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vinaystiwari4388
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Vinay S Tiwari

मैं किसी अत्यन्त प्राचीन ग्रन्थ का नव,संशोधित,संवर्धित,सटिप्पण संस्करण हूँ, जिसका मूल लेखक अज्ञात है। twitter & Instagram - @vinaytofficial

www.vinaystiwari.blogspot.com

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Vinay S Tiwari

जी लेता हूँ एक रात में ही, ज़िंदगी कई ;
यूँ रात भर चलता है, किताबों का सिलसिला । यूँ रात भर..

यूँ रात भर.. #शायरी

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Vinay S Tiwari

चाय की एक-एक घूँट के साथ,बारिश की 
महसूसगी में जहाँ किताबों से उतरती हो तुम,
और जहाँ मिलता हूँ मैं तुमको ! यकीन करो
वहीं मिलते हैं 'समंदर और आकाश' । ...और जहाँ मिलता हूँ मैं तुमको !

...और जहाँ मिलता हूँ मैं तुमको ! #कविता

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Vinay S Tiwari

शेखर कोई बड़ा आदमी नहीं है, वह अच्छा आदमी भी नहीं है । लेकिन वह मानवता के संचित अनुभव के प्रकाश में ईमानदारी से अपने को पहचानने की कोशिश कर रहा है । यह अच्छा संगी नहीं भी हो सकता है, लेकिन उसके अंत तक उसके साथ चलकर आपके उसके प्रति भाव कठोर नहीं होंगे, ऐसा मुझे विश्वास है । और, कौन जाने आज के युग में जब हम, आप सभी संश्लिष्ट चरित्र हैं, तब आप पाएँ कि आपके भीतर भी कहीं पर एक शेखर है जो बड़ा नहीं, अच्छा भी नहीं, लेकिन जागरूक, स्वतंत्र और ईमानदार है, घोर ईमानदार ।
                                                          -- अज्ञेय शेखर- एक व्यक्तित्व है, जो कहीं न कहीं हम सबके भीतर मौजूद है ।

शेखर- एक व्यक्तित्व है, जो कहीं न कहीं हम सबके भीतर मौजूद है । #विचार

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Vinay S Tiwari

मैंने एकबारगी तुम्हारे बगैर भी चाय पिया था उस रेस्तरां में ।
तुम्हारे लिए ही , ये जानने कि, जब तुम्हें लाऊँगा तो इसकी चाय तुम्हें पसंद आएगी न !!
किसी ने कहा था, कि तुम चाय सबसे लज़ीज़ बनाती हो । तुम्हें बड़ा शौक है चाय पीने का ।
और ये भी कि तुम अपनी बनाई चाय सिर्फ उन्हें पिलाती हो जिनसे मोहब्बत होती है तुम्हें ।
इसी फेहरिस्त में शामिल होने के लिए मैं सोचता था कि मैं तुम्हें चाय पे इनवाइट करूँ और 
जब तुम रेस्तरां की चाय पियो तो कह दो, कि मैं चाय पिलाऊँगी तुम्हें अपने हांथों से बना कर
तब कहना चाय कैसी होती है ?
और इस तरह शायद मैं उस फेहरिस्त में शामिल हो जाऊँ जिनसे तुम्हें प्यार है ।
फिर मैंने कॉफी भी पी लिया था इस अंदेशा से कि कहीं तुम चाय के एवज में कॉफी पीना चाहो तो !!
मैंने कॉफी भी पिया ।
फिर कॉफी नहीं पसंद आई तो मैं गया इंडियन कॉफी हाउस की शायद ,
तुम्हारे इच्छित स्वाद के तकरीबन तो रहे इन कॉफियों का स्वाद ।

फिर मैं हो आया था थिएटर ! और घूम कर सारी सीटें परख ली थी कि कौन सी सीट तुम्हें
सबसे ज्यादा आरामदेह लगेगी ।
लेकिन इत्तेफ़ाक़ तो देखो तुम मिली भी मुझे तो बस में । वो भी ऐसी बस में जो सिर्फ अपने
 मुक़ाम में पहुँच कर रुकती है ।
और जब उतरा तो कोई और ही शहर था वो ! मुझे नहीं पता था चाय यहाँ कहाँ अच्छी मिलती है ?
तुम्हें चाय न पिला पाने के अफ़सोस में मैं तुमसे पूँछ भी नहीं पाया कि ये तुम्हारा शहर तो नहीं ? 
फिर जब मैंने कहा, कि आओ चाय पीते हैं तो तुमने ही तो कहा था न ! कि यहाँ नहीं चलो घर चलते हैं,
मैं अच्छी चाय बनाती हूँ , शायद तुम्हें मेरी चाय पसंद आए !!
और मैं ईश्वर द्वारा अपनी इस तरह की पूर्वनियोजित मिलन देख कर हतप्रभ रह गया ।
मुझे यकीन हो गया था कि वाकई ईश्वर हमारे लिए हमसे बेहतरीन तलाश करता है फिर चाहे वो रास्ते हों 
या मंज़िल । एक बारगी तुम्हारे बगैर भी चाय पिया था उस रेस्तरां में ।

