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veertiwari3269
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Veer Tiwari

नैमिष तिवारी ... Radhe lover .... simpal life ..... _ वीर तिवारी ....

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Veer Tiwari

"गबन" मुंशी प्रेमचंद की एक उत्कृष्ट रचना है, जो भारतीय समाज की उन विडंबनाओं और मानसिकता को उभारती है जो आज भी प्रासंगिक हैं। यह उपन्यास केवल एक कहानी नहीं, बल्कि मानवीय दुर्बलताओं, सामाजिक दबावों, और नैतिकता के पतन की गाथा है, जो विचारों की गहराई तक जाने पर मजबूर करती है।

कहानी का सार और मर्म

कहानी का मुख्य पात्र रमानाथ है, जो साधारण व्यक्तित्व का स्वामी है, लेकिन सामाजिक प्रतिष्ठा और पारिवारिक अपेक्षाओं के भार तले दबा हुआ है। उसकी पत्नी, जलपा, की सोने के गहनों के प्रति अनियंत्रित लालसा उसे नैतिकता की सीमा लांघने पर विवश कर देती है। गहनों की आसक्ति मात्र जलपा के चरित्र का वर्णन नहीं, बल्कि उस सामूहिक चाह की ओर संकेत करती है जो समाज में ‘संपन्नता’ का पर्याय बन गई है। रमानाथ अपनी पत्नी की इच्छाओं को पूरा करने के क्रम में गबन कर बैठता है, और यहीं से शुरू होता है उसकी आत्मग्लानि, भ्रम, और भाग्य का संघर्ष।

विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण

प्रेमचंद ने "गबन" के माध्यम से यह दिखाया है कि जब समाज व्यक्ति को सतही रूप से आंकता है, तो वह उसे बाहरी आडंबरों में उलझा देता है। रमानाथ का चरित्र समाज के उन दबावों का प्रतीक है, जो एक साधारण व्यक्ति को भी नैतिक मूल्यों से समझौता करने के लिए मजबूर कर सकते हैं। प्रेमचंद ने बड़ी ही सजीवता से दिखाया है कि कैसे झूठ और छल की एक छोटी सी भूल व्यक्ति के पूरे अस्तित्व को बिखेर सकती है।

मुख्य संदेश और सीख

1. सत्य की अपरिहार्यता: "गबन" हमें सिखाता है कि सत्य का कोई विकल्प नहीं है। चाहे कितनी ही कठिनाई क्यों न हो, सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति अंततः सम्मान और आत्मगौरव अर्जित करता है। झूठ के सहारे खड़ी की गई कोई भी इमारत एक दिन ढह जाती है।

2. भौतिक सुखों की छद्मता: जलपा का सोने के प्रति आकर्षण हमें यह सोचने पर विवश करता है कि क्या बाहरी आडंबर, समाज में ऊँची दिखने की चाह और संपन्नता की होड़ वास्तव में सुख का मापदंड हो सकते हैं? प्रेमचंद ने बड़े ही कौशल से इस मानसिकता की आलोचना की है, जहाँ भौतिकता ने मूल्यों को धूमिल कर दिया है।

3. सामाजिक दबाव और व्यक्तिगत संघर्ष: रमानाथ का संघर्ष न केवल एक व्यक्ति की कहानी है, बल्कि उस मानसिकता की भी झलक है, जहाँ व्यक्ति अपने आत्मसम्मान और आदर्शों को सामाजिक दबावों के आगे गिरवी रख देता है। यह उपन्यास हमें चेतावनी देता है कि बाहरी मान्यताओं और आडंबरों में फंसकर अपने नैतिक आदर्शों से विचलित होना आत्मविनाश का मार्ग है।

4. लालच और नैतिक पतन: प्रेमचंद ने स्पष्ट किया है कि लालच और इच्छाओं पर नियंत्रण न हो तो वे व्यक्ति को धीरे-धीरे पतन की ओर धकेल देते हैं। यह केवल रमानाथ का पतन नहीं, बल्कि समाज की उस सामूहिक कमजोरी का उदाहरण है जहाँ नैतिकता और चरित्र का मूल्य भौतिकता के आगे गौण हो जाता है।

निष्कर्ष

"गबन" एक गहरी अंतर्दृष्टि है, जो मानवीय जीवन की वास्तविकताओं, उसके संघर्षों और उसके नैतिक आदर्शों पर प्रकाश डालती है। प्रेमचंद ने बड़े सजीव रूप में यह संदेश दिया है कि सच्चा सुख बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि भीतर की शांति और संतोष में है। यह उपन्यास एक आह्वान है, हमें अपने मूल्यों पर अडिग रहने और सतही आकर्षणों से ऊपर उठने का।

"गबन" की कथा हमें यह स्मरण कराती है कि सच्चाई, ईमानदारी, और आत्मगौरव से बड़ा कोई गहना नहीं, और इन्हें खोकर प्राप्त की गई हर वस्तु शून्य से अधिक कुछ नहीं।

✍️Veer Tiwari

©Veer Tiwari गबन
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Veer Tiwari

