नादान थी नाज़ुक थी , उम्र से आठ बरस की थी
दर्द तकलीफ नहीं समझ पाती थी पर पापा की बेबाक हसी और उस दिन की हसी के बीच का फर्क समझ पा रही थी।
मुझे मालूम नहीं था कि ये सब आख़िर हो क्या रहा है पर बहुत डरी हुई थी मै कुछ समझ नहीं आ रहा था। लोगों का जमावड़ा लगा हुआ था मेरे घर। लोग आ रहे थे जा रहे थे और मै किसी कोने में खड़ी बस ...खड़ी होकर सब देख रही थी।
पिछले दो दिन से ही घर में सबकुछ अलग था। मैंने मां से पूछा ये सब क्या हो रहा है पर मम्मी ने एक झुठी हसी का चोंगा पहने सिर्फ इतना कहा - तुम चिंता मत करो म