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krishnakantkumar6685
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Krishna kant kumar

Nit Rourkela student of cse branch

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Krishna kant kumar

गरीब कहता है, मैं भी धनी बनना चाहता हूँ। 
अमीर ना सही, कम से कम खुशहाल हीं हो लेने दो।
अमीरी सिर्फ मखमली चादरों में थोड़ी होती है, 
जर्ज़र कुटिये में हीं मेरी महल बना लेने दो।।

गरीब कहता है, मैं भी हर्षित होना चाहता हूँ। 
ठहाके ना सही, कम से कम मुस्करा हीं लेने दो। 
खुशी सिर्फ बड़ी गाड़ियों में थोड़ी होती है, 
अपने बग्गी पर हीं दुनिया का बोझ उठा लेने दो।। 

गरीब कहता है, मैं भी राजनीती में आना चाहता हूँ। 
हुक्मरान ना सही, कम से कम अपनी पहचान हीं बता लेने दो। 
राजनीती सिर्फ चमक धमक और तख्तापलट में थोड़ी होती है, 
सज्जनों की तरह अपना भविष्य स्वयं हीं सजा लेने दो।। 

गरीब कहता है, मैं भी सुरक्षित महसूस करना चाहता हूँ। 
बड़े काफिले ना सही, अपना अधिकार तो जता लेने दो। 
सुरक्षा सिर्फ अस्त्र-शस्त्र से हीं थोड़ी होती है, 
अपनी टोली को किसी आपदा में नष्ट होने से पहले हीं लायक बना लेने दो।। 

गरीब कहता है, मैं भी गौरवान्वित होना चाहता हूँ। 
तोपों कि सलामी ना सही, थोड़ी इज़्ज़त तो पा लेने दो। 
सम्मान सिर्फ मैडलों में थोड़ी होती है, 
देश की रीढ़ हूँ मैं, अपना इतिहास खुद हीं दर्ज़ करा लेने दो।। 
©️krishna kant kumar #Morning 
#poorheart
#nature
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Krishna kant kumar

मेरी मुलाक़ात कुछ अपनों से दुबारा हुई, 
किसी ने कहा बड़े बेरुखे हो गए हो तुम, 
किसी ने मेरी अवस्था पर सवाल किया, 
पर किसी ने यह नहीं कहा कि बड़े दिनों बाद मिले हो तुम।। 

ये वही अपने हैं, जो कभी कहते थे, 
तेरे लिए महफिल सजा देंगे, हाँ तो करो तुम। 
महफ़िल तो दूर कि बात है, 
आज किसी ने पूछा तक नहीं, कैसे हो तुम।। 

तुम्हें अपने गरज के लिए मुझसे अपनापन हुई, 
और हम समझ बैठे कि सच में अपने हो तुम। 
कमी तो इसी बात कि खलती है, 
कोई 'अपना' पूछता भी नहीं, क्या ज़िंदा भी हो तुम? 

सोचा था मिलेंगे तो ढेर सारी बातें होंगी, 
मेरे सभी अतरंगी किस्से सुनोगे तुम। 
गुज़री बातें भी याद आएँगी, 
पर यहाँ नौबत इस बात तक आ गई, कौन हो तुम? 
     
               ©️कृष्ण कांत कुमार #emptiness
#nature
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Krishna kant kumar

किसी ने अफवाह फैलाया कि खुदा पृथ्वी को तबाह करने एक सितारा भेज रहा है, 
तो नाराज़ होकर खुदा ने धरती के हीं एक सितारे को वापस बुला लिया।। 
      
आप हमेशा याद रहेंगे इरफ़ान खान 🙏
              ©️कृष्ण कांत कुमार #irrfankhan 
#nature
#RIP😢
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Krishna kant kumar

मेरी मुलाक़ात कुछ अपनों से दुबारा हुई, 
किसी ने कहा बड़े बेरुखे हो गए हो तुम, 
किसी ने मेरी अवस्था पर सवाल किया, 
पर किसी ने यह नहीं कहा कि बड़े दिनों बाद मिले हो तुम।। 

ये वही अपने हैं, जो कभी कहते थे, 
तेरे लिए महफिल सजा देंगे, हाँ तो करो तुम। 
महफ़िल तो दूर कि बात है, 
आज किसी ने पूछा तक नहीं, कैसे हो तुम।। 

तुम्हें अपने गरज के लिए मुझसे अपनापन हुई, 
और हम समझ बैठे कि सच में अपने हो तुम। 
कमी तो इसी बात कि खलती है, 
कोई 'अपना' पूछता भी नहीं, क्या ज़िंदा भी हो तुम? 

सोचा था मिलेंगे तो ढेर सारी बातें होंगी, 
मेरे सभी अतरंगी किस्से सुनोगे तुम। 
उन पलों को पुनः जीवित करेंगे हम, 
पर यहाँ नौबत इस बात तक आ गई, कौन हो तुम? 
     
