ये सुना है कि मेरे कूच के बा'द
उस की ख़ुश्बू कहीं बसी ही नहीं
थी जो इक फ़ाख़्ता उदास उदास
सुब्ह वो शाख़ से उड़ी ही नहीं
मुझ में अब मेरा जी नहीं लगता
और सितम ये कि मेरा जी ही नहीं #Poetry
ये सुना है कि मेरे कूच के बा'द
उस की ख़ुश्बू कहीं बसी ही नहीं
थी जो इक फ़ाख़्ता उदास उदास
सुब्ह वो शाख़ से उड़ी ही नहीं
मुझ में अब मेरा जी नहीं लगता
और सितम ये कि मेरा जी ही नहीं #Poetry