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ramshankar0435
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Ram Shankar

Manager in Bank of India and a poet : writer

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Ram Shankar

White न इस तरफ़ आता रहा न उस तरफ़ जाता रहा 
चक्रव्यूह कुछ एसा कि गोल-गोल घूम जाता रहा 

नदी के दो छोर हैं सिस्टम और सियासत यहां 
क्षेत्रवाद दोनों तरफ़ अपनी लहरें उठाता रहा 

कश्ती का मुसाफिर हूँ परदेश के समंदर में कहीं 
हवा की मर्जी जिधर  उधर ही घूम जाता रहा 

सैलाबों का सहारा क्या तूफानों में किनारा क्या 
शाम ढलते ही कोई सूरज मेरा छुपाता रहा 

साहिल पे बैठा था जो उस्ताद मेरा हमदर्द बनकर
आज हाथ मोड़कर  वो खूब मुस्कुराता रहा।

रामशंकर सिंह उर्फ बंजारा कवि  🖊️..... #sad_shayari
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Ram Shankar

White *पेपर लीक और भ्रष्ट्राचार*  🖊️....

जिसकी आदत है...झूठी कसम खाएगा ही...
लाख बोलो....वो दूध में पानी मिलाएगा ही

लाख सील कर लो पेपर लोहे के लिफाफे में यहां 
ये लीक होता था... लीक हो जाएगा ही 

मुस्तैद है अब चोर कोई नेता कोई अफसर बनकर 
हुनर खानदानी है जिनका रंग  दिखलाएगा ही 

फक्त पेट की आग नहीं... जिसमें लोग जलते हैं 
शौक दुनिया का है अजब ये गुल खिलाएगा ही

ईमानदारी एक शौक है दुनिया की बड़ी ही मंहगी 
जो कर लो भ्रष्ट्राचारी यहां घूस खाएगा ही

आँख मूँद कर ऐतबारी का जमाना नहीं राम 
जो करेगा अब..... पीठ पर खंजर पायेगा ही 

✍️ राणा राम शंकर सिंह  उर्फ बंजारा कवि #bike_wale
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Ram Shankar

#paperleak #Student #Corruption #Poetry #Hindi #urdu #hindi_poetry #कविता 

#Emotional

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Ram Shankar

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Ram Shankar

White *पेपर लीक*  🖊️.....

हद से ज्यादा जब भी  सताता है कोई आदमी 
तब जाकर  आवाज़ उठाता है कोई आदमी 

बार -बार पेपर लीक बार -बार ये भ्रष्ट्राचार 
कभी सोचा है कितना रुलाता है कोई आदमी 

कोई बगावत कहे या सरफिरा बदमाशी  इसे 
कहां शौक से आंख दिखाता है कोई आदमी 

किस पे भरोसा हो किस पर एतबार किया जाए 
हर जगह ईमान बेचकर कमाता है कोई आदमी 

थक गई जिंदगी जिसके सारे दाव आजमा के 
खुदखुशी को कदम फिर  बढ़ाता है कोई आदमी 

आग की जलन का खौफ कब तक रखें कोई 
मजबूर होकर मशाल जलाता है कोई आदमी 

गांव - गांव... शहर- शहर गोलबंद होकर 
गीत इन्कलाब के गुनगुनाता है कोई आदमी 

कोई मन के कोने में राम कोई मुंह के सामने 
जितनी कुव्वत उतना चिल्लाता है कोई आदमी

इंसाफ़ की तराजू में सदियों से ताकत है भारी 
इसलिए भेड़ बकरियों को मार खाता है आदमी

राणा रामशंकर सिंह बंजारा कवि  🖊️ #alone_quotes
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Ram Shankar

White कोई सर पे कोई सीने पे सवार रहता है 
झूठ की हस्ती में कौन वफादार रहता है 

पेट की आग में कहीं जलता है आदमी 
बदन की आग में कोई  बेकरार रहता है

वक्त के तकाजे का जो गुलाम है आदमी 
हर मुआमलात वो ही कुसुरवार रहता है 

इंसान ने मानव इतिहास से  सीखा है 
बेकुसूर आदमी  क्यूं गुनहगार रहता है

खुद्दारियों की अकड़न में रहने वाला यहां 
शायद ही  कभी चमनजार रहता है

आईना लाख करे राम सच की इबादत 
इस शहर में मेरा चेहरा दागदार रहता है

*राणा रामशंकर सिंह उर्फ बंजारा कवि*  🖊️ #Night
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Ram Shankar

