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sanjaysaxena1835
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Sanjai Saxena

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Sanjai Saxena

White अब मैंने उसकी इज़्ज़त करना सीख लिया है,
अब मैंने अपना मुंह बंद करना सीख लिया है,
पहले जो निगाहों से होती थी गुफ्तगू कभी,
अब मैंने, निगाहें इतर करना सीख लिया है।


संजय सक्सेना

©Sanjai Saxena #Tulips
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Sanjai Saxena

White उसको ऐसा वैसा कब समझा था,
वह उड़ सके बस यह समझा था।

उड़ने को पंख खोलने ही पड़ते है,
वह निश्चित उड़ेगा यह समझा था।

written by:-
संजय सक्सेना,
प्रयागराज।

©Sanjai Saxena #sad_quotes
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Sanjai Saxena

उमंगों में जीना कोई उससे सीखे,
प्रेम को भुलाना कोई उससे सीखे।

written by:-
Sanjai Saxena
Prayagraj

©Sanjai Saxena #sadak
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Sanjai Saxena

White न छप्पर फूटा, न धन मिला,
इंतज़ार-ए-वक़्त में, सारा जीवन बीत गया,

जवान हाथों से किया कुछ नही, 
जिम्मेदारियों को यूं ही छोड़ दिया,

पालनहार भगवान भी अब क्या करे, 
जब उसकी व्यवस्था को ही तोड़ दिया,

जीवन भर मांगते रहे, झूठ बोलते रहे, 
कोसते रहे, लड़ते रहे, फिर शिकायत क्यो, 
जब सबने साथ छोड़ दिया।

जीवन भर रिश्ते तोड़ते गये, साथ छोड़ते गये, 
न पिता की बैसाखी बने, न भाई का काँधा, 
वक़्त भी खुद ही पीछे छोड़ दिया।

अपनी लाठी जब खुद ही बनो,
धरातल पर भी कुछ दूर चलो,
राह के पत्थर हटा सको,
तब मंज़िल बस उंसको मिले, 
जिसने व्यसन छोड़ दिया।

wtitten by:-
संजय सक्सेना, 
प्रयागराज।

©Sanjai Saxena #GoodMorning
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Sanjai Saxena

हमने जो तेरी आँखों मे मोहब्बत देखी,
उंसको तेरे लबो पर बरकरार देखा,
मरमरी लबो की थिरकन ने जो कहा,
उंसको मेरी आँखों ने खूब सुना।

written by:-
संजय सक्सेना
प्रयागराज।

©Sanjai Saxena #NationalSimplicityDay
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Sanjai Saxena

दुनिया कहे तो कहे कोई बात नही,
उसने कह दिया तो हंगामा हो गया।
बात जज्बातों की हो तो मौन ही अच्छा,
जाने क्यो दिन में अंधेरा हो गया।

संजय सक्सेना,
प्रयागराज।

©Sanjai Saxena #WritingForYou
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Sanjai Saxena

न उनसे जफ़ा की उम्मीद,
न उनसे वफ़ा की उम्मीद,
हमें तो उनकी नज़र भरी,
प्यारी मुस्कान की उम्मीद।

संजय सक्सेना,
प्रयागराज।

©Sanjai Saxena प्रेम कविता

प्रेम कविता

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Sanjai Saxena

तिश्नगी का रस परछाइयों से नही मिलता,
जाम-ए-उल्फ़त का रस, चाहत से नही मिलता।

संजय सक्सेना।

©Sanjai Saxena #TereHaathMein
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Sanjai Saxena

रिश्तों में जब शर्ते आ जाती है,
रिश्ते तब व्यापार बन जाते है।
रिश्तों में जब जिम्मेदारी घट जाती है,
रिश्तों में तब तल्खी आ जाती है।

संजय सक्सेना,
प्रयागराज।

©Sanjai Saxena #humantouch
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Sanjai Saxena

चलो रिश्तों को संजो कर रखते है,
एक दूसरे से कुछ मतलब रखते है।

खून है अपना, जो आया है दूर से,
अपनी रोटी उससे दूर ही रखते है।

है  अज़ीज हमको हमारे माता पिता,
चलो उनको बृद्धाश्रम में रखते है।

अजीज़ था अपना,चला गया दूर,
दुश्मनी तो हम आज भी रखते है।

तेरे जाने के बाद याद करूँ तुझको,
यह ख़्वाब तो अब बेमानी लगते हैं।

ऐसा है दुनिया का दस्तूर-ए-इनायत 'संजय'
इंसानियत से हम अक्सर दूर ही रहते है।

संजय सक्सेना
प्रयागराज।

©Sanjai Saxena #Childhood
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