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aniruddhasoni9854
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Aniruddha Soni

भगवतगीता का सार रहा उस अर्जुन का युद्ध हूँ मैं जन्मा हूँ इतिहास रचाने अम्बर हूँ अनिरुद्ध हूँ मैं

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Aniruddha Soni

तू   कपटी  है   मन   से   ही  तू  ही  कंस  सा  मामा  है
और  मुझे  पता  है  तेरे  अंदर  भी  एक  अश्वत्थामा  है

धर्म-कर्म का  ज्ञान  तो  है  पर  प्रश्न  यही  उलझाता  है
कि पता नही किस मद में तू कौरव का साथ निभाता है
धर्मों   में   आग   लगाई   है  कुर्सी  पाने  के  लालच  में
रे कितना गिरा दिया खुदको तूने अपनी  इस  आदत में
सबको   पता    नही    तूने    ही   करवाया   हंगामा  है
पर  मुझे   पता  है  तेरे  अंदर भी   एक   अश्वत्थामा  है

नारायण  अस्त्रों   से   तूने  पांडव  सेना  पर  वार  किए 
रे तूने तो छल के बल पर  अर्जुन के  सैनिक  मार  दिए
पांडव   पुत्रों   को   तूने    मृत्यु   के   घाट    उतारा   है
रे  ऐसा  लगता  है  जैसे  कृष्णा  को  ही  ललकारा   है
जानता हूँ  कि  तू  है  छल  तू  ही  काल  की  यामा   है
पर  मुझे  पता है  तेरे  अंदर   भी   एक  अश्वत्थामा   है

'अश्वत्थामा  नही   रहा' रे  इसी  छल   का  दाग  था   तू
छल ने मारा जिसको उस पिता द्रोणा  का  भाग  था  तू
तू अमरता पाकर भी  अब  किसी  काम  का  नही   रहा
रे नाम तेरा बदनाम ही है तू  किसी  नाम  का  नही  रहा
चल माना कलयुग में चलता अब  तेरा  ही  पंचनामा  है
पर  मुझे  पता  है  तेरे   अंदर  भी   एक   अश्वत्थामा  है

इस देश मे रहना चाहता है गुणगान  पड़ोसी  का  करता
तू कुर्सी यहां की चाहता है  सम्मान  पड़ोसी  का  करता
तू   पाकिस्तान    परस्ती   है  या  महबूबा  सी  हस्ती  है
रे   तेरे   कारण  कश्मीरी   पंडित  की  जलती  बस्ती  है
खूब  ओढ़ रहा है  देश  प्रेम  का  ये  जो  झूठा  जामा  है

मुझे   पता   है   तेरे   अंदर   भी   एक   अश्वत्थामा   है
मुझे   पता   है   तेरे   अंदर   भी   एक   अश्वत्थामा   है #RDV19
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Aniruddha Soni

दिल  में  जो  दफ़न  है वो सब  असरार  बता  दूँ  क्या
कौन-कौन  है  महफ़िल  में  बैठा  गद्दार  बता  दूँ  क्या

       जो तेरे  मुहँ  पर  तेरा  है  और एकमुखी सा लगता है
       उन नागों  के दो मुहँ वाले अब मैं किरदार बता दूँ क्या #RDV19
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Aniruddha Soni

आग  का  अंगारा हूँ पानी  पकड़ना  आता है
मुझको मेरे अंदर के रावण से लड़ना आता है

          पाताल  का  अम्बर  बनाया  अम्बर की  चादर  ओढ़ी
          उस चादर को भी पँख बनाकर मुझे तो उड़ना आता है #RDV19
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Aniruddha Soni

काल  की  कला  भला  किसे  समझ में आई क्या
कि काल पर भी काली सी घटा कभी है छाई क्या

काल   के   कपाल  पर  जो  जाल  बाँधने  चला
कि  कालपथ  पे  काल  आया काल बाँधने चला
काल  को  भी  बांध  ले  वो  लंका का प्रधान था
कि  काल  प्रतिकार  ले  ये  काल का विधान था
काल   कह   रहा  करोगे  काल  से  लड़ाई  क्या
रे काल की कला भला किसे समझ में आई क्या

काल   का   कटु   कटाक्ष   कृष्ण  करे  कंस  से
कि  कंस  को  तो कृष्ण के वचन भी लगे दंश से
तो  कंस की काया भी तब कहन से काँपने लगी
वो  काया  कुकरम से  खुद की मौत नापने लगी
कंस  की  चिता  कहीं  भी  कृष्ण ने जलाई क्या
रे काल की कला भला किसे समझ में आई क्या

