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abcniyamatpuri782332
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abcniyamatpuri786@email.com

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abcniyamatpuri786@email.com

तू ख़ुदा बन मगर हिसाब न कर।
ऐब  औरों  के बे निक़ाब न कर।

झूठ  पे  सच  की डाल के चादर, 
ज़िन्दगी पर बड़ा अज़ाब न कर।

तू  किसी  के  लिये  बुरा कर के, 
अपने घर वार को ख़राब न कर।

रोज़    ढ़ूँढ़ेगा    अपनी   ताबीरें, 
ज़िंदगी जी इसे तू ख़्वाब न कर।

शुह्रतों  के  लिये  मदद  कर  के, 
अपने ऊपर कड़े अज़ाब न कर।

आएगा तुझपे भी गहन इक दिन,
इस बुलंदी का आफ़ताब न कर।

देख  कर  चेहरे को  पढ़े दुनिया, 
दर्दे-दिल यूँ खुली किताब नकर।

लाख   दुनिया   बुरा   करे  तेरा, 
तू  बुराई  का  इन्तिख़ाब न कर।

इस  क़दर  तू *बहार* लालच में, 
काग़ज़ी  फूल को गुलाब न कर।

*बहार चिश्ती नियामतपुरी*
🦃🦃 अल्फ़ाज़ 126 🦃🦃
2122-1212-112/22
बह्रे-खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
🦃🦃 25/05/2019 🦃🦃

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abcniyamatpuri786@email.com

दिलो-जाँ में जब से, सनम मुस्कराये।
जबीं  तुझ पे नक़्शे-क़दम, मुस्कराये।

ख़ुशी के दिनों में भी  कम  मुस्कराये।
मगर  इश्क़  में  चश्मे- नम  मुस्कराये।

मिले    ख़ूब  दोनों, ग़मे-हिज्र   ले के, 
*न वह  मुस्कराये, न हम मुस्कराये।*

रहे   जो  हमारी, मुहब्बत  के  दुश्मन, 
ग़मों  में  भी  वह, मुहतरम मुस्कराये।

बचे  साफ़  बर्क़े-तबस्सुम  से  लेकिन, 
तिरी  ज़ुल्फ़  के  पेचो-ख़म मुस्कराये।

मिरे जानो-दिल पे किसी अजनबी के, 
अचानक    निगाहे-करम   मुस्कराये।

ख़ुशी  तेरे  आग़ौश  में  भी किसी के, 
इनायत  करम   रंजो-ग़म   मुस्कराये।

लबे-मर्ग  आँखों  में  सूरत, लबों  पर, 
तिरा  नाम  ही, दम ब दम  मुस्कराये।

कभी  तूने सोचा मुहब्बत के मुनकिर, 
मुहब्बत   से  सारे - धरम  मुस्कराये।

किसी ने, न देखा, मुहब्बत  से हट के, 
कहीं  भी   शिवाले   हरम  मुस्कराये।

किसी की मुहब्बत के सदक़े  में देखो, 
ख़ुदा  के  भी  बाग़े - इरम  मुस्कराये।

ग़मों   में  अगर  यार  हमराह  है  तो, 
मुहब्बत   में  टूटे   शिकम, मुस्कराये।

ग़मे-हिज्र ही की बदौलत*बहार*अब, 
शबो - रोज़   तेरा  क़लम   मुस्कराये।

*बहार* आई फ़ुर्क़त के दौरे-ख़ज़ाँ में, 
ग़मे - यार    तेरे   सितम   मुस्कराये।

*बहार चिश्ती नियामतपुरी* 

🌹🌹 अल्फ़ाज़ 172 🌹🌹🌹
122-122-122-122
बह्रे-मुतकारिब मुसमन सालिम।
🌹🌹🌹 24/05/2019 🌹🌹

