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jitenderjayant6485
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Jitender Nath

मेरा पहला कविता संग्रह मौन किनारे अब ऐमज़ॉन और notion press पर उपलब्ध Maun Kinare https://www.amazon.in/dp/1645879445/ref=cm_sw_r_cp_apa_i_ZwqBDb9N5GAJZ https://notionpress.com/read/maun-kinare

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Jitender Nath

है गुरु आज बेहाल उसके हाल पर क्यों कोई बोलेगा
सिरमौर गया पाताल, कलम है ख्वार, क्यों कोई बोलेगा।

स्कूल हो गए बंद, तनख्वाह होई बंद क्यों कोई बोलेगा।
हुई जेब भी तंग, पर मान अभी भी संग, क्यों कोई बोलेगा।

सड़कों पर आ ना पाए, अपने भेद छुपाए, किससे वो खोलेगा।
पत्थर के भवन हैं खाली, आत्मा सवाली क्यों कोई बोलेगा।

फीस नहीं आई, हस के कहे कसाई, बोल क्या बोलेगा।
नौबत ऐसी आई, नहीं हाथ रही कमाई, कैसे ये झेलेगा।

मजदूर पर विपदा आई, सबने अपनी खूब कलम चलाई।
तेरे आँखों के आंसू, क्यों कोई अपने पलड़े में तोलेगा।

हरी कोपलें सुना है फूट आई, अब फीस जा कर भर दे भाई।
बिन गुरु कैसी पढ़ाई, अपने बच्चों को मिट्टी में तू खो देगा।

है गुरु आज बेहाल उसके हाल पर क्यों कोई बोलेगा
सिरमौर गया पाताल, कलम है ख्वार, क्यों कोई बोलेगा। गुरु

गुरु

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Jitender Nath

मेरी प्यास को दरिया का पता बता दिया
मेरी दुश्वारियों को मेरी खता बता दिया

मैं मरूं अपने गाँव में ये ख्वाहिश थी मेरी
तुमने मुझे एक सड़क का पता बता दिया

मैं हर रोज मर रहा हूँ ये सबको मालूम है
जिंदा है कितने लोग गिनकर बता दिया

पाँव के छाले मेरे जब सफर में थक गए
मरहम का कागजों में खर्चा बता दिया

मैं मजदूर हूँ ये तो मेरे माथे पे लिखा था
जरूरत मुझे हुई तो भिखारी बता दिया

मौत आ ही जाएगी, ट्रॅक में या रेल में
हाकिम हैं संगदिल मैंने मरकर बता दिया
         © जितेन्द्रनाथ मजदूर

मजदूर

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Jitender Nath

मेरी प्यास देख मुझे दरिया दिखा दिया
मेरी दुश्वारियों को मेरी खता बता दिया

मैं मरूं अपने गाँव में ये ख्वाहिश थी मेरी
तुमने मुझे एक सड़क का पता बता दिया

मैं हर रोज मर रहा हूँ ये सबको मालूम है
जिंदा है कितने लोग गिनकर बता दिया

पाँव के छाले मेरे जब सफर में थक गए
मरहम का कागजों में खर्चा बता दिया

मैं मजदूर हूँ ये तो मेरे माथे पे लिखा था
जरूरत मुझे हुई तो भिखारी बता दिया

मौत आ ही जाएगी, ट्रॅक में या रेल में
हाकिम हैं संगदिल मैंने मरकर बता दिया मजदूर

मजदूर

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Jitender Nath

Alone  जिंदगी, ये तेरी हालत पहले कब थी
घरों में कैद तू आज से पहले कब थी

परिन्दे अब भी अपनी उड़ान भरते हैं
ये जमीं इतनी ठहरी हुई पहले कब थी

तमाशा समझ कर मौत को पाला तूने
तेरे घर पे उसकी आहट पहले कब थी

जो पास था वो देख कर भी न देखा हमने
अपनो की ये चाहत इससे पहले कब थी

सूरज भी देखा और अब चांद भी आएगा
मेरे घर में इतनी बड़ी छत पहले कब थी

दूर हूँ सबसे, पास आने में डर लगता है
जिस्मों की ये हद अब से पहले कब थी

बादलों को देख कर अब मजा नहीं आता
सूरज, इतनी तेरी चाहत पहले कब थी सवाल

सवाल

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Jitender Nath

Ash-Trail

Coming Soon

Jitender Nath ash
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Jitender Nath

