हंसते हुए चेहरे से हम सारे गम छुपा लेते हैं,
दिल में क्या है हम कहाँ किसे दिखाते हैं,
हर शब में दर्द की चादर ओढ़ हम सो जाते हैं,
सुबह फिर वही मुस्कुराहटें लिए हम निकल जाते हैं।
इक तू है जिसे जिंदगी मानता हूँ,
इस भीड़ में कहाँ किसी को जानता हूँ!
बाहर हुकूमत ने लगा रखी है पाबन्दियां,
तेरी ज़िद में कहाँ कोई कानून मानता हूँ!
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