वक्त पर बारिश हो तो यहां खेत गुलजार रहता है 
नहीं तो कौन यहां किसी के लिए तैयार रहता है 

मौसम जब भी बेवक्त करवटें बदले यहां 
मेहनत लाख करे किसान बेकार रहता है 

सुखी मिट्टी को है सदियों से बादल की तलब 
जैसे प्यार में कोई आशिक बेकरार रहता है

चुनाव की  हर किताब में यहां मौसम सुहाना है 
सपनों में उलझा हुआ कहीं बेरोजगार रहता है 

चुनाव की फसल बस कटने पर देखिए 
वादों पे कौन  कितना यहां सरकार रहता है 

दिन का सूरज समझे या रात का तारा उसको 
एक सोच का फर्क है जो बनके दीवार रहता है 

ये वक्त का समंदर है  राम हर  हिसाब से गहरा 
कोई इस पार रहता है कोई उस पार रहता है

*राणा रामशंकर सिंह* उर्फ बंजारा कवि  🖊️.... #cloud
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Ram Shankar

White सत्य में  जंग जिंदगी असत्य में आराम जिंदगी 
कहीं ये ईनाम जिंदगी  कहीं ये गुमनाम जिंदगी

उसूलों की गाड़ी में रोज तेल कौन डाले 
फासलों से हारती यहां मुकाम जिंदगी 

बदल गई फिजाएं बदल गया  है जमाना 
जो न बदल सके उनकी नाकाम जिंदगी 

मैं एक किरदार हूं  भागती कहानियों में गोया 
मुंह फेरे हुए यहां कभी सुबह तो शाम जिंदगी 

यकीं सूरज पर करूं कि एतबार चांद का 
हर शमा जल रही जैसे इल्जाम जिंदगी 

जिंदगी को हमने बहुत करीब से देखा है 
जी हुजूरी में कितनी  यहां गुलफाम जिंदगी  

नया दौर है नया शहर है नया सबब है राम 
चलो देखें कहां ले जाएगी ये इतंकाम जिंदगी 

राणा रामशंकर सिंह उर्फ बंजारा कवि 🖊️ #safar
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Ram Shankar

युद्ध से  महफूज हूं पर तलवार  चमकाना अच्छा है
हर जुलुस हर मजलिस का ये फसाना अच्छा है

पोडियम पर भाषण दूँ सड़कों पर धरना करूं 
जोश जमाने को सियासी यहां दिखाना अच्छा है 

हार तय हो जिसकी जीत हो अनिश्चित 
फिर भी जंग में मनोबल बढ़ाना अच्छा है

हाथो में मशाल जला के रात दिन रखता हूं 
गीत क्रांति का यहां गुनगुनाना अच्छा है

एक उम्र के बाद सारे मुद्दे बदल जाते हैं
पर झूठ का परचम यहां लहराना अच्छा है 

विरोध है सरगम हमारी संस्कृति का हिस्सा 
यहां इंकलाब -इंकलाब चिल्लाना अच्छा है 

बंद कमरे की नीयत यहां जाने कौन राम 
अवाम को पर बहलाना फुसलाना अच्छा है

ईमानदार क्रांति कहूं या इसे मौन विश्वासघात
आजकल जंग में घुटने टेक आना अच्छा है

राणा रामशंकर सिंह उर्फ बंजारा कवि  🖊️ #Sands
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Ram Shankar

सच को सच झूठ को झूठ कहने लगा हुं मैं 
तबसे खराब और खराब रहने लगा हूं मैं

फर्ज की कीमत यहां राम चुकाते -चुकाते 
बाढ़ की सैलाब में कहीं बहने लगा हूं मैं 

कि पहले रहता था अपने घर से दूर कहीं बाहर 
अब उस बाहर से भी बाहर अकेले रहने लगा हुं मैं 

पर्वतों की साजिश कहूं या नसीबों का खेले इसे  
पत्थरों के फिसलन में  कहीं फिसलने लगा हूं मैं 

जमाना हंसता है मुझ पर और मैं जमाने पर 
परदेश की मिट्टी में धीरे-धीरे ढलने लगा हुं मैं

मैं दिल को समझाता हूं दिल मुझको समझाता है
इस शहर की चाल जैसी अब वैसा चलने लगा हूं मैं 

🖊️..रामशंकर सिंह.. उर्फ बंजारा कवि #MountainPeak
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