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pushpendrapandey2873
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pushpendra pandey "ankit"

आवारा लेखक

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pushpendra pandey "ankit"

पूर्णिमा रात्रि प्रहर में
चंद्र चादनी  बाटे है
सूर्य छवि लिए चाँद
निशा तम को काटे है
भोर प्रहर सा उद्भव
चमक बिखेरे निशा में
मनोहरी मुस्कान सा

मानो धरती से प्रेम हो
मधुर मुस्कान लिए
शर्मीला चाँद आया हो
अनुपम मिलन में
प्रेमी समान सकुचा रहे
यही पवित्र प्रेम है
जो धरती और चाँद में

सीतल मनोरम मधुर
प्रेम अमर है प्रकृति का
काश !हम भी बधे 
किसी पवित्र प्रेम में 
जो जीवन भर हो
पृथ्वी और चाँद की तरह .....

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pushpendra pandey "ankit"

नेह स्मृति के पन्नो पर
तेरी स्मृतियां लेकर क्यो घूमूँ
करुण भाव से मन लेकर
तेरी चाहत में मैं क्यों घूमूँ

मैं बावरा तेरी चाहत में
फिर रहा कही मारा मारा
तेरी चाहत की परछाई ने
मुझको तो है पल पल मारा
अब रही नही जो तू मेरी
तेरी बतियाँ लेकर क्यो घूमूँ
नेह स्मृति के पन्नो पर 
तेरी स्मृतियाँ लेकर क्यों घूमूँ

मैं वफ़ा किया तुझपर प्रियवर
तू निकली बेवफा भारी
मैं निकला प्रेम पथिक मन का
तेरे प्रेम में भरमा क्यों घूमूँ
नेह स्मृति के पन्नो पर
तेरी स्मृतियाँ लेकर क्यों घूमूँ

तेरी चाहत ने मेरी आँखों के
मोती बिखराये इधर उधर
मैं क्रन्दन करता फिरता था
तेरे प्यार को पाने क्यों घूमूँ
नेह स्मृति के पन्नो पर 
तेरी स्मृतियां लेकर क्यों घूमूँ ...

                          आपका अपना पुष्पेंद्र पांडेय 'अंकित'

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pushpendra pandey "ankit"

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pushpendra pandey "ankit"

हमारी अम्मा बहुत नीक रहीं उ जे हमका जन्मी उ तो नीक रही । लेकिन उ जेका हम अम्मा कहत रहे उनका बतावत हई । चूल्हा में जब चुनी के रोटी बनावत रही तो हमका जरूर दें । भगवान कसम खाई के जियरा गदगद होइ जात रहा । हम भैवन बहिनियन में छोट रहे । कुछु अम्मा धरे होय तो हमका जरूर दें । दूध चाय सबका पूछ पूछ दें उ होरहा भूजि जाय जब    हमारे मुहे में राखी न लाग पावे छोल के खियावे । घुघुरी तो हमरे बिन बचाई के रखें । हमहुँ गदेलन के साथी बहीपार जस घूमत रही न खाए के सुध न पीयें के  । पूरा गावँ गोली और गुल्ली डंडा ,सियरदण्डी और गुच्छी मामा से कच्छ खाई ग रहा गेहू कटा तो पन्न मा हुड़दंगी शुरू ।अपने महतारी के जाय के गम तो रहा लेकिन अम्मा के जाय के गम उहूस ज्यादा भय जे हम जइसन गदेलन के ख्याल रखत रहीं  । सब के महतारी हई लेकिन हमरे जस अभागा के जे बालपन में दुइ महतारी खोई दे ।.... .

