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Usha Dravid Bhatt

Social worker & writer

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Usha Dravid Bhatt

White आसमान का चांद

आसमान पर चांद खिला है, साथ  लिए लाखों तारे, 
तेरे दीदार को तरस रहा चकोर,धरती पर बैठ तुझे नहारे।
दिन बीत रहा कड़क तपन संग , तरु छाया कहीं दिखे नहीं ,
हों हाड़  कांपती  ठंडी रातें , टेर एक घड़ी को हटे नहीं ।
सदियों  की  लंबी दास्तां, किस्मत का खेल इसे कहते ,
 कर्मों के फल से भाग्य मिला , अब क्यों तेरे आंसू बहते ।
तीव्र रोशनी तेरे अरमानों की , नित्य जलाती है होली ,
अंधियारे की शीतलता में , भ्रम से भरती सपनों की झोली ।
सौरभ आशाओं का दीप जलाकर, उम्मीद मत हारो समझाता,
कुवास है अभिशाप सृष्टि में, जीवन में निर्जन वन सा गहराता ।
है एक बगीचा एक ही माली, रंग बिरंगे फूलों से महके फुलवारी ,
कांटो ने भी संग में डेरा डाला , आंसुओं से भर गई मधु प्याली ।
प्रातः की  बहकी  बेला में, जैसे स्वप्न दूर खड़े  हर्षाते  हैं ,
किससे  पूछूं कि भोर होते ही , नक्षत्रमणी कहां छुप जाते हैं ।
बढ़ चला मुसाफिर यही सोचते, मधुर वचन बड़ा छलावा है ,
सत्य हमेशा कड़वा होता , उसे हर कोई मुखौटा पहन छुपाता है ।

©Usha Dravid Bhatt
   आसमान का चांद 
एक सच्ची और निस्वार्थ लगन , जो बिना लाभ हानि के निरन्तर बनी रहती है।

आसमान का चांद एक सच्ची और निस्वार्थ लगन , जो बिना लाभ हानि के निरन्तर बनी रहती है। #कविता

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Usha Dravid Bhatt

Year end 2023 जाते हुए वर्ष 2023  तुम्हें कहते हैं अब हम अलविदा,
दुखी मत होना तुम  , क्योंकि !
आने वाले पर ही सब  होते हैं  फिदा।
दुनियां का दस्तूर है प्यारे 
ये संसार तो आना जाना है ,
जो आता एक बार इस जग में 
एक दिन  उसे  होना ही पड़ता है जुदा ।
गोल - गोल घूमें यह धरती 
टिका है जिस पर सारा जहां ,
जब पड़ने लगती कड़ाके की सर्दी,
गर्मी हो जाती है विदा ‌।
365 दिन रहे साथ तुम्हारे 
संघर्ष और चुनौतीपूर्ण साथ रहा,
प्राकृतिक आपदा,  बेरोजगारी, 
मंहगाई का उतार चढ़ाव रहा ।
नव वर्ष 2024 का आगमन है, नव उमंग नव उत्साह है,
मंगलमय हो नववर्ष हमारा, हर ओर छाया उल्लास है।
नव चेतना ,नव उमंग
गली गली है धूम मची,
स्वागत में खड़े हुए हैं बारह महीने
ढोल , मृदंग , नृत्य की महफिलें सजी।
नववर्ष खुशियां लेकर आएगा, राह निहारे सब खड़े हुए,
हंसी खुशी नाचें गाएं  सब गली चौबारे भरे पड़े ।
हांफते हुए मत आना 2024
अब समय पुराना नहीं रहा,
स्वागत में  नर -नारि , युवा, बच्चे,
बीते सालों जैसा जमाना बदल गया ।

©Usha Dravid Bhatt
  जाते हुए को विदाई और आने वाले का स्वागत।

जाते हुए को विदाई और आने वाले का स्वागत। #कविता

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Usha Dravid Bhatt

कहीं  दूर   तक
दूर बहुत दूर, दृष्टि से परे मन भ्रमण करता है,
सोचने की गति नजरों से तेज है,
देखता हूं धरती से जा रहा चन्द्रयान ,
नियन्त्रित गति से , निर्धारित गंतव्य की ओर।
सब खुश हैं, मन में कौतूहल जगा है।
मन सोचने लगा काश मैं भी अन्तरिक्ष के
उस पार जा सकता,
जो ओझल हो गया उसे देख आता,
उदास मन दूर गगन में विचरण करता है,
सपना  सपना ही रहेगा
कल्पना,सोच , तर्क की सफलता  मजबूत पांखों पर
निर्भर करती है ,
गति की सीमा नापते सोचता रह जाता हूं।।

