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arunkumar1157
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Arun Kumar

Bolti Khamoshiyaan....DIL SE..... DIL TAK.........

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Arun Kumar

रात भर इक चाँद का साया रहा
उसका इश्क़ मेरे दिल पे छाया रहा
हमे पता न चला कब चांदनी सुबह में बदल गयी
उसके ख़्वाबों का काफिला मेरी रात का सरमाया रहा।

©Arun Kumar
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Arun Kumar

रोते रोते मुस्कुराने का हुनर जानते है
दरिया को समंदर बनाने का हुनर जानते है
वक़्त बे वक़्त हर मुसीबत झेल जाते है
हम दुनिया को हर फन सिखाने का हुनर जानते है।

©Arun Kumar
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Arun Kumar

ज़न्नत कदम कुछ दूर नापे थे, थमा था हर कदम पर भी
अगर तुम रोक लेते तो, कभी मैं, यूँ नहीं जाता
बस एक आवाज़, दे देते, मुझे बढ़कर हल्की सी
मैं राहे मोड़ देता सब, मग़र तुझ तक पहुँच जाता।

सफ़र कटता जो तेरे संग वो जन्नत ही मुझे लगता
मोहब्बत टूट कर करता तुझे मैं दिल में बैठाता
बस एक आवाज़, दे देते, मुझे बढ़कर हल्की सी
मैं राहे मोड़ देता सब, मग़र तुझ तक पहुँच जाता
कदम कुछ दूर नापे थे, थमा था हर कदम पर भी
अगर तुम रोक लेते तो, कभी मैं, यूँ नहीं जाता।

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Arun Kumar

घर से निकल कर घर को लौट आता हूँ, हर रोज मैं  खुद को 
कहीं छोड़ आता हूँ
जद्दोजहद जिंदगी की
बहुत उलझी सी है
मैं जिंदगी को ही 
उलझन में छोड़ आता हूं

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Arun Kumar

बचपन और नानी का घर आज उस गली से गुजरना हुआ है मेरा
यादों की मिट्टी में दबे कुछ सूखे पत्तों से वो पल
हल्की सी हवा से सरसराने लगे
कुछ लम्हे गुजर गए मेरी आँखों में यूँ ही
कुछ लम्हे बहुत याद आने लगे ।
आज खरीद कर भी वो मिठास नहीँ मिलती
जो चोरी के कच्चे अमरूदों में थी
लाख़ चाह कर भी वो नींद प्यारी नहीँ मिलती
जो बचपन की बेफ़िक्री में थी
वो दोस्तों संग खेले खेल
बच्चों संग वो सच्चा मेल
छुपाते कम नंबर वाले पेपर का लफ़ड़ा
वो हर दांव पेंच, हर पास फ़ैल याद आने लगे
कुछ लम्हे गुजर गए मेरी आँखों में यूँ ही
कुछ लम्हे बहुत याद आने लगे 
आज उस गली से गुजरना हुआ है मेरा
यादों की मिट्टी में दबे कुछ सूखे पत्तों से वो पल
हल्की सी हवा से सरसराने लगे।
                                       "अरुण कुमार" बचपन के लम्हें

बचपन के लम्हें

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Arun Kumar

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Arun Kumar

जिसे देखो मुँह छिपाए बैठे है असली चेहरे पे मुखोटा चढ़ाए बैठे है ये भी वक़्त की कसौटी है, पर पार जाना है मुझे वो समन्दर में आग लगाए बैठे है ज़मीर सो चुका है अब फर्क नही पड़ता किसी बात से , जैसे आँख का पानी मर चुका हो पर फिर भी मेरी आँख से आंख मिलाये बैठे है, कटार सी लगती है उनकी ये हँसी मुझको

जिसे देखो मुँह छिपाए बैठे है असली चेहरे पे मुखोटा चढ़ाए बैठे है ये भी वक़्त की कसौटी है, पर पार जाना है मुझे वो समन्दर में आग लगाए बैठे है ज़मीर सो चुका है अब फर्क नही पड़ता किसी बात से , जैसे आँख का पानी मर चुका हो पर फिर भी मेरी आँख से आंख मिलाये बैठे है, कटार सी लगती है उनकी ये हँसी मुझको

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Arun Kumar

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Arun Kumar

रस्म-ऐ-शिरकत थी तो चले आये थे मजबूरी को तरफदारी का नाम ना दें। "अरुण कुमार"

रस्म-ऐ-शिरकत थी तो चले आये थे मजबूरी को तरफदारी का नाम ना दें। "अरुण कुमार"

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Arun Kumar

जाते जाते यूँ करना ज़नाब बस एक बार पलट के देखते चले जाना तुम्हे ख़ुद पर गुमाँ रहे तो हम भी खुशफ़हमी में रहे। "अरुण कुमार"

जाते जाते यूँ करना ज़नाब बस एक बार पलट के देखते चले जाना तुम्हे ख़ुद पर गुमाँ रहे तो हम भी खुशफ़हमी में रहे। "अरुण कुमार"

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