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praveenpatidar4625
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Praveen Patidar

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Praveen Patidar

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Praveen Patidar

है विघ्नविनाशक है गणनायक इतनी कृपा बस कीजिए
संकट के मेघा को हर कर रिद्धि सिद्धि यश दीजिए।
कभी न बिछड़े भारत मेरा चहुदिशी मान प्रतिष्ठा हो
शत्रु नमन करे झुककर के ऐसा जयाशीष दीजिए।।
      
                  🙏🇮🇳🙏                   जय श्री गणेश
                                                 - प्रवीण मगर जय श्री गणेश

#ganesha

जय श्री गणेश #ganesha

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Praveen Patidar

 भोला दिल

भोला दिल #nojotophoto

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Praveen Patidar

 श्रीराम तुम जग के आधार हो
मर्यादा ओर त्याग के रूप साकार हो

श्रीराम तुम जग के आधार हो मर्यादा ओर त्याग के रूप साकार हो #nojotophoto

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Praveen Patidar

आक्रान्तित मन

धधक धधक जीवन चिंगारी 
नारी का जिस्म जलाती है।
उसकी कोमलता को इस जग ने
केवल कायरता मानी है।।
अरे वासना के लोलुपो 
इतिहास उठा कर पड़ लेना।
रानी रणचंडी ओर दुर्गा का
मन में चिंतन कर लेना।।
कानून के बंदों तुम्हे दुहाई 
फाँसी से इनके प्राण हरो।
जिसके ख़ातिर तूम चुने गए
ऐसा अब कुछ कर्म करो।।
अगर नही कर सकते ऐसा तो
दुष्टों को जनता के सम्मूख ले आओ।
हम कर देंगे सर्वोचित न्याय तुम 
दंड सहिताए सारि हटवादों।।
कैसे करनी है नारी की रक्षा
हम इससे अनभिज्ञ नही।
किसके साथ सलूक हो कैसा
इतने तो हम अज्ञ नही।।
बहुत हो चुका इन दुष्टो का
अब जीना हम नश्वर कर देंगे।
लाज बचाने बहनो की अपनी
हम रूप कृष्ण का धर लेंगे।।
जो है संस्कृति की परिचायक 
उनको हम ना ऐसे घुटने देंगे।
चाहे दुशासन हो कोई भी
उसको जीवित न बचने देंगे।।

                      # रेपिस्ट को फांसी की मांग आक्रान्तित मन

आक्रान्तित मन

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Praveen Patidar

अपनि दिनभर की थकान को इस संसार की चकाचोंध पर उड़ेलता हुआ ,
प्यारी सी सांध्य लालिमा के लोभ में मोहित कर अंत मे अंधियारी रात में छोड़कर  जाने वाला यह दिनकर भी कितना मतलबी है ना।
                -  शुभ सन्ध्या  मित्रो

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Praveen Patidar

मै चुप हु लेकिन मन बोलने को बेताब है
जैसे अनसुने रहस्यो की खुलने वाली कोई किताब है।
याद है मुझे की तू नही है हमसफ़र मेरा 
फिर क्यों तू ही मेरी अकेली रातो का ख्वाब है।
                    😊😊😊
                                     प्रवीण मगर ख्वाब

ख्वाब

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Praveen Patidar

चलो प्रभु अब मन्दिर में

शंखनाद की पावन ध्वनि को,हम सब स्वीकार करे।
न्याय मन्दिर से मिला न्याय , अब भूमि पर अधिकार करे।
नभ को छूता मन्दिर हो, प्रभु राम जहाँ विराजे हो।
ढोल नगाड़ों से हो गुंजित , चक्रायुध जहाँ साजे हो।
सरयू जल से हो अभिनन्दन , अवध रज भी संग प्रतिष्ठित हो।
दर्शन करके प्रभु राम के , विश्व समूचा आभामंडित हो।
मिलकर के उस दिव्य देव की , हम सब जय जयकार करे।
भगवा ध्वज को तिलक लगाकर , राममन्दिर का निर्माण करे।
                                      जय श्री राम
                                         प्रवीण मगर चलो प्रभु अब मन्दिर में

चलो प्रभु अब मन्दिर में

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Praveen Patidar

जय श्री राम(रामोल्लास)

मातृभूमि का कण कण बोले
जय श्री राम जय श्री राम
तरु पल्लव सब भगवाधारी 
जय श्री राम जय श्री राम
हर्षह्र्दय है सब नर नारी
जय श्री राम, जय श्री राम
सूर्य गगन सब आशावादी 
जय श्री राम ,जय श्री राम
इतिहासो को तोड़ दिया है
नव युग से नाता जोड़ लिया है
धरा ओर अम्बर भी बोले
जय श्री राम , जय श्री राम
तिरपालों से राम चले है
मन पुष्पो से खिले हुए है
खग विहंग ,पवन भी  बोले
जय श्री राम , जय श्री राम
क्रूरता का अब अंत हुआ है 
आलोकित यह देश हुआ है
अवध का कण कण है वन्दन धाम
जय श्री राम, जय श्री राम
कब से राह निहार रहे थे
प्रभु राम की सत्ता चाह रहे थे
आज राष्ट्र हुआ है तीरथ धाम 
जय श्री राम, जय श्री राम
भक्तों की भक्ति में मुखरित
नदियो की कल कल में गुंजित 
कारसेवको का हैं बलिदान 
जय श्री राम , जय श्री राम
               - प्रवीण मगर जय श्री राम

जय श्री राम

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Praveen Patidar

सोची हुई प्रेयसी 

 इस शरद चांदनी के आगोश में ,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
बात नैनो से करते है दोनों यहाँ ,
चुप तुम भी हो, मै भी हु, तुम भी हो।
धड़कने कह रही तुम तो मेरी सुनो,
जो है दिल कह रहा बस उसीको चुनो ।
दिल की ख्वाहिश मै मेरे बस एक यहाँ ,
तुम ही हो , तुम ही हो , तुम ही हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
तेरी आँखों का काजल भी कुछ कह रहा,
दर्द विरह के दिल ये क्यो सह रहा।
इस दर्द की तड़पती आवाज में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
तेरे नैना है जैसे कि सागर कोई ,
अमृत  से भरा  जैसे गागर कोई।
इस अमृत की तृष्णा के प्यासे यहां,
तुम भी हो ,मै भी हु, तुम भी हो।
इस शरद चांदनी के आगोश में ,
तुम भी हो, मै भी हु, तुम भी हो।
सोच कर के तुझे मैने वर्णन किया,
जो हुआ ही नही है उसे जी लिया।
मेरी कविता का इक - इक कतरा यहां ,
तुम भी हो , मै भी हु , तुम भी हो।
                               लेखक- प्रवीण मगर स्वप्न प्रेयसी

स्वप्न प्रेयसी

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