अपनी जड़ों को मैं आजमाने निकला हूँ
सूखे पत्तों का हिसाब लगाने निकला हूँ

मुझको पता है मैं नाकामयाब हो जाऊंगा
मुर्दो को फिर से आज जगाने निकला हूँ

शोर बहुत है दुनिया के नक्कारखाने में
बनकर तूती आवाज लगाने निकला हूँ

जगमग ख्वाहिशों की पोशीदा मंडी में
अरमानों का बाजार सजाने निकला हूँ

दिलासे मेरे यारों के खत्म नहीं होते
मैं भी उनपर ऐतबार जताने निकला हूँ

मुझ में सब कुछ अब इतना बंट गया है
हर लम्हा नया किरदार निभाने निकला हूँ

©©जितेन्द्र नाथ आजमाईश

आजमाईश #कविता

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Jitender Nath

मैं एक बार फिर हार कर चला आया
तेरे यहां से फिर भाग कर चला आया

तेरे कहने से सर को झुका न सका मैं
मैं उस सर को उतार कर चला आया

आवाज को मेरी शायद सुन न सके तू
फिर भी मैं तुझे पुकार कर चला आया

प्यासे हैं समंदर को कैद रखने वाले भी
मैं उनपर एक दरिया वारकर चला आया

मेरी बर्बादियों का जिक्र अब वो क्यों करें
मैं जिनकी दुनियां संवार कर चला आया

बच न सका कोई जिनके तीर-ए-नजर से
मैं आज नजरें उनसे चार कर चला आया मैं
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Jitender Nath

ये वतन यूँ ही हमेशा आबाद रहना चाहिए
चाहे कुछ भी हो हमें बस साथ रहना चाहिए
अपने हिसाब से बदलना मौसमों का काम है
पर ये गगन इस धरा के साथ रहना चाहिए

गुरु हो प्रतिमा द्रोण की, शिष्य बने पार्थ से
विद्यार्थियों के हाथ में पत्थर न होना चाहिए
मतभेद तो मिल बैठकर सुलझा ही लेंगे हम
पर तेरे मेरे हाथ में ये नश्तर न होना चाहिए

 ये मुल्क मेरी जान है तो तेरी भी पहचान है
रहे तिरंगा गगन मेंये कभी न झुकना चाहिए
ले तिरंगा चल रहे हैं कुछ जहर से भरे जहन
मां भारती का गान कर ये फन कुचलना चाहिए 

यूँ लगेगी आग तो ये गुलशन न रह पाएगा
अच्छे बुरे की सबको पहचान होना चाहिए
जो देश का है ,बेशक रहे बेफिक्र मेरे देश में
बोझ बेगाना मेरे वतन से पार होना चाहिए #येवतन
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Jitender Nath

फिर लौट आए मुझको मेरे मिटाने वाले
मुझपर हँसने वाले मुझको रुलाने वाले ।।

मैं भला बताओ कब तक यूँ आबाद रहता
हाथों में खंजर लिए थे अपना बताने वाले।।

दर्द ए दिल जब से पन्नों पर लिखने लगा हूँ 
बन गया हूँ कवि कह हंसते हैं जमाने वाले।।

दर्द को अपने हरदम दवा बनाया है मैंने
मैं फिर कैसे जी गया हैरान हैं सताने वाले।।

मरने वाले को अपने घर गए मुद्दत हो गई
उसको अब भी बेचतें हैं शोक जताने वाले।।

तू हिन्द का बेटा ,दुनिया को तब पता चला
जब मिट गए 'जयन्त'तुझको मिटाने वाले।। मेरे अपने

मेरे अपने #कविता

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Jitender Nath

भूल कर पथ आ गए बादल तुम्हारे आंगन में।
भला कैसे बरसेगा ये सावन हमारे आंगन में।।
जो पूछा माजरा क्या है हमें कुछ तो बता जाओ। 
क्या घटाएं रोक ली तुमने जुल्फों के दामन में।। सावन

सावन

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