रखी जो खीर मीठी वो खाना चाहता हूं।
मुद्दतो से जग रहा हूँ नींद को खोजते-खोजते,
अब कुछ पल तेरे आँचल चैन से सोना चाहता हूं। माँ

माँ

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Kumar Prahlad

तू वफ़ा-ए-मोहब्बत रखती तो
मैं जमाना तेरे नाम कर देता।
तेरे आँगन को रोशन रखने में
खुद को गुमनाम कर देता।
बात इश्क की थी इसलिए
खामोशी-ए-चद्दर ओढ़नी पड़ी,
गर बात लोगो से कहता तो
जमाना तुझे बदनाम कर देता।

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Kumar Prahlad

विश्वास की डगर पर हमने दगे खाये है।
मोहब्बत में धोखे हमने हर जगह खाये है।
कवि प्रह्लाद #NojotoQuote

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Kumar Prahlad

मोहब्बत के आगोश में कभी सिमटकर देखना।
हो इश्क गर मुझसे तो कभी लिपटकर देखना।
बाहरी लफ्जो से मुझे क्या जान पाओगे तुम,
मैं समंदर से गहरा हूँ कभी डूबकर देखना।
तू क्यों जाता है फ़िजूल ही मयखाने की दर,
मैं शराब से नशीला हूँ कभी पीकर देखना।
जमाने के लिए आवारा हूँ पर तू तो ख़बर रख,
तन्हाई के आलम क्या होते कभी जीकर देखना।
चिराग बनना है तो सीने में आग रखना सिख ले,
तकलीफ क्या होती है कभी सुलगकर देखना।
मोहब्बत-ए-डगर पर आसान नहीं यू चलना,
चोट को समझना है तो फ़िसलकर देखना।
वीरानियों की सजा तुम क्या जानो जुदाई में,
हो किसी से मोहब्बत तब बिछड़कर देखना।
          #NojotoQuote कभी एक नजर से

कभी एक नजर से

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Kumar Prahlad

उलफ़्तों के घनघोर गगन में मन सूना सूना लगता है।
है आहट किसी आंधी की तूफान मचलने लगता है।
सब्र का बांध फुट गया,एक दिल मेरा भी टूट गया है,
जमा हुआ था बर्फ अब तक वो सी पिघलने लगता है।
खत्म हुआ ये दौर अपना, छाया एक सन्नाटा है,
अब तो उम्मीदों का सूरज पूर्व से ढलने लगता है।
न तुझको कुछ सुनना है ना मुझको कुछ कहना है
ये बेरंग हवा का झोंका भी अब रंग बदलने लगता है
मैने तुझको माना है पर तूने मुझको नहीं जाना।
प्रेम का ये धागा अब नफ़रत से जलने लगता है।
कुछ लफ्ज पिरोए थे, इस वियोगी मन मे मेने,
तोड़ के मेरा दिल फिर से तू राह बदलने लगता है।
                                    Kavi prahlad #NojotoQuote एक आह

एक आह

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Kumar Prahlad

Love Shayari in Hindi जरा आईनो के अक्ष को बदलकर तो देखो।
ये इश्क की डगर है जरा सम्भलकर तो देखो।
खुद-ब-खुद रूप गढ़ने लगेंगे ये साँचे,
कहानियों के संदर्भ में उलझकर तो देखो।
मोहब्बत के रिवाज तुम भौरों से समझना,
तितलियों के लिए कभी मचलकर तो देखो।
इतना आसान भी नही है ये रस्मे निभाना,
ये आग का दरिया है कभी जलकर तो देखो
मोहब्बत तो बस एक दर्शन है प्रदर्शन नहीं,
निगाहों की खामोशी को समझकर तो देखो।
                              #NojotoQuote

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