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nehavashishtha7135
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Neha Vashishtha

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Neha Vashishtha

"कहिये भैया कहाँ जाना चाहते हैँ "| बैल गाडी चलाते  हुए राजेश बोला "उस परदेस जहाँ समुन्द्र हिलोरे लेता हुआ पैरों में तो आ गिरता है पर खिड़की से बस मुट्ठी भर आसमान देखने को ही मिलता है |
छत नही है वहाँ, और छत बनाने के लिये लोगों को आसमान सा ऊंचा होना पड़ता है |आँखें जहाँ तक पहुँचे बस भीड़, कोई हँस रहा है, कोई रो रहा है, मानों हर भाव  शहर ने अपने अंदर रखा हुआ है, वो शहर जितना बड़ा , उतना ही बूढा है | आप लीपा पोती से उसके  जज्जर चेहरे को बदल सकते हैँ , पर उसके झुर्रियों को छुपा नही सकते "जैसे वहाँ की भीड़ अपने दुःख नही छुपा सकती |बक्शे बराबर कमरे है भैयाजी और महंगाई ने कमर तोड़ रखी है,  ये दुनिया उस दुनिया से बिल्कुल अलग है |देखिएगा वापस गांव ही आएंगे आप |
"क्या करें भैया, मंज़िल का तो पता नही  पर  सफर तो शहर ही है," बड़ी उदासी से मगन जवाब देता है , और ज़ब कामयाब सफर होता है, तभी घर घर होता है |मैं जाते हुए थोड़ा सा सूरज अपनी ज़ेब में रख ले जा रहा हूँ | जब भी वो दुनिया इस दुनिया से अलग लगेगी दोपहरी में भागते दौड़ते कदम इस सूरज को दिखा दूँगा जैसे बचपन में दिखा दिया करता था बचपन के सामने हाजरी देने के लिए | शहर को थोड़ी सी धूप मिल जाएगी और मुझे थोड़ी ठंडक |
"सही कहे हो, "बातें अच्छी कर लेते हो भैया "राजेश बोला , तुम हामी जल्दी भर लेते हो, मगन हँसते हुए बोला | 
"अच्छा जल्दी करो मेरी ट्रैन छूट जाएगी", मगन हड़बड़ाते हुए बोला |
 "अरे रे सफर ही तो है भैया जी फिर से चल दीजियेगा",रमेश चुटकी लेते हुए बोला, दोनों हँस देते,  राजेश बैलगाड़ी की रफ़्तार बढ़ाता है  |
नेहा वशिष्ठ #WorldAsteroidDay
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Neha Vashishtha

कहानियाँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैँ, क्यूँकि हम घटते जा रहे है |

नेहा वशिष्ठ 😊😊 #SuperBloodMoon
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Neha Vashishtha

भीड़ में सबका अलग कोना है, कोई सडक नही समतल,   जहाँ सब एक चाल से चल रहे है, हो सकता है मैंने जिस कोने को 
चार दीवारी समझ माथा पटका हो, तुमनें उस कोने को जा 
चूमा हो, मैं और तुम सब एक जैसे दिखते है, बस हमारे कोने अलग अलग हैँ |
बस यहीं भिन्नता है तुम्हारे और मेरे बीच में,| 

नेहा वशिष्ठ #Corona_Lockdown_Rush
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Neha Vashishtha

बचपन की कहानियाँ ऊंगलियो के पोरों जैसी होती हैँ, जो जीवन की हथेली पर सबसे आगे बैठी रहती हैँ | कभी इतने भी उदास ना होना की वो कहानियाँ तुम्हारी हथेली से फिसल पड़ें और कहीं खो जायें , क्यूँकि ये कहानियां ही हैँ जो तुम्हारा पता सहेज के रखती हैँ, मृत्युपर्यंत भी 
तुम्हें अमर रखती हैँ | 
नेहा वशिष्ठ

