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satyamkatiyar1742
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Satyam Katiyar

Engineer by accident! Artist by graphite, Writer by ink.

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Satyam Katiyar

आज मौसम बहुत उदास है, लगता है आज फिर बारिश होगी।
बारिश तो होगी पर खुलकर नहीं, वो सिर्फ इसलिए होगी कि मौसम की मायूसी को अपनी मासूमियत से भिगोकर थोड़ा खुशनुमा कर सके। भिगो सके कुछ गर्म हवाओं को, जो दोषी खुद हैं, पर बदनाम मौसम होता है। बचा सके उस तपते सूरज से, इसकी ज़मीन को, बनाकर बादलों से एक चादर। मेरे शहर की बारिशें बहुत बदनाम हैं इस बात को लेकर की वो हमेशा अधूरी होती हैं, हमेशा एक कसक छोड़ जाती हैं सबके मन में। कसक इस मौसम में, कुछ मुकम्मल जवाब देने की, कसक कुछ शुरुआत करने की। उधर कुछ के लिए ये बारिश एक अंत है, अंत सारी थकन से, सारे गिलों से, सब शिकवों से। उनके लिए ये एक आगाज़ है संवरण का, समापन का। ये सब होने के बाद अब एक तूफान आएगा, ये सब होने के निशान मिटाने, उड़ा ले जाएगा वो सब मुखौटे, सारे लिबास, पुराने कल के। फिर से एक बारिश होगी, खुलकर। किसी को ये बारिश पहले जैसे ही लगेगी लेकिन जिसने भी पहले वाली बारिश को जिया था, महसूस किया था, उनके लिए इसमें नयापन है, नई दूब जैसा। अब इसी बारिश में किसी की कल्पना से इंद्रधनुष फूटेगा। फिर डूबता सूरज बना देगा इससे चाँद तक का रास्ता। फिर ढल जाएगा चुपके से सबको नींद की चादर उढ़ाकर, एक नए दिन की तलाश में। बारिश

बारिश

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Satyam Katiyar

कुछ हसीन यादें, कुछ जुदाई-सा गम,
चंद अधूरे अल्फ़ाज़, कुछ मुकम्मल किस्से,
फरेबों के कुछ पर्दे, कुछ ज़ाहिर से राज़,
थोड़ी सी शरम, और दामन पर एक दाग,
मुट्ठी भर राख, ख़ाक में दफन कुछ ख़्वाब,
अनकही सी इजाजत, कुछ अर्ज़ी कुछ इबादत,
शाम की बची कुछ रोशनी, दो रंगी हुई हथेली,
कुछ ज़ाया सुर्ख रंग, फ़िज़ा में मिलती खुशबू,
कुछ आज़ाद होती रूहें, कुछ बेजान पड़े ज़िस्म,
ढलता हुआ सूरज, कुछ भटके हुए टोही,
दो आधे चाँद, एक पूरा आसमान,
कुछ दूरी से बात, फिर सदियों सी एक रात,
कोई नादान सी मोहब्बत, कोई परवान चढ़ता इश्क़। अंधेरे से इश्क़ है मुझे क्योंकि उजाले की दुनिया में ख़र्चा बहुत है ...
#dailywrites #magicrealism #adhuraishq

अंधेरे से इश्क़ है मुझे क्योंकि उजाले की दुनिया में ख़र्चा बहुत है ... #dailywrites #magicrealism #adhuraishq

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Satyam Katiyar

तुम्हारी और हमारी जितनी साँस बाकी है, अब से उसको ज़ाया नही करेंगे, उसे भर देंगे किसी गुब्बारे में, फिर पकड़ लेंगे उसका आखिरी सिरा एक साथ, जैसे उसमे बंद हवा के साथ क़ैद कर रखा हो कई अरमानों को, सपनों को। इनके साथ हम दोनों को लेकर जब उड़ेगा वो गुब्बारा तो शायद उसे मुश्किल हो। क्योंकि केवल इन सबका ही बोझ नहीं है उसपर, उसे ज़मीन की तरफ खींच रहें हैं कई रिश्ते, कई स्वार्थ, कुछ विवशताएँ और बहुत कुछ। ये सब वही हैं जिन्हें आज़ादी से, उड़ने से डर लगता है, या फिर उन्हें कोई गुब्बारा न मिला हो शायद जिसके सहारे वो भी आज़ाद होना सीख पाते। चलो इन्ही इल्ज़ामों से बचने के लिए इसे गुरुत्वाकर्षण का नाम दे देते हैं, चलो अब तो कोई दोषी नहीं कहा जाएगा।
फिर भी हमे तो ऊपर जाना है, पर अभी उतनी ताकत नहीं है गुब्बारे में, चलो अभी और साँसें भरते हैं इसमें और जीते हैं अभी यहीं जमीन पर। जब साँसे पूरी हो जाएंगी तो अपने आप ये गुब्बारा हमें ऊपर ले जाएगा बिना किसी कोशिश के। नादान परिंदे, आज़ाद परिंदे #heart_out #dua

नादान परिंदे, आज़ाद परिंदे #heart_out #Dua

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Satyam Katiyar

बावरी, झल्ली, आकाश, समंदर क्या कहूँ तुम्हे? तुम मिली थी मुझे जब खुद की तलाश में था मैं।
मिलकर लगा था कि शायद मेरी तलाश यहीं ख़तम होगी अब। सुन रखा था तुम्हारे साथ जो भी कुछ लम्हे बिता लेता था तो कभी भूल न पाता था तुम्हे। वक़्त बीता, मैं तो खुद को मिल गया थोड़ा सा। तुम्हारी तलाश ख़तम न हुई। तुमसे मैं प्रेम तो कर सकता था, इतना कि इंतहा न हो लेकिन तुम फिर भी मेरे नहीं हो सकते थे। तुम मेरे साथ चल सकते थे किसी भी अनजान रास्ते पर, कदम-ब-कदम भी हो सकते थे लेकिन जो लोग आज़ाद ख़यालों के होते हैं न, वो चार दीवार और चार बातों से कैद नहीं हो सकते। तुम्हारे लिए दो ही रास्ते थे मेरे पास- या तो तुम्हे आज़ाद होके प्रेम करता या आज़ाद छोड़ देता। हाँ, तुम्हे छोड़ना पड़ा उसी जंगल में, क़्योंकि की तुम्हे बाँधना मुनासिब नहीं था न ही मुकम्मल था, तुम आज़ाद रहने के लिए बनी हो। सारे धोखों, रिश्तों नातों से अलग इन सब से ऊपर जीना है मक़सद तुम्हारा। और फिर अंत में एक गुमनाम मौत मरना ताकि तुम्हारे जानने वालों को शुबा रहे कि तुम अब भी कहीं घूम रहे होगे, आज़ाद। इस गुमां का होना भी बहुत जरूरी है, उनके लिए जो खुद की तलाश में निकलते हैं। I became free when I lost you.
#wilderness #freedom

I became free when I lost you. #wilderness #Freedom


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