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dilipkumar2981
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DiLip KumaR

कवि और शायर एक चीज़ के भूख़े होते हैं- कविता/नज़्म/मिसरे अगर अच्छे हों तो "दाद" मिलनी चाहिए...लाइक करो यारों और कमेंट करो...तुमलोगों की बिरादरी का ही हूँ ...हा हा हा 😃😂😊

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DiLip KumaR

क्या रंग हैं तेरे...
सब अपने-अपने अस्तित्व को  चरितार्थ करते 
आकाश...काले बादल....सूर्य की किरणें ...
सारे रंगों को समेट एक रंग देता समंदर 
हमारे अस्तित्व को साकार रूप देता...
वाकई क्या रंग हैं तेरे...

. रंग...

रंग...

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DiLip KumaR

आओ ... एक चादर बुनें
रंग सारे मिलकर चुनें 
हर रंग की अपनी भाषा हो
नवजीवन की आशा हो

सुख-दुःख के तानों बानों से
एक एक आकार जो उभरेंगे 
अनमोल धरोहर की भांति 
युग युग तक जग में बिचरेंगे

चादर ना बड़ी हो,ना छोटी हो
जितनी ज़रूरत बस वैसी हो
स्नेह और विश्वास के धागे हों 
प्यार के मोती जड़े हों, ऐसी हो.. 

रखेंगे हम सहेजकर इसको 
दाग अहम् का लग ना जाए 
मिलजुल ओढ़ें, हम संग गुनें
जब-जब प्रेम ऋतु आए । 

इसे ओढ़कर नवजीवन के गीत सुनें 
आओ हम मिलजुल ,एक चादर बुनें... आओ एक चादर बुनें...

आओ एक चादर बुनें...

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DiLip KumaR

इतना शोर-गुल है 
हर कोई मशगूल है 
कहाँ बहलाएँ दिल को 
सब कुछ यहाँ फ़ज़ूल है ... शोर-गुल...

शोर-गुल...

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DiLip KumaR

#OpenPoetry आज तेरे जन्मदिन पे दुआएँ देते सभी 

बिटिया तेरे सपने बड़े हों !

चाँद-तारे तेरी खुशियाँ लेकर खड़े हों  
    
 बिटिया तेरे सपने बड़े हों !

तेरे सफलता के मुकुट पर हीरे जड़े हों 

बिटिया तेरे सपने बड़े हों !! तेरे जन्मदिन पर...

तेरे जन्मदिन पर... #OpenPoetry

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DiLip KumaR

ज़िंदगी के पास जाना आज जाना कैसा लगता है                                    बहार गाने लगता है फिर  ज़ादू सा छाने लगता है            ज़िंदगी के पास जाना आज जाना कैसा लगता है                                    बहार गाने लगता है फिर  ज़ादू सा छाने लगता है ज़िंदगी के पास...

ज़िंदगी के पास...

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DiLip KumaR

तुझको न देखूँ ,क्या कहूँ ज़िंदगी, 
रहा नहीं जाता
तुम्हारा यूं ख़फ़ा होना मुझसे,
 सहा नहीं जाता... सहा नहीं जाता...

सहा नहीं जाता...

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DiLip KumaR

सावन रूठा,मेघ ना छाए
कैसे, नाचे मन का मयूर 

बादल जाने कब बरसेंगे 
कब तक हम यूँ ही तरसेंगे 
कब तक रहेंगी बूंदें, इस धरती से दूर 
कैसे,नाचे मन का मयूर 

राग मल्हार कोई गाओ रे
निष्ठुर सावन को मनाओ रे
अभिमानी के मद को,कोई अब चूर 
कैसे,नाचे मन का मयूर मन का मयूर...

मन का मयूर...

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DiLip KumaR

क्यूँ नहीं बरसते
बंज़र पड़ती धरती में
उन तरसती आँखों का सोचो
जो एक ही आस लिए बैठे हैं 
के तुम बरसो तो ये भी महकें 
धरती की तरह सोंधी-सोंधी... सोंधी-सोंधी...

सोंधी-सोंधी...

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DiLip KumaR

मैं हो जाता हूँ तब निराश,
             रहती हरदम है तेरी आस             
  मत हुआ करो तुम यूं उदास,
 बस रखो एक मेरा विश्वास... मेरा विश्वास...

मेरा विश्वास...

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DiLip KumaR

यादों को संजोती हूँ मैं 
बस उसी को जीती हूँ मैं 
जब-जब तेरी याद सताए 
जाम अश्कों के पीती हूँ मैं... तेरी यादें...

तेरी यादें...

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