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shamshadahmed2841
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Shamshad Ahmed

शायरी लिखने और सुनने का शौकीन

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Shamshad Ahmed

रहमत से अपनी मुझको तू भरपूर अता कर।
रौशन करे जो नस्ल को वो नूर अता कर।
ये तुझसे इल्तेज़ा है ऐ रब्बे क़ायनात,
जन्नत में साथ मेरे, मेरी हूर अता कर।

©Shamshad Ahmed #QandA
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Shamshad Ahmed

चार दिन के लिए आया है तू मेहमान बन कर।
हंसी खुशी से बशर कर ले इंसान बन कर।
एहसान तुझपे कितने हैं उस रब के 'शमशाद',
ग़ौर करना कभी सूरह रहमान पढ़ कर।

©Shamshad Ahmed #Trees
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Shamshad Ahmed

अक्सर छुप छुप कर रुलाता है मुझे।
ये दर्द-ए-दिल है साहब ,सरे आम यूँ नही आता।

©Shamshad Ahmed

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Shamshad Ahmed

नया अमीर है,उसके घर अभी न जाया करो,
वो हर एक चीज़ की कीमत बताने लगता है।

©Shamshad Ahmed #walkingalone
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Shamshad Ahmed

उजड़ चुका है मेरे घर का वो शब्ज़ शजर।
मेरा मुंडेर परिंदो से अब भी ख़ाली है।

©Shamshad Ahmed #SAD
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Shamshad Ahmed

उठते थे हँसते खेलते वो दिन उठा के ला।
मेरे गांव की गलियों से बचपन उठा के ला।
हमने भी बनाया था मिट्टी का एक महल,
ढहने के बाद याद का मलबा उठा के ला।
हो चुका है तार तार इस रूह का लिबास,
जो माहिर रफ़ूगिरी में हो उसको बुला के ला।
यूँ ग़म ज़दा न बैठ मेरी क़ब्र के क़रीब,
जो छोड़ के लेटा हूँ वो माज़ी सुना के आ।

©Shamshad Ahmed #alone
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Shamshad Ahmed

Alone  सारी उम्र जिसके पाने के तालिब रहे,
जान सी निकल गयी जब उसके कहा

*बेवफ़ा हो तुम*

©Shamshad Ahmed #alone
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Shamshad Ahmed

सांसों की डोर ही तो है कभी भी टूट जाना है।
माल, दौलत, अपने पराए सब यही छूट जाना है।
मुख्तसर सी ज़िंदगी है कुछ औसाफ़ तो कमां,
बाद चन्द लम्हो के तुझे ख़ुद से रूठ जाना है।
अपनी मरम्मत कब तक करेगा शमशाद,
आज नही तो कल फिर से टूट जाना है।









............

©Shamshad Ahmed #OneSeason
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Shamshad Ahmed

बदन का सारा हिस्सा उस हिस्से से जलता है।
जिस हिस्से में मेरा महबूब सर रख के सोता है।

©shamshad ahmed

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Shamshad Ahmed

हँसी का बाग़, खुशी की खेती है,

क़ाशीदगी कैसी भी हो, सुकून बेटी है।

©shamshad ahmed

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