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चौधरी मीत दलाल

कुछ लिखूं तो जमाना यहां तोलने बैठ जाएगा अपने तराजू में।। बाखुदा मैंने मौन रहना ही लाजमी समझा।। instagram.com/the_oo7jat

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चौधरी मीत दलाल

मैं बेखबर उड़ता रहा तेरे आगोश में..
बेहिसाब मिन्नतें दुआएं तस्दीक हुई है  इस लबरेज आसमाँ को पाने में
पर कुतर देना लाज़मी होगा,मगर आसमाँ छीनना नहीं।।
-चौ. मीत दलाल

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चौधरी मीत दलाल

किरदारों से वाकिफ कहाँ~
आदतन आवाम यहाँ चेहरों से ज्यादा तो नकाब ओढ़े फिरती है! #shayri #urdu #poetry #hindi #alone
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चौधरी मीत दलाल

तू मेरे जमींदारे कै सी है,टोटा-नफा ~ घाटा-बाधा च कयमे हो बस तू बस सी गयी सै हाडां मह।
इब करें बिना सरैं नहीं, नहीं करें तो जरैं नहीं।।
बस तू आसंग कै सी मेरी,कदे रईसी हालतां मह डूबती सांझ कै सी तू,कदे कदे मेरे चांद कै सी सै तू।।
तने शब्दां मह उकेर पाऊं, मेरी कलम की इब्बे इतणी हैसियत ना सै,मैं देसी-गवांर,मौल्लड़ सा सूं।।
तू मौहलत मह तराशी होई जाली अर मैं फुटया लाकड़ काठ कै सा सूं।।
तू बेहतरीन नक्काशी सै किशे मूर्तिकार की,अर मै औले हाथां तै पाथयाँ माट कै साँ सूं।।
मैं "मीत" बिना किशे वजूद का,तू अर तेरी माशुमियत न छाप दयूं इब्बे ईशा इश्तिहार सूं कौण्या मैं।।

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चौधरी मीत दलाल

चंद कसीदों के लायक तो हूँ मैं भी
बिना किसी शिकायत के बैगरती इश्क़ जो किया है तुमसे
~चौ मीत दलाल 🎬🎬

🎬🎬

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चौधरी मीत दलाल

इश्क़ की बोलियों में कुछ इस कदर खुद को नीलाम किया।
महबूब भी मुक्कमल ना हुए,खुदगर्जी को भी सरेआम बेच दिया।
~चौ. मीत दलाल #shayari #Poet

shayari Poet

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चौधरी मीत दलाल

हाँ हूं मैं बेबाक सा..
अनकहा बेरुखा रूढ़िवाद सा..
मुझे तहलिम नहीं है गैरतों के सी..
अदबी का जामा पहनके..
नहीं ढका जाता मुझसे नकाब सा...

जुरतों के ओजार बहुत कम है मेरे
जुरतें कम हैं मेरी,ओसतें बहुताई नहीं..
तुम बात करते हो बेअदबी की 
खैर छोड़ों ये भी तो कोई इल्तजाईं नहीं...
यूँ मतलबों से लिपटा दामन है नही इस गरीब का 
अकेला छोड़ दो जाने भी दो यूँही हूँ मैं बेनवाज सा..
हां हूँ मैं बेबाक सा।।
अनकहा बेरुखा रूढ़िवाद सा।।

ये शहर ये शाम ये सब नसीब तुम्हीं को
तुम झलकाते रहना यूँही डगमगाते रहना टकराते रहना 
लबों को लबों से,प्यालों को जामों से 
धारधार छुरियां रखते हों पीठ पीछे 
इतना शहद क्यूं टपक रहा है आज इस तहज़ीब को...
इक तरफ रख दो ये पर्दा ये यौवन इकलाख सा...
मेरे हिस्से की रुबाइयां,सदाएं भी ले जाना रहने हो बदनसीब सा...
हां हूँ मैं बेबाक सा...
अनकहा बेरुखा रूढ़िवाद सा...

मेरे लफ्ज़ मेरी कलमें भी उजाड़ दोगे ना तुम!
मैं बीमार* शख्स मेरी इलमें भी उजाड़ दोगे ना तुम!
मैं बुझ* रहां हु लपट के किनारों को भी उजाड़ दोगे ना तुम!
मैं बेतराशी सी बेढंगी पथरीली मूरत इशे भी उजाड़ दोगे ना तुम!
मैं "मीत" हूँ ही ऐसा कहीं ऐसे का ढंग इनियाज़ सा!
मैं "मीत" सितमों की सँकरी टेढ़ी गलियों के बीच गुज़रता मौड़ ऐशबाज़ सा!
हां हूँ मैं बेबाक सा...
अनकहा बेरुखा रुढ़िवाद सा... कुछ लफ्ज़ कुछ महरूम हुए ना हुए निसार मेरे बेढंगे कागजी हर्फ़ ..
#Poet #urdu #shayri #poetry #Hindi #Shayri