एक बारगी तुम्हारे बगैर भी चाय पिया था उस रेस्तरां में । #कहानी

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Vinay S Tiwari

चाँदनी रात हो, एक नदी पास हो ,
और तुम साथ में हो तो क्या बात हो !
आसमाँ चाँदनी, वो नदी चाँदनी,
और तुम चाँदनी हो तो क्या बात हो !

चाँदनी का गमन, बालों से लौट कर,
देह से ज्यों लगे चाँदनी लौट कर,
तुम लगो चंद्रमा सी तो क्या बात हो !
बालियों से प्रकीर्णित हुई चाँदनी,
तुम्हारी शोखी तुम्हारा हर एक कृत्य भी,
शशि-कला जो दिखाए तो क्या बात हो !
चाँदनी रात हो, एक नदी पास हो ,
और तुम साथ में हो तो क्या बात हो !

पूर्णिमा की अनघ चाँदनी सा बदन,
ज्यों किताबों में बनता है शब्दों से तन,
तुम्हारी पायल का रुन-झुन सा स्वर सुरमयी,
शोर हो बारिशों का यथा मधुमयी,
चाँदनी रात में गाँव से दौड़ कर,
फिर नदी पर तुम आओ तो क्या बात हो !
चाँदनी रात हो, एक नदी पास हो ,
और तुम साथ में हो तो क्या बात हो ! #और_तुम_साथ_में_हो_तो_क्या_बात_हो
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Vinay S Tiwari

काश ! फिर मुलाक़ात हो तुमसे,
मैं फिर जानना चाहता हूँ तुम्हें ।
वक्त के बाजार में मैं फिर खरीद सकूँ तुमको ।
मैं जानना चाहता हूँ, तुम्हारा टैडी-बियर अब भी आँगन में सोता है ?
क्या अब भी तुम्हें तुम्हारे प्रेमी की दाढ़ी से प्यार होता है ?
तुम अब भी घूमती हो गाँव की गलियों में ?
मेंहदी लगाती हो ? क्या अब भी कहकहों से प्यार होता है ?
काश ! फिर मुलाकात हो तुमसे,
मैं फिर जानना चाहता हूँ तुम्हें ।
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Vinay S Tiwari

#OpenPoetry यकीन करो, मैं जब भी कोई किताब पढ़ता हूँ । कोई किताब  जिसे पढ़ते-पढ़ते ''वायु-अक्षरों'' में उकेरा किन्हीं दुष्यंत-शकुंतला के प्रेम का एक-एक चित्र खिंचता चला जाता है ।
'' वायु-अक्षर '' इसलिए क्योंकि मात्र महसूस किया जा सकता है उस भाव को जिसके प्रतीक बनाए गए हैं ये शब्द ।

जैसे-जैसे शब्द घुलते जाते हैं, मैं महसूस करता हूँ खुद को और तुम्हें वहाँ, जहाँ मिलते हैं समंदर और आकाश ।
तुम्हारी गिरती लटों को पहुँचाता हूँ उनके गंतव्य तक , और तब तुम्हारी उठती आँखें जो चाहत का पश्मीना बुनती हैं मेरे लिए , यकीन करो ! वो लिबास सुन्दरतम लिबास है मेरी ख़ातिर ।
और वो लिबास मुझे दुनियाँ के श्रेष्ठतम व्यक्तियों में से एक बना देता है ।
क्योंकि तब मैं तुम्हारा, 'केवल एक और एक-मात्र' बन जाता हूँ । यक़ीन करो,तुम्हारी ये बात मुझे और भी शानदार बना देती है । #OpenPoetry
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Vinay S Tiwari

 चाँदनी रात हो, एक नदी पास हो । chandani raat ho, ek nadi paas ho.

चाँदनी रात हो, एक नदी पास हो । chandani raat ho, ek nadi paas ho. #कविता #nojotophoto


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