कौरवों  पे  हो  कहर  कि  काल  की ये सृष्टि  है
रे  काल  कर्ण  पर  कसी  शनि  की वक्रदृष्टि  है
काल   देखो   कौरवों   को   कैसी  हार  देता  है
कि  कालखंड   कालजयी    कर्ण  मार  देता  है
काल ही कवच भी ले कवच ही सब कमाई क्या
रे काल की कला भला किसे समझ में आई क्या

काल  की  कला भला किसे समझ में आई क्या
रे काल पर भी काली सी घटा कभी है छाई क्या #RDV19
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Aniruddha Soni

वो  प्रेम  प्रणेता  कान्हा भी  जब धर्म का करता मंथन है
तब  बांसुरी  का  रूप  बदलकर  होता  चक्र  सुदर्शन  है

वो  गोकुल  की  सुरताल बना वो लाल नन्द की ढाल बना
वसुदेव  का   पुत्र  है  वो  संग  दो  मैय्या  का  लाल  बना
भगवान की किस्मत देखो कि  वो माँ भी कारावास में थी
कि  कृष्ण  बचाने  आएगा जीवन भर इस अरदास में थी
जब  कंस  कपट  से  देवकी  की  काया  करती क्रंदन है
तब  बांसुरी  का  रूप  बदलकर  होता  चक्र  सुदर्शन  है

भगवतगीता का सार  रहा  वो  एक  गगन  विस्तार  रहा
कभी  क्रोध  रणचंडी  सा  कभी  मोहक  सा  श्रृंगार रहा
वो दुर्योधन  को  समझाने  एक  रूप  अति विक्राल बना
वो दुर्योधन का  काल बना वो महाभारत की  चाल  बना
जब  कृष्ण  को  नकार   कर  दुर्योधन  करता  गर्जन  है
तब  बांसुरी  का  रूप  बदलकर  होता  चक्र  सुदर्शन  है

मटकी  से  मथुरा  तक  जिसका  महाकाव्य  में वर्णन है
धर्म  कर्म  तप  त्याग  प्रेम  सम्पूर्ण   समाहित   संगम  है
वो  गर्व  गोवर्धन  चूर  करे  और प्रेम का भी वो बन्धन है
वो  नाग  नाथ  कहलाता  है  वो  एक  सुगंधित  चंदन है
जब  कर्म  तराजू  पर  करता  हर न्याय देवकी नन्दन है
तब  बांसुरी  का  रूप  बदलकर  होता चक्र  सुदर्शन  है

तब  बांसुरी  का  रूप  बदलकर  होता चक्र  सुदर्शन  है
तब  बांसुरी  का  रूप  बदलकर  होता चक्र  सुदर्शन  है #RDV19
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Aniruddha Soni

मैं   तेरी   बानी   से   हारा   जैसे  पत्थर  बानी  से  हारा
कितना  शातिर  था  मैं  पर  दिल  की  नादानी  से  हारा
सिकंदर सा  कहलाया  हूँ  मैं  जीत  चुका  सारी  दुनियाँ
जो संग  में पूरी  करनी  थी  उस  प्रेम  कहानी  से  हारा

क्या याद करू मैं उसको भी जो बीच राह में  चली  गयी
मुझसे   मेरा   प्यार   छीन  कर ग़ैर  बाह  में  चली  गयी
रोना   चाहता   था   मैं   पर   मैंने   होठ  दबाए  रखे  थे
पीया घूँट जो आँसू का  फिर  जान  आह  में  चली  गयी

दिल  दरियाँ  है  आँख समंदर दिल में एक  तूफ़ान  हुआ
इतना   रोया   की   आँखों   में  आँसू  ही  श्मशान  हुआ
इतनी पीड़ा से गुजरा की दिल ने धड़कन का रुख बदला
अब  प्यार की अर्थी है दिल में दिल मेरा कब्रिस्तान हुआ

फूल   की   परवाह   नही   अब   काँटों  से  मोहब्बत  है
जो   हाथ   है   छोड़   गया   उन  हाथों  से  मोहब्बत  है
बिछड़न पर  तूने  की  थी  वो  बातें  बहोत  खटकती  है
अब  पूछोगी  तो  कह  दूंगा  उन  बातों  से  मोहब्बत  है

बारिश   हो  रही  है  यारा  तुझको  कुछ  ख़बर  है  क्या
यादें अब भी आती है  पर  तुझको  कुछ  ख़बर  है  क्या
तुम चली गई जबसे  यारा  ये  दिल  धड़कना  भूल  गया
ये दिल कोमा में रहता है अब तुझको कुछ  ख़बर है क्या #RDV19
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Aniruddha Soni