कुछ लफ्ज़ कुछ महरूम हुए ना हुए निसार मेरे बेढंगे कागजी हर्फ़ .. #Poet #urdu #shayri #Poetry #Hindi #shayri #poem

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चौधरी मीत दलाल

#OpenPoetry हाँ एक अरसे बाद मुलाकात हुई है मेरी उससे।
कुछ बेपरवाह, कुछ बेजुबाँ तो कुछ ना उम्मीदी सी करामात हुई है मेरी उससे।।

धुंधले उजालों के सी,बिखरती हिदायतों के सी
सिकुड़ती ख्वाबों के सी,ठहरती बनावटों के सी
किसी रोज मुस्कुराई होगी,किसी शाम चहकाई होगी
मालूमात उसे भी नहीं, ये फिसलती रुबाइयाँ कहीं समाई होगी
उखड़ते जज्बातों के बीच शह-मात हुई है मेरी उससे!
हां एक अरसे के बाद मुलाकात हुई है मेरी उससे।।

उसके चेहरे की सिलवटें बयां बहुत कुछ कर गयी थी
उसके चेहरे की गुरबतें रुआं बहुत कुछ कर गयी थी
उसके चेहरे की सिलवटें फना बहुत कुछ कर गयी थी
उसके चेहरे की बदजुबें तन्हा बहुत कुछ कर गयी थी
मदमस्त सी,बेकरारी सी इल्जामात हुई है मेरी उससे।।
हां एक अरसे बाद मुलाकात हुई है मेरी उससे।।

शायद थक सी गयी है वो इन रोजमर्रा के किस्सों से
उम्मीदों तक का रुख ओझल हो चुका है इन दरख्तों के हिस्सों से
ख्वाहिशें रुक सी गयी है,बेजुबाँ थिरकती नुमाइयों से
ये हवाएं ये सदाएं सहम गई है ढलती फिरती इन इनाइयों से
इन सितमों के बीच यादों की शामें घात हुई है मेरी उससे।
हां एक अरसे के बाद मुलाकात हुई है मेरी उससे।।

इस दौर में यूं बेकदर फनाह हुई होगी सोचा तो ना था "मीत"
लिपटते,फिसलते,चीखतें अंधेरो में यूं कैद हुई होगी सोचा तो ना था "मीत"
सायें तक रूह को कुरेदेगे, नासूर बन यूँ फिजाएं मेहरबाँ हुई होगी सोचा तो ना था "मीत"
कारनामे-ए बदस्तूर सुनाके यूँ कहराई हुई होगी सोचा तो ना था "मीत"
हां यहीं है दास्तां-ए-जिंदगी बताने को मेहरात हुई है वो मुझसे
हां एक अरसे बाद मुलाकात हुई है मेरी उससे।।
कुछ बेपरवाह, कुछ बेजुबाँ तो कुछ ना उम्मीदी सी करामात हुई है मेरी उससे।। i dedicated this poem to my school friend whome i met her after a long term.

i dedicated this poem to my school friend whome i met her after a long term. #OpenPoetry

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चौधरी मीत दलाल

कदे सूफी सूं तो कदे अगराज सूं
कदे बैठ के अंतर्मन मह टोहवण लाग ज्याउँ सूं खुद न..
तो कदे फांक छाणती राख सूं..
कदे सिहराणे ना मिलदे खुद की लाश आली नाड़ न
कदे बण्या फिरूँ महल अटारी 
तो कदे खण्डर होइ उजाड़ सूं..
कदे बन्द किताब कै सा,तो कदे खुले पड़े किवाड़ सूं..
कदे झील समुंदर नापणीयाँ,कदे धूल फाकतां झाड़ सूं
कदे रास्तयाँ का मुखबरी सूं,कदे ङगमगवता बेहोश गितवाड सूं
कदे पाथर भारया होज्यां,तो सुलगता मिराड सूं
कदे जाण ज्याऊँ सू खुद न,तो कदे अणजान अलबाद सूं
कदे उजली सबेर कै सा,तो कदे ठंडी पड़ी शाम सी महताब सूं
कदे बण कातिल सूना हांड ज्याउ, तो कदे सूफी गहरी किताब सूं
बस बोझ बण रहया सूं ओ अंतर्मन तेरे प 
ना तेरा यू "मीत" काम का बस न्यू का न्यू बेबाक सूं।। I've done it finally.

I've done it finally.

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चौधरी मीत दलाल

#OpenPoetry कितनों के घर तबाह कर दिए तूने ए इश्क़
तेरी जिबह भी किसी जिल्द की बीमारी के सी हो गयी है।।
~चौधरी मीत दलाल
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चौधरी मीत दलाल

धुलते ख्वाब उलझती तालीमें बिखरते अहसास उखड़ती बंदिशे~
एक रोज किसी शदा को ये मंज़र अब फनाह होने को है।।
~चौधरी मीत दलाल #poetry #lives #urdu #hindi #broken #shayri #mehfil #shayar #ishq
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