Nojoto: Largest Storytelling Platform
psr3167914070572
  • 51Stories
  • 180Followers
  • 390Love
    0Views

@singh_psr

  • Popular
  • Latest
  • Video
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

घुप अंधेरे से झाँकती 
फलक पर सजे चाँद को ताकती

मेरी आँखें...
शायद तुम हो वहाँ

...प्रीत #quote
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

(3)...
परन्तु, हर शाम
ये बिखरती लालिमा कुछ तो कहती है
आज भी वो हमारा सब कुछ सहती है
जो धुँए के गुब्बार छोड़े हैं
बन कर मांझी हमने
जितने भी बीच मझधार छोड़े हैं
उस धुँए में भी वो रंग भरती है
ये शाम है,
जो हर शाम ठीक किनारे पे ठहरती है

(4)...
पता है
फिर उस किनारे पर ठहर
पहर दो पहर
मैं ये सोचता हूँ...
कि ये शाम हो या तुम हो
मैं ये सोचता हूँ...
या ठीक शाम की जैसी तुम हो
सब-कुछ सहना, 
हर-वक़्त तुझ में रंगों का बहना...
मैं उस किनारे पर ठहर
पहर दो पहर
ये सोचता हूँ......... #poem
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

(1)...
पता है,
मैं हर शाम दौड़ता हूँ 
तुझ को पकड़ने की कोशिश में,
खुद को तुझ में जकड़ने की कोशिश में,
ये सोचकर 
कि काश ये पूरी रात कुछ यूं गुजार पाऊँ
कि ज़रा क़रीब से तेरा अक़्स निहार पाऊँ

(2)...
पर ठीक उस से पहले
ये रंग जरा फीके से हो जाते हैं
क्योंकि घिरती रात के अंधेरे में
इन्सां भी कुछ ज्यादा सलीके से पेश आते हैं
तुम को पकड़ना तो एक बहाना है
दरअसल जकड़ना ही
पुरुषों का सदियों पुराना
एक बनावटी फ़साना है #poem
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

(3)...
परन्तु, हर शाम
ये बिखरती लालिमा कुछ तो कहती है
आज भी वो हमारा सब कुछ सहती है
जो धुँए के गुब्बार छोड़े हैं
बन कर मांझी हमने
जितने भी बीच मझधार छोड़े हैं
उस धुँए में भी वो रंग भरती है
ये शाम है,
जो हर शाम ठीक किनारे पे ठहरती है

(4)...
पता है
फिर उस किनारे पर ठहर
पहर दो पहर
मैं ये सोचता हूँ...
कि ये शाम हो या तुम हो
मैं ये सोचता हूँ...
कि या फिर 
ठीक शाम की जैसी तुम हो
सब-कुछ सहना, 
हर-वक़्त तुझ में रंगों का बहना...
मैं उस किनारे पर ठहर
पहर दो पहर
ये सोचता हूँ......... #poem
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

(1)...
पता है,
मैं हर शाम दौड़ता हूँ 
तुझ को पकड़ने की कोशिश में,
खुद को तुझ में जकड़ने की कोशिश में,
ये सोचकर 
कि काश ये पूरी रात कुछ यूं गुजार पाऊँ
कि ज़रा क़रीब से तेरा अक़्स निहार पाऊँ

(2)...
पर ठीक उस से पहले
ये रंग जरा फीके से हो जाते हैं
क्योंकि घिरती रात के अंधेरे में
इन्सां भी कुछ ज्यादा सलीके से पेश आते हैं
तुम को पकड़ना तो एक बहाना है
दरअसल जकड़ना ही
पुरुषों का सदियों पुराना
एक बनावटी फ़साना है #poem
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

(1)...
पता है,
मैं हर शाम दौड़ता हूँ 
तुझ को पकड़ने की कोशिश में,
खुद को तुझ में जकड़ने की कोशिश में,
ये सोचकर 
कि काश ये पूरी रात कुछ यूं गुजार पाऊँ
कि ज़रा क़रीब से तेरा अक़्स निहार पाऊँ

(2)...
पर ठीक उस से पहले
ये रंग जरा फीके से हो जाते हैं
क्योंकि घिरती रात के अंधेरे में
इन्सां भी कुछ ज्यादा सलीके से पेश आते हैं
तुम को पकड़ना तो एक बहाना है
दरअसल जकड़ना ही
पुरुषों का सदियों पुराना
एक बनावटी फ़साना है #poem
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

(1)...
पता है,
मैं हर शाम दौड़ता हूँ 
तुझ को पकड़ने की कोशिश में,
खुद को तुझ में जकड़ने की कोशिश में,
ये सोचकर 
कि काश ये पूरी रात कुछ यूं गुजार पाऊँ
कि ज़रा क़रीब से तेरा अक़्स निहार पाऊँ

(2)...
पर ठीक उस से पहले
ये रंग जरा फीके से हो जाते हैं
क्योंकि घिरती रात के अंधेरे में
इन्सां भी कुछ ज्यादा सलीके से पेश आते हैं
तुम को पकड़ना तो एक बहाना है
दरअसल जकड़ना ही
पुरुषों का सदियों पुराना
एक बनावटी फ़साना है #poem
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

(1)...
पता है,
मैं हर शाम दौड़ता हूँ 
तुझ को पकड़ने की कोशिश में,
खुद को तुझ में जकड़ने की कोशिश में,
ये सोचकर 
कि काश ये पूरी रात कुछ यूं गुजार पाऊँ
कि ज़रा क़रीब से तेरा अक़्स निहार पाऊँ

(2)...
पर ठीक उस से पहले
ये रंग जरा फीके से हो जाते हैं
क्योंकि घिरती रात के अंधेरे में
इन्सां भी कुछ ज्यादा सलीके से पेश आते हैं
तुम को पकड़ना तो एक बहाना है
दरअसल जकड़ना ही
पुरुषों का सदियों पुराना
एक बनावटी फ़साना है #poem
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

मैं मेरे गांव के घर की सबसे खूबसूरत खिड़की से जब भी झाँकता हूँ
, तो वो दो पेड़ नजर आते हैं आसमां को चूमने की चाह करते ।
फिर अहसास होता है वो निरन्तर प्रयास और उसके पीछे का जज़्बा 
जो बिना बोले बहुत कुछ कहता है।
जो हर वक्त ऊर्जा से लबरेज़ रहता है।
जो स्वतः ही मेरे अन्दर एक द्वंद पैदा करता है। 
कि ये खिड़की खूबसूरत है या फिर वो पेड़ या फिर
ये नज़रिया...
इस पंक्ति को मैं अधूरा और ऐसे ही अनंतता कि और छोड़ना चाहूँगा
ठीक इस " जीवन " की तरह...

अब अगर मैं ये कहूँ
कि तुम्हारा आना जीवन का सम्पूर्ण होना
ये सब मैं नही चाहता
मैं चाहता हूँ कुछ अधूरा, कुछ गहरा, बहुत अनन्त...
जिसको जितना भी सवारों कुछ ना कुछ बाकी रह ही जाता है 
ठीक तुम्हारी "आँखों " की तरह........

                                 ...प्रीत #poem
0af41f637281e4c1a571c2773a2cf93c

@singh_psr

मैं जो यहाँ लेटा हूँ
माना कि सूकून है !

पर ये सुकून मुझे काट रहा है !

जो लड़े हैं सरहदों पर
जिनमें बेइंतहा जुनूँन है !!

कोई वो जुनूँन, 
किसी पैमाने पर जाँच रहा है !

...प्रीत #quote
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile