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khanabadosh0654
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khanabadosh

Bhopali

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khanabadosh

मैं शायर हूँ, दुकान है मेरी, अल्फाज़ो की..
ऊपर वाले wrack पे,वक़्त रक्खें मैने।
खुदरा से ख़ाब है, कोनो में पड़े हुए,
बोरी भर यादे भी है, थोक में लिया था ना!
कुछ डिब्बेवाले लफ़्ज भी है,बन्द कर रक्खें है,
गिर जाने,टूट जाने के डर में!
आँशुओ की बर्नी भी है, कुछ जज़्बाती ख़रीददार है इसके।
मेरे दुकान ढाँचा अब, मेरी जेहन की नींव पर है,
दर्द बेचता हूँ, साहब!
फ़क़त अब कोई वाजिब चीज ना थी बेचने को
हम दर्द बेचने का हूनर जानते है,
अब औऱ कुछ हमसे होगा नही।
मैं शायर हूँ, एक दुकान है..मेरी!

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khanabadosh

प्रेम और कला एक दूसरे के समानार्थी हैं. दोनों ही डूब जाना मांगती हैं.

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khanabadosh

धर्म

“धर्म केवल साधना नहीं कर्तव्य भी है, कर्म भी है. एकता और सद्भावना है धर्म. भेदभाव को त्यागना है धर्म. मानवता है धर्म.”

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khanabadosh

मेरा आसमाँ मेरे कमरे की छत में दुबका हैं,
शाम खिड़कियों से हो कर गुजरती हैं,
रात खामोशियों का सबब,
दोपहरी चिरागों सी रौशन,
ये कमरा मेरा पूरा जहाँ है अब तो।

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khanabadosh

 #yourquote
#खाबगाह
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khanabadosh

यूँ बदलना वक़्त का, जिंदगी के दरमियां
बचपने के नन्हे पाँव का, झुर्रियों तक पहुँचना है तब्दीलियाँ!
सुना था दुनिया बनी है, 
दो शब्दों के साथ मिलने से, 
अपना-पराया,सुख-दुख,उतार-चढ़ाव,
फिर सुकूं से मौत गले लगाना है, 
तब्दीलियाँ!
दर्द का अश्को में,प्यार होना आदतन दिल टूटने पर भी,नज़र से ज़ेहन तक उतरना है,
तब्दीलियाँ!
है तब्दीलियां फ़िर भी, मै वही इंसा रहा
दर्द, इश्क़,शाम,रात,याद,दिल ना बदले, अब बेअसर तब्दीलियाँ!
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khanabadosh

मैं हूं कि ये मय है तलबगार ये मैं कैसे कहुँ
मिसाले यार के लफ्ज़ो में अत्ता कैसे करूँ
वो नज़रे है, या नश्तरों-औज़ार कैसे कहुँ
कि यादों में उनको बेवक़्त याद फ़िर कैसे करूँ
तमाम उम्रें काटी ली हमने इंतेज़ार में
क्या है हमारे सूरते-हाल बयाँ कैसे करूँ
ये दिल दरिया, धड़कनो को बेज़ार किया 
इश्क़ भी उनसे ही किया,फिर गुनाहगार किसको कहुँ
माना कि वो अब भी हमसे यूँ परे
ये इश्क़ है, ग़ालिब हम खुद को अब शिकस्तेदार कैसे कहे
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khanabadosh

कुछ ख़ाब वही दफना कर आया हूँ,
जिस मोड़ पर कभी तुम छोड़ आये थे!
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khanabadosh

मेरी जिंदगी का सफ़र,
तुम से हम तक!
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khanabadosh

#lone_breakdown
#ख़्वाब
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