               ©️कृष्ण कांत कुमार #emptiness 
#closeones
#nature
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Krishna kant kumar

मुझे पालने को आपने, 
मिन्नतों का अम्बार लगाया था। 
हरेक मिन्नतों के रौशनदान में, 
मुझे हीं सजाया था।। 
विश्लेषण किया उन कहानियों को, 
जो आपने मुझे सुनाया था। 
आप तो वही भगवान हो, 
जिसे आपने कहानियों में बताया था।। 
मुझ महल पर कारीगरी कर, 
सुन्दर और सहज़ बनाया था। 
कारीगरी के हर नुखते पर, 
संस्कारों को सजाया था।।  
अपने सपनें त्याग कर, 
मुझे सपना देखना सिखाया था। 
नादानी में मलिन ना कर लूँ अपनी छवि,
इसलिये तो हर मंज़र का दर्शन कराया था।। 
           ©️कृष्ण कांत कुमार #Art 
#momslove
#nature
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Krishna kant kumar

मुझे पालने को आपने, 
मिन्नतों का अम्बार लगाया था, 
हरेक मिन्नतों के रौशनदान में, 
मुझे हीं सजाया था। 
विश्लेषण किया उन कहानियों को, 
जो आपने मुझे सुनाया था, 
आप तो वही भगवान हो, 
जिसे आपने कहानियों में बताया था।। 
मुझ महल पर कारीगरी कर, 
सुन्दर और सहज़ बनाया था,
कारीगरी के हर नुखते पर, 
संस्कारों को सजाया था। 
अपने सपनें त्याग कर, 
मुझे सपना देखना सिखाया था, 
नादानी में मलिन ना कर लूँ अपनी छवि,
इसलिये तो हर मंज़र का दर्शन कराया था।। 

              ©️कृष्ण कांत कुमार #Beauty
#motherlove
#nature
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Krishna kant kumar

उसने कहा -
प्यार तो मैंने भी बहुत किया था। 
सपनों में भागीदारी मेरी भी थी। 
वो सपनें मेरी भी नींदें हराम करती हैं। 
पर क्या करते, ग़लतफहमी का शिकार जो हो गए।। 

आत्मविश्वास तो मेरा भी डूब गया। 
चेहरे की आभा शून्य हो गयी। 
नज़रें दीदार चाहतीं  थी। 
न आयी, लगा की तुम अपनी हीं जिंदगी में मशरूफ हो गए।। 

पर कोई बात नहीं, 
नये अहसासों को जन्म देंगे हम। 
बगीचे में बहार लौट आएगी। 
मिलकर सैर करेंगे हम। 
प्रतिद्वंदिता प्रेम करने की पहले थी। 
अब तो एक हो गए हम।। 
©️कृष्ण कांत कुमार #Beauty 
#love
#brokenheart
#reunion
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Krishna kant kumar

किसी ने मुझसे मेरे जिंदगी के बारे में पूछा। तो मैंने अपनी 'जिंदगी' को सामने लाकर कहा -

बेइंतहा मोहब्बत कि थी हमने। 
साथ रहने के हज़ारों कसमें खायी थी। 
मोहब्बत तो आज भी वही है। 
लेकिन कसमें तार-तार हो गयी।। 

मशगूल बड़े थे हम सपनों की महल बनाने में। 
जहाँ हमने हर -एक पल को कैद किया था। 
महल आज भी वहीँ है। 
लेकिन क़ैदी आज़ाद हो गए।। 

तुम घंटों एकटक देखा करती मेरे शांत चित्त चेहरे को। 
और पूछती, इसकी आभा का राज़ क्या है? 
चेहरा आज भी वही है। 
लेकिन इसकी आभा चली गयी।। 

घंटों साथ घूमा करते थे हम। 
थक -हारकर बैठा करते उस बगिये में। 
बगिया आज भी हमारी राह देखती  है। 
उसे क्या मालूम कि राही जुदा हो गए।। 

चले थे हम दुनिया को मुहब्बत की मिशाल पेश करने। 
अनेकों सपने सौदा किये थे। 
वो सपने आज भी नींदें हराम करती हैं। 
पर कोई बात नहीं, सौदा मुनाफ़ा के लिए थोड़ी किये थे।। #love
#Broken💔Heart 
#nature

#Love Broken💔Heart #Nature

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Krishna kant kumar

मुझे मिला था इक मौका, जिसे नादानी में गँवा दिया.... 
अब लगता है, उसे पाने को सारे सपनें छोड़ दूँ। 
बाहर दिमाग़ संविधान पढता है.. 
और जी चाहता है, सारे नियमें तोड़ दूँ। 
बलवान होने के कई सबूत पेश किये हैं.. 
और जी चाहता है, माँ के गोद में बैठकर रो दूँ। 
सभी मेरी मुस्कान के कायल हैं.. 
और जी चाहता है, दुख की मटकी सबके सामने फोड़ दूँ। 
ये राहें मुझे किसी अंजान मंजिल तक लेकिन जा रही हैं...
जी चाहता है, इन्हें फ़ौरन मोड़ दूँ। 
हर जगह देता हूँ यह सीख, 'जिओ और जीने दो '.. 
और जी चाहता है,  खुद हीं दम तोड़ दूँ। 
पर जब देखता हूँ समंदर को, 
वापस आता ज्वार यही सीख देती है.. 
विश्वास रखो जिंदगी पर, 
यह दुबारा मौका जरूर देती है। 

                    --कृष्ण कांत कुमार #river 
#leftgoals
#life
#Nature
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Krishna kant kumar

भौंहें तनी, नयन बादलों की गहराई मापकर , 
टल जाये यह वर्षा, यही ईश्वर से मना रही थी। 
यह मूसलाधार बारिश उग्र होकर, 
बहा ना दे उनकी कुटिया, इसकी चिंता भी उन्हें खाये जा रही थी।। 

भीषण गर्जन कर, बिजली की जाल से मुक्त होकर, 
आख़िरकार, बारिश नहीं हुई  थी। 
अपनी आभासी लड़ाई का जश्न मुग्ध होकर, 
मंदिरों, राजप्रासादों से दूर, खलिहानों में रहने वाली देवों की टोली मना रही थी।। 

          -- कृष्ण कांत कुमार #Success
#Nature♥️ 
#villagetales
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