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abcniyamatpuri786@email.com

सोते   या जागते   हों, मदीना दिखाई   दे।

यानी   ख़ुदा का   हुस्न हमेशा  दिखाई दे।


अहमद  अहद में  मीम का, पर्दा दिखाई दे।

इस   पर्द-ए  सिफ़ात में, मौला  दिखाई दे।


मौला  मिरी नज़र  को वो, बीनाई कर अता, 

*हर शय  में मुझको गुम्बदे-ख़ज़्रा दिखाई दे।*


कुन्जी-ए  कुन इशारा   अगर चाँद को करें, 

तो  वह फलक  पे क्यों न दुपारा दिखाई दे।


सरकारे-दो   जहाँ की, मुहब्बत  के फ़ैज़ से, 

इन्सान  में ख़ुदा   का, ख़ुलासा दिखाई  दे।


मक़सद ख़ुदा-ओ ख़ल्क़ है,जब ज़ाते-मुस्तफ़ा, 

तो  क्यों   न कायनात  में, यकता दिखाई दे।


राज़े-ख़ुदा-ओ  ख़ल्क़ फिर आ जाये ज़िह्न में, 

गर   क़तरे   के वजूद  में दरिया दिखाई दे।


का'बे   का का'बा   देख, बढ़ें और लज़्ज़तें, 

का'बे   में काश   साहिबे-का'बा  दिखाई दे।


मुरशिद के दस्ते-हक़ से *बहार* आएगी अगर, 

दस्ते-ख़ुदा   से चेहरा, ख़ुदा   का दिखाई दे।


*बहार चिश्ती नियामतपुरी*


🌹🌹🌹 अल्फ़ाज़  150 🌹🌹🌹

221-2121-1221-212

*बह्रे-मज़ारिअ मुसमन अख़रब

मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़

🌹🌹22/05/19 से 24/05/19🌹🌹

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abcniyamatpuri786@email.com

कभी  सर्दी   कभी   गर्मी, कभी   बरसात   होती   है। 
जुदाई   में   इसी  अन्दाज़   की, हर   रात   होती   है। 

मयस्सर   है   नहीं   सबको, किसी   के साथ होती है। 
ग़मे-फ़ुरक़त  मुहब्बत   की, हसीं   सौग़ात   होती   है।

हसीनाने - ज़माना   का  जहाँ  भी,   तज़किरा   होता, 
वहाँ  तेरा  ही  नाम  आता   है, तेरी   बात   होती   है। 

अकेले  तुम  नहीं लेकिन, सितम रंजो- अलम ग़म की, 
मिरी     तन्हाईयों    के   साथ   में, बारात   होती   है। 

उसे  क़ुर्बे-ख़ुदा  मिलता  है, दुनिया  और   उक़्बा   में, 
कमाई  इस्मे-जानाना   की, जिसके   हाथ   होती   है। 

मुसीबत  में सुकूनो-सब्र  से, गर   काम   ले   लो   तो, 
नहीं  फिर  कोई  मुश्किल, साअते- सदमात  होती  है। 

जो  महरूमे-मुहब्बत, मुनकिरे-इश्क़ो - वफ़ा  उनको, 
दु  आलम   में   हमेशा, हर  क़दम  पे, मात  होती  है। 

कज़ा  ता  ज़िन्दगी  इसकी, अदा  हो  ही  नहीं सकती, 
जहाँ   में   हर   इबादत  से, बड़ी  ख़िदमात  होती  है। 

जहाँ  भी  हो  वहाँ  तुम, तज़किरा  महबूब  का करना, 
इसी   को   हम्द   कहते  हैं, यही  तो  ना'त  होती  है। 

*बहार*उनके ही ज़ेरे-पॉ,मुबारक सर को ख़म रखना, 
मुहब्बत  है तो  दिलबर  ही, ख़ुदा  की  ज़ात  होती है। 

*बहार चिश्ती नियामतपुरी*
🌹🌹🌹 अल्फ़ाज़ 185 🌹🌹🌹🌹
1222-1222-1222-1222
बह्रे-हज़ज मुसम्मन सालिम।
🌹🌹🌹 18/05/2019 🌹🌹🌹🌹

