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fatehchauhan6880
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Fateh Chauhan

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Fateh Chauhan

प्रशन्नता पहले से निर्मित कोई व्हिज नही है। यह आप ही के कर्मो से आती है।

प्रशन्नता पहले से निर्मित कोई व्हिज नही है। यह आप ही के कर्मो से आती है।

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Fateh Chauhan

रिश्ते अहसास के होते हैं, अगर अहसास हो तो, अजनबी भी अपने होते हैं।
और अगर अहसास नहीं तो, अपने भी अजनबी होते हैं। रिश्ते अहसास के होते हैं, अगर अहसास हो तो, अजनबी भी अपने होते हैं।
और अगर अहसास नहीं तो, अपने भी अजनबी होते हैं।

रिश्ते अहसास के होते हैं, अगर अहसास हो तो, अजनबी भी अपने होते हैं। और अगर अहसास नहीं तो, अपने भी अजनबी होते हैं।

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Fateh Chauhan

नज़र बचा के गुज़र जाएँ मुझ से वो लेकिन
मेरे ख़याल से दामन बचा नहीं सकते #sadshayari
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Fateh Chauhan

 Good Night
Night is to the dreams and day is to make them true. So it's good to sleep now and see the dreams.

Good Night Night is to the dreams and day is to make them true. So it's good to sleep now and see the dreams.

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Fateh Chauhan

कोई आया था दिल की बस्ती में
दिल मिरा झूमता था मस्ती में #nojotohindi
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Fateh Chauhan

 कौन आपको गुस्सा दिलाता है?

जब भी हमें गुस्सा आता है, हम यह पूरे स्पष्ट रूप से जान रहे होते हैं, कि हमें गुस्सा किसकी वजह से आया है। क्या सचमुच हमारी सोच सही होती है?

जब भी हमें गुस्सा आता है, हम यह पूरे स्पष्ट रूप से जान रहे होते हैं, कि हमें गुस्सा किसकी वजह से आया है। क्या सचमुच हमारी सोच सही होती है? 

कोई पेड़ या पौधा, भौंरा या कीड़ा... दूसरों को मारने की साजिश में नहीं लगा रहता। वे अपने अंदर तनाव नहीं पालते। इसलिए वे अपनी प्रकृति के अनुसार पूर्ण रूप से काम करते हैं।

कौन आपको गुस्सा दिलाता है? जब भी हमें गुस्सा आता है, हम यह पूरे स्पष्ट रूप से जान रहे होते हैं, कि हमें गुस्सा किसकी वजह से आया है। क्या सचमुच हमारी सोच सही होती है? जब भी हमें गुस्सा आता है, हम यह पूरे स्पष्ट रूप से जान रहे होते हैं, कि हमें गुस्सा किसकी वजह से आया है। क्या सचमुच हमारी सोच सही होती है? कोई पेड़ या पौधा, भौंरा या कीड़ा... दूसरों को मारने की साजिश में नहीं लगा रहता। वे अपने अंदर तनाव नहीं पालते। इसलिए वे अपनी प्रकृति के अनुसार पूर्ण रूप से काम करते हैं।

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Fateh Chauhan

अज़ल से हुस्न-परस्ती लिखी थी क़िस्मत में
मिरा मिज़ाज लड़कपन से आशिक़ाना है

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Fateh Chauhan

इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र न हो 
मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर न हो 

- नरेश कुमार शाद

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Fateh Chauhan

मैंने हवा के शौक में खोली थी खिड़कियां,
पर तेरी यादों का धुआँ मेरे घर में आ गया...!!

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Fateh Chauhan

*जिंदगी जीलो साहब..*
*बाकी एक दिन ऐसा आयेगा*

*कि*

*आपके ही प्रोगाम मे*
*आपकी गैराहजिरी होगी*

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