।।बचपन की मौज।।
यादों की जुगाली में, मशगूल दिल-औ-दिमाग।
ढूंढ रहे बीते उम्र, के वो पल बेहिसाब।
तब ना, कमाने के लीये दिन की दौड़,
ना,रुतबे के लीये, खर्च की होड़।
बस दिन उगे, चिड़िया संग चहके,
नदियाँ नहाये, गलियों की धूल उड़ाये।
शाम को सूरज दबाये, घर को आये।