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abcniyamatpuri786@email.com

तीर जब भी हवा में चलते हैं। 
चोट खाते हैं दिल मसलते हैं। 

डूब  जाती हैं झील में आँखें, 
दर्द जब आँसुओं में ढ़लते हैं। 

आपको देख कर बिना सोचे, 
रोज़  आईने में  सँभलते हैं। 

सूए-मस्जिद  ग़रीब ख़ाने से, 
मैकशी  के लिये निकलते हैं। 

लौट  आएंगे  यह भरोसा है, 
रोज़ अर्मान क्यूँ  मचलते हैं। 

छोड़ जाती है मौत आँखों के, 
जब कभी ज़ाविये बदलते हैं। 

याद  करते हैं  हाथ मलते हैं। 
दिलके अर्मांं सभी कुचलते हैं, 

ये अमानत हैं ग़म नहीं उनके, 
टूटे  दिल में जो मेरे पलते हैं।

शाम होते ही दीप हसरत के, 
रात भर जुस्तजू में जलते हैं। 

दर्द  बढ़ के  सुकून पाता है, 
तेरे कूचे से जब निकलते हैं। 

सूरते-मोम  दिल नहीं पत्थर, 
गर्मि-ए  इश्क़ से पिघलते हैं। 

आज  मेरी *बहार* आएगी, 
सोचते हैं तो फूल खिलते हैं। 

*बहार चिश्ती नियामतपुरी*
🌹🌹 अल्फ़ाज़ 144 🌹
2122-1212-22
🌹🌹 17/05/2019 🌹

24242de9e633c03e5bce25ec09de6f5b

abcniyamatpuri786@email.com

तीर  जब निगाहों से, दिल के पार होते हैं। 

दामनो-गिरीबाँ   तब, तार-तार होते   हैं। 


वह    हरेक हालत  में, होनहार होते  हैं। 

पॉये-यार  में जिनके, दिल निसार होते हैं। 


ऐ'तबार   रखते हैं, लोग  जो मुहब्बत पे, 

सिर्फ़  उनके बस के ही, इन्तज़ार होते हैं।


वादि-ए मुहब्बत में,दाख़िला मिला जिनको, 

बा ख़ुदा  वो जीते जी, इक  मज़ार होते हैं।


आशिक़ों के होंटों पे, आह तो नहीं लेकिन, 

दर्द  दिल की  दुनिया में, बे शुमार होते हैं। 


यार  एक होता  है, दुश्मनान  दुनिया की, 

हर गली में आशिक़ के, इक हज़ार होते हैं। 


दौलते-ग़मे-हमदम, जिनके  पास होती है,

लोग  वह दुआलम  में,पुर *बहार* होते हैं। 


*बहार चिश्ती नियामतपुरी*

🌹🌹🌹 अल्फ़ाज़ 119 🌹🌹🌹🌹

212-1222-212-1222

बह्रे-हज़ज मुसम्मन अश्तर                     

🌹🌹🌹 13/05/2019 🌹🌹🌹🌹

24242de9e633c03e5bce25ec09de6f5b

abcniyamatpuri786@email.com

तीर  जब निगाहों से, दिल के पार होते हैं। 

दामनो-गिरीबाँ   तब, तार-तार होते   हैं। 


वह    हरेक हालत  में, होनहार होते  हैं। 

पॉये-यार  में जिनके, दिल निसार होते हैं। 


ऐ'तबार   रखते हैं, लोग  जो मुहब्बत पे, 

सिर्फ़  उनके बस के ही, इन्तज़ार होते हैं।


वादि-ए मुहब्बत में,दाख़िला मिला जिनको, 

बा ख़ुदा  वो जीते जी, इक  मज़ार होते हैं।


आशिक़ों के होंटों पे, आह तो नहीं लेकिन, 

दर्द  दिल की  दुनिया में, बे शुमार होते हैं। 


यार  एक होता  है, दुश्मनान  दुनिया की, 

हर गली में आशिक़ के, इक हज़ार होते हैं। 


दौलते-ग़मे-हमदम, जिनके  पास होती है,

लोग  वह दुआलम  में,पुर *बहार* होते हैं। 


*बहार चिश्ती नियामतपुरी*

🌹🌹🌹 अल्फ़ाज़ 119 🌹🌹🌹🌹

212-1222-212-1222

बह्रे-हज़ज मुसम्मन अश्तर                     

🌹🌹🌹 13/05/2019 🌹🌹🌹🌹

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abcniyamatpuri786@email.com

कुन  लफ़्ज़  के उनवान हैं, सुलताने- मदीना।
मख़लूक़   के सुलतान  हैं, सुलताने - मदीना।