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Neha Vashishtha

लोग अकेले हैँ, बहुत अकेले हैँ, सपनों की फेहरिस्त की कमान अकेलेपन के हाथों है, और उस अकेलेपन को सँभालने की जिम्मेदारी अपनों पर है | किसी की हसीं बटोर कर बटुए में ना रख सको तो किसी के आंसुओं की दो बूँदे अपने रुमाल में बाँध लो, सहज रहना इतना कठिन नही है, सहज बोलना कितने ही कील भालो से जंग लडता है हमको ज्ञात नही है | हम आकाश की ओर देखते हैँ बारिश की चाह में, और दूब से प्रेम करती बूंद को रौंद देते है | रंगभेद करते हुए भी आज भी जाना चाहते हैँ उस ब्लैक न वाइट दुनिया में | हम इस सदी की सबसे ढोंगी कौम हैँ, अपने अच्छे और बुरे के हिसाब से अपना मुखौटा बदल लेते हैँ | 
मुखौटा बदलें, पर किसी को गले लगाने के लिये, बुरे हैँ तो अच्छे बन जाए, ज़िन्दगी रहते ही अपनापन निभा लें क्यूंकि मौत आजकल अपनापन निभाने का मौका नही दे रही है |

नेहा वशिष्ठ #covidindia
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Neha Vashishtha

तेज तेज चिल्लाने से ज्यादा मूक कुछ भी नही है, कुछ लोगों ने  मुझे समझाया था की जीवन को बताना ही मत की साँसें नही ले पा रहे हो तुम, और वो यदि सुनना चाहे तो सुना देना उसे हमारी साँसें, तुम्हें बस उसे बहला कर रखना है |
चीख, चीत्कारों का वक़्त है, सब डरे सहमे चार दीवारी में कैद अपनी और अपनों की साँसें सहेज रहे हैँ | 
हे जीवन, मेरे पास तुम उतना ही रहना जितनी स्मृति सहेज सको तुम, तमाम उन इंसानों की, जिन्होंने इस कोलाहल में मुझे दबे अक्षरों में इंसानियत का मतलब बताया " |

नेहा वशिष्ठ #covidindia
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Neha Vashishtha

टूटे हुए मन में कुछ आवाजें कैद हैँ छितरायी हुई साँसों की, हाथ पैर मारती जिंदगी की, और ख़ामोशी से सब कुछ देखती हुई दुनिया की,  मैं यूँ ही बड़ी हुई, मैंने यूँ ही दुनिया देखनी चाही, मैंने चाहा कितना ज्यादा और पाया कितना कम| कभी समझा नही की बचपन वो घर है जहाँ तुम्हारा बार बार जाने का मन करेगा पर तुम जा ना सकोगे | उसके कच्चे रास्तों पर अक्सर धान उगी हुई दिखेंगीं, कहीं मेडे नही होंगी,  उबड़ खाबड़ खेतों का जैसे कोई ठोर नही, कोई दिशा नही | दिशाहीन होने से अच्छा है दिशाओं का ज्ञान ही ना हो | सोचती  हूँ आज भी मन से वो आवाजें आयें,  चिड़ियों के चहचाहने की, ख्याल खिलौनों की,  मन की गुल्लक से आज भी वहीं चब्बनी खनके, सच में मैंने पाया कितना ज्यादा और चाहा था कितना कम |

नेहा वशिष्ठ #standAlone
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Neha Vashishtha

उससे बात नही करता की कहीं बुरा लग जाए |
बस दूर से देखता रहता हूँ की दिल लग जाए |
लगे ऐसा भी ना दिल किसी से, की भुलाने में उसको |
एक उम्र, एक जमाना, एक जां लग जाए  | 

नेहा वशिष्ठ #lovetaj
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Neha Vashishtha

अंत ' के पार्थिव पर पीड़ाएँ लकड़ी बनकर जलेंगी, तुम सहन कर लेना कुछ देर के लिये उसका दुआं,  अगर वो  तुम्हे साँस ना लेने तो|
,  पर गौर से सुनना कुछ देर बाद कोई कहीं प्रसवपीड़ा में  चिल्लाती एक उम्मीद को, असल में वो एक चीख नही होगी, एक हुँकार होगी "शुरू से शुरू करने की ",|
उठो, खडे हो, और वापस से शुरू करो |
उम्मीद के गर्भ में जीत के अंकुर पलते हैँ |
हार पर साहस के विजयध्वज ऐसे ही खिलते हैँ |

नेहा वशिष्ठ

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Neha Vashishtha

ज़हन में इस डर की बेड़ियाँ ना आयें |
की खुदा के घर से अब चिट्टियाँ ना आयें  |
आ भी जायें जमीं पर जन्नत, फ़रिश्ते क्या फायदा  |
जिंदगी कैसे आएगी , गर बेटियाँ ना आयें | 
नेहा वशिष्ठ

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