पूस की रात - मुंशी प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है, जो एक गरीब किसान हल्कू की जिंदगी के संघर्ष और उसकी विवशता को बेहद मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है। यह कहानी ग्रामीण भारत की गरीबी, शोषण, और मनोस्थिति को दर्शाती है, जो आज भी कई रूपों में प्रासंगिक है।

कहानी का सारांश

कहानी का मुख्य पात्र हल्कू एक छोटा किसान है, जो अपनी जमीन पर फसल उगाता है। उसकी जिंदगी गरीबी से जूझती रहती है, और कर्ज चुकाने की मजबूरी में उसे हमेशा समझौते करने पड़ते हैं। एक बार फिर से उसे कर्ज चुकाने के लिए अपनी कमाई से कंबल खरीदने का सपना छोड़ना पड़ता है, और ठिठुरती ठंड में रात के खेत की रखवाली के लिए जाना पड़ता है।

पूस की ठंडी रात में वह अपने कंबल की कमी से ठिठुरता है, लेकिन उसकी हालत ऐसी है कि वह कुछ नहीं कर सकता। ठंड से बचने के लिए वह अपने कुत्ते झबरा के पास सटकर सोने की कोशिश करता है, और अंत में ठंड से हारकर वह अपनी हालत पर हंसने लगता है। कहानी का अंत यह दिखाता है कि हल्कू अगले दिन की चिंता किए बिना, उस क्षण की ठंड से राहत पाने के लिए सब कुछ छोड़कर झबरा के साथ खेत छोड़कर चला जाता है।

विशेषताएं और आज के समय की तुलना

1. ग़रीबी और विवशता: हल्कू की हालत उस किसान की है, जो कर्ज, शोषण, और आर्थिक तंगी से जूझता है। यह स्थिति आज भी कई गरीब किसानों और मजदूरों की सच्चाई है, जो अपने मूलभूत ज़रूरतों को भी पूरा करने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। चाहे आज की दुनिया में कितनी भी तरक्की क्यों न हो जाए, परंतु इस वर्ग के लोग अब भी कई समस्याओं से जूझ रहे हैं।

2. मानसिक पीड़ा और उम्मीद की झलक: हल्कू का ठंड में ठिठुरना और खुद को सांत्वना देना यह दिखाता है कि इंसान कैसे विषम परिस्थितियों में भी अपने मनोबल को बनाए रखने की कोशिश करता है। आज भी लोग कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने मानसिक संतुलन और उम्मीदों को बरकरार रखने का प्रयास करते हैं।

3. प्राकृतिक कठिनाइयाँ: कहानी में ठंड और सर्दी का ज़िक्र उन प्राकृतिक चुनौतियों का प्रतीक है, जिनसे किसान हर दिन जूझते हैं। आज भी बदलते मौसम और प्राकृतिक आपदाएं किसानों की जीविका पर गहरा असर डालती हैं, और यह समस्या आज की वास्तविकता के साथ भी मेल खाती है।

सीख और संदेश

संघर्ष की हकीकत: कहानी यह सिखाती है कि जीवन में असली संघर्ष बाहरी समस्याओं से नहीं, बल्कि भीतर की मजबूरियों और हालातों से होता है। हल्कू का संघर्ष उसकी गरीबी के खिलाफ नहीं, बल्कि ठंड से राहत पाने के लिए खुद से किया गया संघर्ष है।

वास्तविकता का सामना: कहानी यह भी दिखाती है कि गरीबी और जरूरत के सामने इंसान की इच्छाएं और सपने कैसे बेमानी हो जाते हैं। हल्कू का अपनी हालत पर हंसना यह दर्शाता है कि वह खुद की हालत को स्वीकार कर चुका है।

पूस की रात अपने छोटे कलेवर में बड़े सामाजिक मुद्दों को उठाती है और यह दिखाती है कि कठिनाइयों के सामने भी इंसान अपने मन को समझाने के तरीके ढूंढ लेता है। प्रेमचंद ने इस कहानी के जरिए वास्तविकता को बेहद मार्मिक ढंग से उकेरा है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी उस समय थी।

✍️Veer Tiwari

©Veer Tiwari पूस की रात

पूस की रात #विचार

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Veer Tiwari

पैसा ज़रूर कमायें,
पर साथ-साथ दुआओं को भी कमाना चाहिए।।

©Veer Tiwari
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Veer Tiwari

भीड़ का हिस्सा होने से लाख बेहतर है की
खुद में खो जाओ ।।
अहम् ब्रह्मास्मि...

©Veer Tiwari #मैं
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Veer Tiwari

मंजिल तो बस बहाना है, 
असली मजा सफर का ही है ।।

©Veer Tiwari #सफर
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Veer Tiwari

kaon hai ye jiske intjaar me baithe hai

kaon hai ye jiske intjaar me baithe hai

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Veer Tiwari

मै कुछ भी तो नहीं......

मै कुछ भी तो नहीं......

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Veer Tiwari

धुंआ.....

धुंआ.....

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Veer Tiwari

ek aavaj

ek aavaj

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Veer Tiwari

 माना कि कुछ ज्यादा खास नहीं हैं
पर इत्ते बुरे भी नहीं ।।

माना कि कुछ ज्यादा खास नहीं हैं पर इत्ते बुरे भी नहीं ।। #nojotophoto

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