©Usha Dravid Bhatt
  दूर कहीं बहुत दूर

दूर कहीं बहुत दूर #कविता

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Usha Dravid Bhatt

परिदृश्य

ऊंचे ऊंचे वृक्षों को देख उठते हैं प्रश्न मन में
क्या मानव की इच्छाएं इनसे भी ऊंची हैं।
शायद हां !
हरे भरे वनों की जगह सर्वत्र कंक्रीट के जंगल उग आए,
हवा दूषित हो गई,
कभी स्वच्छंद घूमने वाले गगनचुंबी इमारतों में कैद होगए।
स्वप्न खेत, खलिहान,आंगन चौबारों, मकानों से
गुजरते हुए फ्लैटों में सिमट कर रह गए।
स्वच्छ हवा ,पानी का अधिकार खुद खोते गए।
नहीं बालपन खेलता गलियों में
ना जवानी उमंग उत्साह से उड़ रही,
बुढा़पा घुटन और मायूसी का दोष आंखों को दे रहा,
इमारतों के सघन वन को दृष्टि बाध्यता कह रहा।
ये सब मानव की ऊंची उड़ान का परिणाम है।
कौन जिम्मेदार है बिकते खेत खलिहान का,
पश्चिमी सभ्यता से बेजार महत्वाकांक्षा ने
माफियाओं का दास बना दिया।
गुलाम बने फिर रहे हैं माफियाओं के दिखाए 
सब्जबागों में,
छले जा रहे हैं निरुद्देश्य अर्थ की कामनाओं में ।
भूले अपनी संस्कृति दिशाहीन हो गये,
प्राकृतिक सुख साधन लुप्तप्राय हो गये,
ठगे रह गए  हैं ,
तरसते स्वप्न पुकारते हैं,
ए खूबसूरत खोये ख्वाब लौट आ इस धरा पर !
प्रकृति आज भी वही है,
इन्तजार है  छोड़कर जाने वालों का,
मानव विहीन धरती बंजर ही कहलाती है ।

©Usha Dravid Bhatt
  परिदृश्य 
पलायन ,मानव मूल्यों की अवहेलना, अपनी संस्कृति की विमुखता से उपजते परिणाम।

परिदृश्य पलायन ,मानव मूल्यों की अवहेलना, अपनी संस्कृति की विमुखता से उपजते परिणाम। #कविता

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Usha Dravid Bhatt

       क़दमों की आहट सुनते ही मैं पीछे मुड़ा,
          कुछ उम्मीद कुछ भय लिए।
     अंधेरी रात थी  खम्भे पर लगे बिजली के
         बल्ब की रोशनी में देखने लगा,
        आवाजें पुष्टि कर रही थी दो से अधिक होने की ।
             ठहरूं या बढ़ चलू,   नहीं निर्णय कर सका।
          वे बातें करते हुए बढ़ रहे थे,
     जिज्ञासा मेरे मन में तूफान पैदा कर गई ।
      इतनी रात यूं पैदल चलने का मकसद क्या होगा,
     मैं तो परिस्थिति का मारा,
   निकल पड़ा हूं   तन्हा सुनसान डगर पर।
    ये तो तीन प्राणी हैं , मेरी तरह नहीं हो सकते,
    मैं छिप गया पेड़ की ओट में,
 कई दिनों से यूं ही राही बना हुआ हूं अंधेरी रातों का,
   थक गया हूं जीवन से सबसे नाकामी छुपा रहा हूं ,
        नजदीक आने पर देखा 
  एक पुरुष दो महिलाएं , सर पर बड़ा बोझ लिए कल की योजना बनाते  चल  रहे हैं
 मैं ओट से निकल कर सड़क पर आ गया  ,  मुझे देख कर वह भी ठिठक गए
       नया आदमी है या प्रचलित कथाओं का नया अवतार,
   मैं  उन्हें दुविधा में देख बोल पड़ा मैं भी तुम्हारी तरह का ही इंसान हूं
     कुछ  खास की खोज में अंधेरों में घूमता हूं।
 उनके निर्विकार चेहरों पर थकान का नाम नहीं था । जीवन के प्रति उत्साह  देखकर
    उनके आग्रह पर  उनके साथ गांव की ओर चल पड़ा।
     एक नई सुबह  के साथ नव उमंग लिए
         नव ‌जीवन की प्रकाशमय तलाश में ।।

©Usha Dravid Bhatt
  कदमों की आहट सुन पीछे मुड़कर देखा, जिससे जीवन के कष्टों के प्रति धारणा बदल गई।

कदमों की आहट सुन पीछे मुड़कर देखा, जिससे जीवन के कष्टों के प्रति धारणा बदल गई। #कविता

