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santoshsharma1823
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santosh sharma

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santosh sharma

White नजरें ना मिली अबतलक मुकद्दर से तो क्या,
भगवान के चौखट पर रहने इंतजाम हो गया।

वक्त  तन्हाईयों में बीतकर  कल शाम हो गया,
बचते रहा ता उम्र सरीफी में मेरा नाम हो गया।

अब यह जीद्द है कि किसी का  मरहम बनूंगा,
सबके नजर में हिमाएते- ए- सरेआम हो गया।

चिराग जल गये अंधेरो में रास्ता दिखाई देता है,
आज उनका मिलना जुलना खुलेआम हो गया।

-----------संतोष शर्मा(कुशीनगर)
दिनांक-27/10/2024

©santosh sharma #san poetry

#san poetry #Poetry

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santosh sharma

White तसव्वुफ़ कहाँ  है जो तुम इस शहर से पूछते हो,
छोड़ दिया है जब आलम,खुदा से क्यों रूठते हो।
नामुआफ़िक़ भी, नदारद भी है अपने -अपनो से,
तो 'आलम-अल-हुदा' के नजर में किसे ढूढ़ते हो।
--------संतोष शर्मा 






आलम-अल-हुदा का अर्थ -मार्गदर्शक

©santosh sharma #love_shayari
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santosh sharma

White तेरी आदतों में जीने की आदत हो गई है मुझमें,
फिक्र न रहा खुद की, शहादत हो गई है तुझमें।

©santosh sharma
  #wallpaper romantic

#wallpaper romantic

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santosh sharma

White ।।सरहद के पार।।

रातभर टपकती रही, हर दिशाओं में बहकती रही,
न मिला ठिकाना,श्याम के जलधर में गरजती रही।

सांस लेने की फुर्सत नही उसे,प्रवात चुप है कोने में,
बहती गंगा स्वं वेग से,नदीओं में तेज उफनती रही।

सरहदें लांघने लगी है वृष्टि, अब पुष्पदों की बारी है,
विंहगम है मज्जन जहां का,सौंदर्य से गमकती रही।

धरती से चलकर आशमान से मोतियां बरसने लगी है,
बनाकर  ठिकाना दविज, दिवाकर में चहँकती रही।

प्यासी धरती सींच रही उदक  को अपनी अधरों से,
फूलों की बगीयां से धरा के आंगन में महकती रही।

                               मौलिक रचना
                             ।। संतोष शर्मा।।
                        कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
                         दिनांक-06/07/2024

©santosh sharma #nature poem
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santosh sharma

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santosh sharma

मन ही मन कचोट रहा था,
धरती, गगन को देख रहा था।
धीरें धीरे अग्नि सेक रहा था,
भीड़ लगी थी गलियारों में,
लक्ष्य कही से भेद रहा था।
---संतोष शर्मा

©santosh sharma
  #लक्ष्य की ओर
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santosh sharma

रात, रात भर जागती रही,

सूरज तरफ  झाँकती रही।

नजरें न मिल सकी  उनसे,

सर्द मौसम में काँपती रही।


बरस रहा तुषार में पुरन्दर,

उड़ रहा नीर का समन्दर।

बिखर गयी ओंस की चादर,

शीतल है बाहर और अंदर।


भानू का रौशन कुमुंद है,

उषा में मेघ बहुत धुंध है।

रात, ठिठुरती रही रजनी,

सबके पालनहार मुकुंद है।

©santosh sharma #fog
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santosh sharma

bench रात, रात भर जागती रही,

सूरज तरफ  झाँकती रही।

नजरें न मिल सकी  उनसे,

सर्द मौसम में काँपती रही।


बरस रहा तुषार में पुरन्दर,

उड़ रहा नीर का समन्दर।

बिखर गयी ओंस की चादर,

शीतल है बाहर और अंदर।


भानू का रौशन कुमुंद है,

उषा में मेघ बहुत धुंध है।

रात, ठिठुरती रही रजनी,

सबके पालनहार मुकुंद है।

©santosh sharma
  #my heart

#my heart #Poetry

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santosh sharma

हर बार हुए बदस्तूर,दिल ए दर्द सरेआम हो गया,
आँखों में एक नशा,नब्ज़ में दौड़ना आम हो गया।

इंतजार में एक अर्सा बीता गया न देखा तेरी सूरत,
तूझे लिखते -लिखते ही,तेरे शहर मेरे नाम हो गया।
                                            
                             ----------संतोष शर्मा

©santosh sharma
  #my heart peom

#my heart peom #Poetry

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santosh sharma

ओठो का मुस्कुराना याद आता है,
तेरी गोदी में सो जाना याद आता है।
खेलती रहती थी उंगुलीया बालों में,
गुजरा हुआ वो जमाना याद आता है।

©santosh sharma
  #dilkibaat
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