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pushpendra pandey "ankit"

हमारी अम्मा बहुत नीक रहीं उ जे हमका जन्मी उ तो नीक रही । लेकिन उ जेका हम अम्मा कहत रहे उनका बतावत हई । चूल्हा में जब चुनी के रोटी बनावत रही तो हमका जरूर दें । भगवान कसम खाई के जियरा गदगद होइ जात रहा । हम भैवन बहिनियन में छोट रहे । कुछु अम्मा धरे होय तो हमका जरूर दें । दूध चाय सबका पूछ पूछ दें उ होरहा भूजि जाय जब    हमारे मुहे में राखी न लाग पावे छोल के खियावे । घुघुरी तो हमरे बिन बचाई के रखें । हमहुँ गदेलन के साथी बहीपार जस घूमत रही न खाए के सुध न पीयें के  । पूरा गावँ गोली और गुल्ली डंडा ,सियरदण्डी और गुच्छी मामा से कच्छ खाई ग रहा गेहू कटा तो पन्न मा हुड़दंगी शुरू ।अपने महतारी के जाय के गम तो रहा लेकिन अम्मा के जाय के गम उहूस ज्यादा भय जे हम जइसन गदेलन के ख्याल रखत रहीं  । सब के महतारी हई लेकिन हमरे जस अभागा के जे बालपन में दुइ महतारी खोई दे ।.... .

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pushpendra pandey "ankit"

हम तेरे दिल की गहराई में डूबे हुए फरिस्ते तो नही ।
जो तेरे दिल के दर्द को पहचान ले वो ईश्वर तो नही ।
तन्हाइ संग गुजारी जो जिंदगी कही वो हम तो नही ।
तेरी चाहत  थी पाने की जिसे कही वो हम तो नही ।
हम  जिस हाल में तेरे दिल मे वो कही गम तो नही ।
तू भी मल्लिका है मेरे अरमानो में कैद हक़ीक़त की ।
तेरे माथे की झिलमिल हूँ टीका दिल के नसीहत की ।
तेरे आंसू जो समंदर से है  डूब जाऊं ये कोशिस की ।
जन्म भर सो लू घुघराले बालो के तले ये ख्वाइस की ।.......
 
अधूरी रचना ....                  आपका अपना 'अंकित'

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pushpendra pandey "ankit"

चलो आशियाँ मे फिर चलते हैं 
मिट्टी के घरौंधो में फिर बसते हैं
जहाँ गोबर के लीपी धरती थी
जहाँ मिट्टी के बर्तन खिलौने थे

चलो उस आशियाँ में फिर चलते है 
जहाँ शादियों में सांझे का बिस्तर था 
बेटी की सादी में दुश्मन भी बाप था
बिटिया गावँ की, अपनी बिटिया थी

चलो उस आशियाँ में फिर चलते है 
जहाँ बिपात्ति में दुश्मन भी साथ था
जहाँ झगड़े में भी खाना साथ था
जहाँ बेटी को दहेज पूरा गांव देता 

चलो उस आशियाँ में फिर चलते है
जहाँ हीरा और मोती दो नंदी बैल थे
जहाँ गन्ने का रस हड़िया में दाल थी
जहाँ खेत मे चने और चौराई साग था

चलो उस आशियाँ में फिर चलते हैं
जहाँ पहरुए की धाक धमकती थी
जहाँ चाकी में दाल चटका करते थे
जहाँ जात से घर आटा निकलता था

चलो आशियाँ में फिर चलते हैं 
जहाँ दादी के हाथ का सत्तू था
जहाँ दादा का एक किस्सा था
जहाँ गिल्ली डंडा , कबड्डी थी

चलो आशियाँ में फिर चलते हैं
जहाँ भाई बहनो मे प्यार था
जहाँ औरतो में भी लाज था
जहाँ महिलाओं को आप था

चलो आशियाँ में फिर चलते हैं
जहाँ पग,तहमत ,कुर्ता धोती 
जहाँ मूछो पर ताव,जुबान था
जहाँ धन बाटने का ही नाम था

चलो आशियाँ में फिर चलते हैं 
जहां बाप का मलिकाना था 
जहां हर रिश्तो का पैमाना था
जहा भाईचारे में मिठास थी 

चलो आशियाँ में फिर चलते हैं
उस बने घरौदो में फिर  बसते हैं
जहां माँ के चूल्हे की रोटी थी 
जहां खेतो में बैल चला करते थे 
......... #आशियाँ।

आशियाँ।


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