अब  मोहोंब्बत  के  उठते  जनाजे कई
अब  तो  पी  ली  है   हा  ये शराबें कई
बस तो क्या पन्नो को यू तू फाड़ेगा अब
अब तो लिख दी है हमने किताबे कही

कैसे  मैं  चुप  रहा  मैंने   कितना सहा
तू  चली  जो  गयी  मैंने  कुछ ना कहा
तुझको वादा किया था ना रोऊंगा अब
आँख  में  है  दबा  आँसू  एक ना बहा

तू  बदल  तो  गयी  मैं  बदल ना सका
अब किसी और पर मैं मचल ना सका
तू ही तो मुझको पत्थर बना  कर गयी
और कहती है अब मैं पिघल ना सका

बारिशें  अब  नही   तेरे   संग  में  रही
आवाज़े  पानी की मुझसे  जंग ले रही
तेरे  गालों पर जो पहला  रंग था  मेरा
अब तो होली भी मुझसे है रंग ले रही
 
मैंने  पूछा  गिलासों  से  क्या चल रहा
वो  है कहती शराबों में जल जल रहा
बर्फ  के टुकड़ो में भी वो याद आई है
पीर  इसी  की रही  वो मेरा  कल रहा

घावों पे अब नमक यू छिड़कता है क्यों
प्रेम  के  नाम पर अब भड़कता है क्यों
क्या कोई धोका है जो है तुझको मिला
इश्क से भी तू पल्ला  झड़कता है क्यों #RDV19
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Aniruddha Soni

मैं  मोहोंब्बत  की  इतनी  सज़ा  बन  गया
तू   मेरी   ना   बनी   मैं   तेरा   बन   गया
तेरी   थी   ये   रज़ा   मैं   दिखूं   चाँद   मैं 
तो  मैं  मर  कर  तेरी  ही  रज़ा  बन  गया

घाव   गहरा  है  पर   अब  दिखाता  नही
याद  आती   है  पर   अब   बताता   नही
तू  है  कहती   मैं   इश्क़   निभा  ना सका
मैं  निभाता  हूँ  बस   अब   जताता  नही

इतना  कसकर  गले  यूँ  लगाया  था क्यों
मुझको  तूने  ओ  पगली  रुलाया था क्यों
दिल की दहलीजों से मुझको ठुकरा दिया
गोद  में  अपनी  फिर  यूँ सुलाया था क्यों

तू  गई  एक   दिन   ज़ख्म   गहरा   हुआ
मैं  अभी  भी  वही   पे   हूँ   ठहरा   हुआ 
तुझको   रोका   बहोत   चीखते - चीखते
बस  उसी   वक्त  से  हूँ  मैं   बहरा   हुआ

लफ्ज़ ही अब  है  क्या  चंद  बातें  ही  है
अब   मुलाकाते   तेरी   तो   यादें   ही  है
पहले  तुम  थी तो आँसू  पता  ही  ना  थे
अब तो आँसू भी  लगते  कि कांटे  ही  है #RDV19
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Aniruddha Soni

चाह  रहा  चाँद  का  चकोर चहकाना  भी
कि चूम ले चरण चकवा के चारु हो  जाए
ऊपर  से   उर   लेके   उतरे  उषा   में  ही
कि निशा उतरे तो चकवा उतारू हो जाए
पावस  में   परिवर्तन   परिणय   का    हो
प्राज्ञ  पत्र   बने  प्रमाण  पंखेरू  हो  जाए 
मन  से  मिले है मग ना मिले तो मर जाए
मर  के  वियोग  में  मलय  मेरु  हो  जाए

रो  रही  है  रुकमणी  राधा राग रमती है
राधेश  के   रोम-रोम  रक्त  में  रमाई  है
मीरा मौन मानती है मोहन के मन मे तो
राधा-मीरा-रुकमणी  तीनों  ही समाई है
धारण  धतुरा  करा  धन्य  हुए है ये धरा
धरा  पे  जो  मीरा अवतार लेके आई है
मीरा ने है मन मारा मन मारा है राधा ने
दोनो  ने  ही पीर रीत प्रेम की निभाई है

छल  से  छलेगा  छलियाँ  ही छल को तो
छल  छिन्न-भिन्न होके चूर-चूर हो जाएगा
दिल  पे  लगेगा  या  कि  दिल  से लगेगा 
या कि दिल से जाएगा दूर-दूर हो जाएगा
गिरेगा गरुण भी वो गिरेगा गंवारों सा जो
यदि  गाथा  से  ज्यादा  गुरुर  हो जाएगा
मित्र  मानवता के मंत्र मृदु भाषा ज्ञानी है
जो  ऐसा  मित्र  है वो मशहूर हो जाएगा #RDV19


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