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ashishpremvar8321
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Ashish Premvar

writer ane poete

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Ashish Premvar

मोहब्बत में छलके आंसू तो जीना दुश्वार होता है।
लवों पर हो खमोशी तो ये जीवन बेकार होता है।।
सच पूछो न हंसी दिन रात कितने दर्दो से भरी है।
भरी महफ़िल बिन उसके सूना संसार लगता है।। मुक्तक

मुक्तक #कविता

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Ashish Premvar

मोहब्बत में छलके आंसू तो जीना दुश्वार होता है।
लवों पर हो खमोशी तो ये जीवन बेकार होता है।।
सच पूछो न हंसी दिन रात कितने दर्दो से भरी है।
भरी महफ़िल बिन उसके सूना संसार लगता है।। मुक्तक

मुक्तक

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Ashish Premvar

अश्क, इश्क, रिश्क में बहुत तुरपाई किये हमने
जिंदगी के हर हिस्से को खुब मजे से जीये हमने
अब तेरा शिकवा नहीं चलेगा ए जालिम जख्मे
तेरे लिए ये दिल चीरकर यू ताक पे रखा हमने

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Ashish Premvar

आज मै देख रहा हूँ, समाज के बुद्धिमान हरेक दर्पण को, जो खुद को समाज का दर्पण बताते है। परन्तु सत्य यह है कि वो समाज के नही बल्कि का खुद का दर्पण बनने में कोई कसर नही छोड़ रहे है। मेरा उन महानुभवि से विनम्र आग्रह कि पहले समाज का दर्पण बनिये, इसके बाद समाज खुद ही आपको एक दर्पण बना देगा। 
" यदि समाज एक दर्पण बन जायेगा तो समाज को दर्पण बनाने वाला खुद ही एक दर्पण अपने आप सिद्ध हो जायेगा।" 

कवि व लेखक- आशीष 'अनुपम' खुद समाज का दर्पण बन जाओगे

खुद समाज का दर्पण बन जाओगे

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Ashish Premvar

खुसबू  बनके  हवा सा  यादो मे टहलते  हो तुम।
एहसास कहता है मेरा कि मुझ पर मरते हो तुम।। कवि- आशीष 'अनुपम'

कवि- आशीष 'अनुपम' #शायरी

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Ashish Premvar

नारी आदिशाक्ति का रूप ही नहीं बल्कि स्वरूप है, जिसे तीनों देवों आर्थात ब्रम्हा, विष्णु और महेश ने धारण करके इस संसार को अनवरत जारी रखें हुए है। जिसकी पूजा देव करते है, जो देवों की देवी है। यदि एक शब्द में कहूं तो नारी आदिशाक्ति है।
 "जिसे हम जगत जननी कहते है।"
कवि और लेखक आशीष अनुपम Namita Writer Kalika Jitendra Singh Manoj Kumar Rohtash

Namita Writer Kalika Jitendra Singh Manoj Kumar Rohtash #विचार

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Ashish Premvar

समाज के हरेक नागरिक से जांच पड़ताल करने पर पता चला कि सभी समाज के नागरिक लुभावने और आकर्षित छल, द्वेष-भाव, कपट, भ्रष्ट, भ्रम, दुर्व्याहार और शासन में अभिनव कर रहे है। जो समाज के भविष्य ही नही बर्बाद कर रहे है बल्कि आने वाले समाज का पथ दिखा रहे। जिससे दुप्रर्भाव ही नही बल्कि बुरा असर पड़ेगा । जिससे विनाश होना तय ही नही सुनिश्चित है।
" समाज ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वरुप में सबकी दुनिया है" 

कवि और लेखक आशीष अनुपम समाज के दर्पण है

समाज के दर्पण है

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Ashish Premvar

गीत अच्छा लगे तो लाइक करे

गीत अच्छा लगे तो लाइक करे

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Ashish Premvar

मै अपने गीत का मुखरा गाया हू हालिक सुर अच्छा नही है। यदि आप लोगो को प्रसंद आयेगा तो अतंरा गाऊगा इससे अच्छा है

मै अपने गीत का मुखरा गाया हू हालिक सुर अच्छा नही है। यदि आप लोगो को प्रसंद आयेगा तो अतंरा गाऊगा इससे अच्छा है #poem

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Ashish Premvar

teri kami us din mahshoosh hui jis din mai mahfil me tere bina akela tha

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