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Usha Dravid Bhatt

    प्यार का अहसास
प्यार न रश्म है न रिवाज है,
यह एक अनछुआ अहसास है ।
बहुत ही सुन्दर खूबसूरत महक है
पलकों में बसे सुनहरे स्वप्नों की कसक है।
सच्चा प्यार है तो बदला नहीं जाता,
चाह कर भी उस प्यार को भुलाया नहीं जाता ।
प्यार की चमक सदा आंखों में खिलती रहती है,
जिन आंखों में सच्चे प्यार की खुशबू बसी रहती है।
थाम लो हाथ मेरा,कभी दूर जाना नहीं तुम,
हर सुख - दुख में मेरा साथ निभाते रहना तुम।
बनकर एक दूजे का साया साथ निभायेंगे हम,
राहों के अंधेरों में भी साथ चलकर उजाला बनेंगे हम।।

©Usha Dravid Bhatt
  प्यार एक खुबसूरत अहसास है।
कितनी कठिन है यह चाहत ज़िन्दगी की,
बर्बाद हो जाते हैं कई लोग ज़िन्दगी भर के लिए।

प्यार एक खुबसूरत अहसास है। कितनी कठिन है यह चाहत ज़िन्दगी की, बर्बाद हो जाते हैं कई लोग ज़िन्दगी भर के लिए। #कविता

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Usha Dravid Bhatt

हमारा तुम्हारा रिश्ता
इस पार मैं उस पार तुम'
मिलने की चाह की उम्मीद लिए
वर्षों बीत गए
मिलने की कहीं कोई राह नहीं मिली ,
बीच  भावनाओं  की है बहती नदी
जिस पर हवाओं का एक बहुत पुराना पुल है
जो अपने ही भार से डगमगाने लगता है
क्या नाम दूं उसे
हवाई  पुल
या
भावनाओं का जर्जर अस्थि पंजर ,
जिस पर चलना मुमकिन नहीं 
चौड़ी दरिया है पाटी भी नहीं जा सकती
उस कांपते पुल से पार भी नहीं हो सकते,
ठीक उसी लटकते  लड़खड़ाते 
चरमराते पुल की तरह
बेबस है हमारा तुम्हारा रिश्ता
इस पार मैं
उस पार तुम'

©Usha Dravid Bhatt
  हमारा तुम्हारा रिश्ता

हमारा तुम्हारा रिश्ता #कविता

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Usha Dravid Bhatt

हमारा तुम्हारा रिश्ता
इस पार मैं उस पार तुम'
मिलने की चाह की उम्मीद लिए
वर्षों बीत गए
मिलने की कहीं कोई राह नहीं मिली ,
बीच  भावनाओं  की है बहती नदी
जिस पर हवाओं का एक बहुत पुराना पुल है
जो अपने ही भार से डगमगाने लगता है
क्या नाम दूं उसे
हवाई  पुल
या
भावनाओं का जर्जर अस्थि पंजर ,
जिस पर चलना मुमकिन नहीं 
चौड़ी दरिया है पाटी भी नहीं जा सकती
उस कांपते पुल से पार भी नहीं हो सकते,
ठीक उसी लटकते  लड़खड़ाते 
चरमराते पुल की तरह
बेबस है हमारा तुम्हारा रिश्ता
इस पार मैं
उस पार तुम'

©Usha Dravid Bhatt न मिल पाने की मजबूरी और भावनाओं की कसमसाहट  शिद्दत से निभाया बेनाम रिश्ता ।

#realization

न मिल पाने की मजबूरी और भावनाओं की कसमसाहट शिद्दत से निभाया बेनाम रिश्ता । #realization #कविता

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Usha Dravid Bhatt

आस का दीपक जलाएं

आस का दीपक जलाएं
उसे  हाथों में तुम थाम लेना
यह तन बुझे या मुरझाये
आंखों से सदा हंसते रहना !
मन में  लक्ष्य बना तुम देना 
मृत्यु है अवसान जीवन का
यह सत्य हृदय में बैठा लेना ,
मत जाना ठिठक !  सिहर कर
क्लांत हृदय को समझा देना।
ढ़ीली होती स्नेह मंजरियां
प्रान्तर में सिमट जाती हैं
सूने नीले अम्बर में
चातक जैसी करुण कथा को
सजल पुलिनों से 
हंसते अधरों से
मरुभूमि रमण को
अन्त समय में विदा दे देना ।

©Usha Dravid Bhatt यह नश्वर शरीर एक यात्री ही है 

#Light

यह नश्वर शरीर एक यात्री ही है #Light #कविता

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Usha Dravid Bhatt

कहीं कसक, कहीं तड़प, कहीं तन्हा है ज़िन्दगी तो कहीं है इन्तजार

ये दर्द कितना  मीठा है  जिसे जमाना मुहब्बत कहता है  ।

©Usha Dravid Bhatt #alone
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