अल्लाह   के मेहमान   हैं, सुलताने- मदीना। 
इस   शान के  इन्सान हैं, सुलताने- मदीना। 


कल  नूर था  अब नूरे-मुजस्सम में है ज़ाहिर, 
अल्लाह   की पहचान  हैं, सुलताने- मदीना।


जिसने   भी पढ़ा   साहिबे - ईमान  हुआ है, 
वह   इश्क़  का दीवान हैं, सुलताने- मदीना।


अख़लाक़   से अनवार   से, संसार ने देखा, 
हर   तौर से  धनवान हैं, सुलताने - मदीना।


कुछ  बात नहीं  जिन्नो-बशर, की  है जहाँ में, 
जिब्रील   भी दरबान   हैं, सुलताने - मदीना।


इस ज़ात के पैकर को*बहार*अब भी न जाना, 
कुल  ख़ल्क़  पे इहसान हैं, सुलताने- मदीना।


*बहार चिश्ती नियामतपुरी*

🌹🌹🌹 अल्फ़ाज़ 109 🌹🌹🌹🌹

221-1221-1221-122

🌹🌹🌹 17/05/2019 🌹🌹🌹🌹

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abcniyamatpuri786@email.com

ज़ख़्म दिल पर और खाने दीजिये। 
ज़िन्दगी  को   मुस्कुराने   दीजिये। 

ज़ुल्म  वह  ढ़ायें  तो ढ़ाने दीजिये। 
हमको क्या है कसमसाने दीजिये। 

ज़िन्दगी का हश्र कुछ भी हो मगर, 
ज़िन्दगी  को  पास आने  दीजिये।

यह  सियासत  के  मदारी  हैं इन्हें, 
उम्र  भर  करतब दिखाने दीजिये। 

ख़ाक हो जाएगा फ़ित्ना एक दिन, 
आग   पानी  में   लगाने  दीजिये। 

पॉय  जानाँ  पे  मिरे  वाइज़  मुझे, 
शौक़  से  गरदन  झुकाने दीजिये। 

दिल  किसी  के दर्द की जागीर है, 
दर्द  को  दिल  में छिपाने दीजिये। 

इश्क़ में साहिल मुझे मिल जाएगा, 
रेत  में   कश्ती   चलाने   दीजिये। 

आँख  से आने में रुसवाई का डर, 
दर्द  को  दिल  में  दबाने  दीजिये। 

दीद-जानाँ को तो कुछ लम्हे बहुत, 
कौन   कहता  है  ज़माने  दीजिये। 

ख़ान-ए दिल इश्क़ से रौशन है तो, 
उम्र   भर   सदमे  उठाने  दीजिये। 

चश्मे-जानाँ का ख़ुमार उतरा नहीं, 
उम्र  भर  पीने   पिलाने   दीजिये। 

ले गया दिलदार दिल परवाह क्या,
रंजो-ग़म  को  आने जाने दीजिये। 

तुम  हमारे  साथ  हो  तो ग़म नहीं, 
सारे  जग  को  आज़माने दीजिये। 

आप आयें तो ख़ज़ाँ में भी*बहार*
वर्ना ग़म तिल तिल बढ़ाने दीजिये।

एक दिन वो आएंगे बनके *बहार*
फूल  गुलशन  में खिलाने दीजिये।

*बहार चिश्ती नियामतपुरी*
🌹🌹🌹 अल्फ़ाज़ 209   🌹🌹
2122 2122 212
बह्रे-रमल मुसद्दस महज़ूफ़।
 🌹🌹🌹 16/05/2019 🌹🌹🌹

24242de9e633c03e5bce25ec09de6f5b

abcniyamatpuri786@email.com

ग़ैरों  को  झूठ  बोल के अपना बना लिया।
सच बोल के अपनों को पराया बना लिया।

सच बोलना *बहार* की ग़ैरत थी क्या करें, 
बेचारी  ज़िन्दगी  को  तमाशा बना लिया। 

बहार चिश्ती नियामतपुरी

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