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Akhileshwar Tiwari

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Akhileshwar Tiwari

कोई जरूरी  नहीं कि तुम  मेरे पास रहो।
तुम  तो  मेरी  खास  हो  खास  हीं  रहो।
प्यार  में  दिखावा  करना कहाँ जरूरी है।
तुम मेरे दिल के करीब हो दिल में हीं रहो।

तेरी झलक नें मुझे दीवाना बना दिया था।
तेरी मुस्कान नें मुझे पागल बना दिया था।
उस  वाकया के  बाद मैं मैं कहाँ रह गया।
प्यार  के उमड़ते सागर में मैं खो गया था।

आजतक  ये  दूरी  हमें  दूर नहीं कर पाई।
समय  की  मार  प्यार को नहीं मिटा पाई।
हम  तो  पागल  दरिया हैं दरिया हीं रहेंगे।
मेरे  अंदर  के जल को गंदा नहीं कर पाई।

दूरी  में  कहाँ दम है कि दम निकाल सके।
हम  परिंदे हैं प्यार के कौन हमें  रोक सके।
हमारे   लिए   तो   पूरा  व्योम  हीं  घर  है।
किसका मजाल की हमें उड़नेसे रोक सके।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari




आवाम  को  मछली   समझा  जा  रहा  है।
रेवड़ियों  का  चारा  खिलाया   जा  रहा  है।
अपाहिज  बनाने की मन्सा है सियासत की।
पुश्त  दर  पुश्त  बंधुआ  बनाया  जा  रहा है।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari




अपने  मन   में   दीपक  जलाये  रखो।
हर   अंधकार   को   दूर  भगाये  रखो।
माचीस की तीली काफी है इसके लिए।
अपने  दिल  में  सौ  सूरज  उगाये रखो।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari




जानता  हूँ  मैं  उनके  ख्यालों  में  दिन  रात रहता हूँ।
जाने  अनजाने  उनके जेहन में खुलेआम विचरता हूँ।
आधी  रात  को वो खोजती  हैं  मुझे  व्हाट्सएप  पर।
उनकी मुझसे मिलने की बेचैनी साफ साफ देखता हूँ।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari





बिना  मेरा  बोले  वो  सब कुछ ईशारों में समझ लेता है।
मेरी आँखों  में  भरे सागर को किनारों से समझ लेता है।
जो  हवायें  मुझको  छूकर  गुजरती  हैं  उसके  पास  से।
वो हवाओं की निकहत से मेरे तासीर को समझ लेता है।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari





सियासत  में  गिरने की निचली सीमा क्या तय हो पायेगी।
क्या  मुर्दों  के अलावे कभी मानवता सियासत कर पायेगी।
मरे  हुए  जमीर  के  साथ  कब  तक  मुर्दा  पैदा होते रहेंगे।
क्या कभी जाति व मजहब  से ऊपर सियासत उठ पायेगी।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari





क्या मुर्दे हीं हरदम बैठेंगे सियासत के इजलास में।
क्या  मुर्दे  हीं  जिरह  करेंगे  मुर्दों  का इजलास में।
रोबोट  बनकर  कबतक  घूमेगा  मुर्दा  सड़कों पर।
मुर्दों  की  कबतक  पढ़ेंगे  नशीब  मुर्दे इजलास में।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari




आँसुओं  के सैलाब में सब  बह जाने दो।
जितने  गीले शिकवे हैं  उसे ढह जाने दो।
ये रिश्ते बड़े  काम के  होते  हैं अखिलेश।
मरते  दम  तक  इसे  सँजो  के  रखने दो।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari






तेरी   यह   अदा   मुझको   भा  गई।
तेरी मुस्कुराहट मेरे दिल में समा गई।
तेरे दिल में क्या समाया है पता नहीं।
तू दूर हीं सही मुझसे रिश्ता बना गई।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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Akhileshwar Tiwari



जिसके  खानदान  का खुद हीं कुछ पता नहीं।
आश्चर्य है उसको भी दुश्मन खानदानी चाहिए।
डॉ0 अखिलेश्वर तिवारी

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