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pranavsinghbaghe8267
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Pranav Singh Baghel

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Pranav Singh Baghel

आज भी मैं पाता हूँ ख़ुद को उसी तालाब के किनारे, मंदिर की ओर एकटक ताकता हुआ। किसी इंतज़ार में शायद। मानो मंदिर की दीवार के पीछे से खिलखिलाती हुई बाहर आ जाओगी तुम। और फिर मैं भागकर तुमसे लिपट जाऊँगा, ठीक वैसे ही जैसे भीड़ में गुम कोई बच्चा अपनी माँ को देखकर लिपट जाता होगा। और फिर तुम मुझसे कहोगी, "तुम भी ना मुझे कभी नहीं ढूंढ पाते हो। "

वाकई में नहीं ढूंढ पाता हूँ.....

©Pranav Singh Baghel #poetry #lost #love #story #Stories  #pond #Love #lover

#Moon
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Pranav Singh Baghel

तुम्हारी चुनरी में बड़े करीने से पिरोया गया वो मोती। उसमे इक अजीब सी चमक है। चमक, वो जो चाँद में होती है, सितारों में होती है। चमक, वो जो तुम्हारी आँखों में होती है। या वो, जो मेरी आँखों में होती है, जब मैं तुम्हारी आँखों में देखता हूँ....

©Pranav Singh Baghel #SunSet
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Pranav Singh Baghel

मैं आगे निकल आया हूँ। मेरा "मैं" पीछे छूट गया है। वो छूटा नहीं है, मैं ही उसे छोड़ आया हूँ। वो छूटना चाहता भी नहीं है, नतीजन हर बार वो मुझे पीछे खींचता है, मैं भी पीछे जाता हूँ और हर बार उसे पीछे ही छोड़ आता हूँ।
ऐसा नहीं है कि मुझे उससे लगाव नहीं है, पर ऐसा मैं इसलिए करता हूँ क्योंकि भविष्य का मैं मुझे मेरे "मैं" को भविष्य में ले जाने की इजाज़त नहीं देता।।


-PRANAV #Moon
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Pranav Singh Baghel

अंधेरी रात, फ़िर अंधेरी रात, फ़िर अंधेरी रात।।
मुझे इन्तज़ार है उन चार दिनों का, जब चाँदनी आएगी। मेरे दरीचे से अंदर आकर बिना मेरी इजाज़त मेरे गालों को सहलाएगी और मेरे सारे ज़ख़्म भर जाएँगे।
 लेकिन अगर उसने मेरे दिल में जगह बना ली तो, और मुझे उसकी आदत पड़ गयी तो। फिर कैसे कटेंगी वो सारी स्याह रातें, जो उन चार दिनों के बाद आएँगी। ये एक कायर की सोच है, जो बन्द कर के बैठा है अपनी खिड़कियाँ। ऐसे बुज़दिल के पास चाँदनी आएगी भी क्यों।।


- PRANAV #alone
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Pranav Singh Baghel

उसे लगता है, वो मुझसे दूर चली गयी है, बहुत दूर। पर उसे ये नहीं मालूम कि ये दूरी तभी तक है, जब तक मैं अपने दायरे में हूँ। अगर किसी दिन मैं ये दायरे भूल गया या अपनी सनक में इन दायरों को लांघने पे आमादा हो गया तो ये फासला मेरी पहुँच से बहुत छोटा हो जाएगा। अगर मैं ये नहीं करता हूँ तो ये मेरी मर्ज़ी है मज़बूरी नहीं।।


-PRANAV #emptiness
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Pranav Singh Baghel

ज़ख़्मों में हँसना पड़ता है शाइरी के लिए
गिर गिरकर उठना पड़ता है शाइरी के लिए

ज़िंदादिली से हो जाती, तो सब करते,
जीते जी मरना पड़ता है शाइरी के लिए

तुम्हारे राज़, तुम राज़ रख सकते हो,
हमको सब कहना पड़ता है शाइरी के लिए

नदी किनारे बैठने भर से कुछ नहीं होगा,
दरिया संग बहना पड़ता है शाइरी के लिए

मेरे किस्से ग़र तुम तक पहुँचें, रोना मत
दर्द तो देखो सहना पड़ता है शाइरी के लिए

सुन लें, वो जो पूछ रहे थे कैसे होती है,
दिल काग़ज़ पर रखना पड़ता है शाइरी के लिए

-Pranav #footsteps
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Pranav Singh Baghel

कल रात, बड़ी हिम्मत जुटा के, काँपती हुई उँगलियों से उसका नम्बर डायल किया। कोई जवाब नहीं मिला। जवाब मिल गया था, यह किताब का आख़िरी पन्ना था, हमारी कहानी खत्म हो चुकी थी।

-PRANAV कल रात, बड़ी हिम्मत जुटा के, काँपती हुई उँगलियों से उसका नम्बर डायल किया। कोई जवाब नहीं मिला। जवाब मिल गया था, यह किताब का आख़िरी पन्ना था, हमारी कहानी खत्म हो चुकी थी।वह कहानी जिसमें दो अंजान लोग जिनकी ख्वाहिशें, जिनके मुकाम, जिनके अनुभव, जिनका सफ़र बिल्कुल अलग था, एक चौराहे पे मिले और सबकुछ ठहर सा गया। ज़िन्दगी मन्द हो गई, हवाएँ रुक सी गईं। पर वो कहते हैं ना, प्रकृति को ठहराव पसन्द नहीं है और बिना प्रकॄति की मर्ज़ी के एक कण भी हिल नहीं सकता। अतः इस कहानी के अधूरेपन में ही इसकी सम्पूर्णता है।

इस कह

कल रात, बड़ी हिम्मत जुटा के, काँपती हुई उँगलियों से उसका नम्बर डायल किया। कोई जवाब नहीं मिला। जवाब मिल गया था, यह किताब का आख़िरी पन्ना था, हमारी कहानी खत्म हो चुकी थी।वह कहानी जिसमें दो अंजान लोग जिनकी ख्वाहिशें, जिनके मुकाम, जिनके अनुभव, जिनका सफ़र बिल्कुल अलग था, एक चौराहे पे मिले और सबकुछ ठहर सा गया। ज़िन्दगी मन्द हो गई, हवाएँ रुक सी गईं। पर वो कहते हैं ना, प्रकृति को ठहराव पसन्द नहीं है और बिना प्रकॄति की मर्ज़ी के एक कण भी हिल नहीं सकता। अतः इस कहानी के अधूरेपन में ही इसकी सम्पूर्णता है। इस कह

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Pranav Singh Baghel

सुनो, तुम अकेले नहीं हो। तुम अलग नहीं हो। सभी को दिक्कत हो रही है, ज्यादा या कम। वक़्त है गुज़र जाएगा। तुम हौसला मत छोड़ना, तुम हार मत मानना।।


-Pranav

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Pranav Singh Baghel

सुनो, एक मशवरा है। अगली बार से जिसके भी साथ होना, उस रिश्ते को मोहब्बत का नाम मत देना, ताकी जब तुम छोड़ के चली जाओ तो कम से कम मोहब्बत बदनाम ना हो .....

-Pranav
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Pranav Singh Baghel

लौट के आना अच्छा होता है।
भूल मानना अच्छा होता है।

बाहर रह के समझ में आया,
घर का खाना अच्छा होता है।

मंज़िल वंज़िल ठीक है लेकिन,
घर भी जाना अच्छा होता है।

मर मर के ज़िंदा रहने से,
मर जाना अच्छा होता है।।


#PSB #Moment
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